Saturday, January 25, 2014

प्राचीन भारत मे वैज्ञानिक आविष्कार(गर्म वायु के गुब्बारे ओर वस्त्र,डोर-तार-रज्जु,कृत्रिम अंग)Scientific inventions in ancient India(Hot air balloon and cloths and MULTI-CORE CABLE,Prosthesis)

मित्रो भारतीय विज्ञान के इस क्रम मे आज हम आपको भारतीय ग्रंथो मे वर्णित कुछ आविष्कार बताएंगे|
वास्तव मे विदेशी आक्रमणकारियो ओर मुख्यतः मुस्लिम आक्रमणकारियो द्वारा विश्व प्रसिध्द नालंदा ओर तकक्षीला विश्व विद्यालयो को जला देने के कारण कई दुर्लभ ग्रंथ नष्ट हो गए| लेकिन जितने हमारे पास उपलब्ध है उनमे कई ऐसी जानकारिया की लोग दातो तले उंगलिया दबा ले|
१ गर्म वायु के गुब्बारे-
मित्रो आप जानते ही हो कि प्राचीनकाल मे विमान विद्या थी| उसी प्रकार ऊचे उडनेवाले गुब्बारे और विमान से जिन छत्रो के सहायता से वैमानिक या सैनिक आकाश से छलांग लगा देते वे पैराशुट भी प्राचीन काल मे थे|
अगस्त्य संहिता मे इसका वर्णन है-
" जलनौकेव यानं यद्विमानं व्योम्निकीर्तितं|
कृमिकोषसमुदगतं कौषेयमिति कथ्यते|
सूक्ष्मासूक्ष्मौ मृदुस्थलै औतप्रोतो यथाक्रमम्||
वैतानत्वं च लघुता च कौषेयस्य गुणसंग्रहः|
कौशेयछत्रं कर्तव्यं सारणा कुचनात्मकम्|
छत्रं विमानाद्विगुणं आयामादौ प्रतिष्ठितम्||
उपरोक्त पंक्तियो मे कहा गया है कि विमान वायु पर उसी तरह चलता है जैसे जल मे नाव चलती है| तत्पश्चात् उन काव्य पंक्तियो मे गुब्बारो ओर आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र सुयोग्य कहा है क्युकि वह बडा लचीला होता है|
गुब्बारो के बाबत की काव्यपंक्तियो का एक नमूना नीचे उध्दृत है-
"वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनमस्तके|
उदानस्य लघुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम्||
यानि वस्त्र मे हाईड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश मे उडा जा सकता है|(उदान वायु=हाईड्रोजन)
वायुपुरण वस्त्र-
प्राचीनकाल मे ऐसा वस्त्र बनता था जिसमे वायु भरी जा सकती थी| उस वस्त्र को बनाने की निम्न विधि अगस्त्य संहिता मे है-
क्षीकद्रुमकदबाभ्रा भयाक्षत्वश्जलैस्त्रिभिः|
त्रिफलोदैस्ततस्तद्वत्पाषयुषैस्ततः स्ततः||
संयम्य शर्करासूक्तिचूर्ण मिश्रितवारिणां|
सुरसं कुट्टनं कृत्वा वासांसि स्त्रवयेत्सुधीः||
रेशमी वस्त्र को अंजीर ,कटहल,आंब,अक्ष,कदम्ब,मीराबोलेन वृक्ष के तीन प्रकार ओर दाले इनके रस या सत्व के लेप दिए जाते है| तत्पश्चात् सागर तट पर मिलनेवाले शंख आदि और शर्करा का घौल यानी द्रव सीरा बना कर वस्त्र को भिगौया जाता है| फिर उसे सुखाया जाता है| इसमे उदानवायु भर उडा जा सकता है|
डोर-तार-रज्जु=
मित्रो केबल से पहले हम आपको बताना चाहेगे कि वेदो के कई मंत्रो मे विद्युत के गुण धर्म है अतः वेद ही विद्युत शास्त्र का मूल है|वेदो मे धातुओ के तार बनाकर उनका उपयोग करने का उपदेश है-
युवं पैदवे पुरूवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरूतारं दुवस्यथः|
शर्यैरभिद्युं पृतनासु दुष्टरं चर्कत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्||ऋग्वेद अष्ट१|अ८|व२१|मं१०||
वह अत्यन्त शीघ्र गमनागमन का हेतु होता है अर्थात् इस तारविद्या से बहुत उत्तम व्यवहारो को मनुष्य लोग प्राप्त होते है| लडाई करने वाले सेनापतियो को यह तार विद्या अत्यंत लाभकारी है| वह तार शुध्द धातुओ का होना चाहिए| ओर विद्युत प्रकाश से युक्त करना चाहिए|सब सेनाओ के बीच जिससे दुःसह प्रकाश होता ओर उल्लंघन करना अशक्य है| जो सब क्रियाओ को बारंबार चलाने के योग्य है| अनैक प्रकार कलाओ के चलाने से अनेक उतम व्यवहारो को सिध्द करने के लिए विद्युत की उत्पत्ति करके उस को ताडन करना चाहिए| जो इस प्रकार ताराख्य यंत्र है,उस को सिध्द करके प्रीति से सेवन करो|
परम उत्तम व्यवहारो की सिध्दी के लिये तथा दुष्टो की पराजय के लिए तार विद्या सिध्द करनी चाहिए|जैसे समीप और दुरस्थ पदार्थ का प्रकाश सूर्य करता है वैसे तारयंत्र से भी दूर ओर समीप के सभी व्यवहारो का प्रकाश होता है | यह तार यंत्र अश्वि के गुणो ही से सिध्द होती है|
इस तरह तारो के गुण ओर उपयोग करने का उपदेश वेदो मे है|
अब डोर-तार-रज्जु के बारे मे बताते है,प्राचीन कारखाने,उडान,सन्देशप्रेषण आदि के लिए जो डोर तार रज्जु आदि लगते थे उनका उल्लेख प्राचीन विद्युत शास्त्र अगस्त्य संहिता मे इस प्रकार है-
नवभिस्तस्न्नुभिः सूत्रं सूत्रैस्तु नवभिर्गुणः|
गुर्णैस्तु नवभिपाशो रश्मिस्तैर्नवभिर्भवेत्|
नवाष्टसप्तषड् संख्ये रश्मिभिर्रज्जवः स्मृताः||
नौ तारो का सूत्र बनता है| नौ सुत्रो का एक गुण,नौ गुण का एक पाश ,नौ पाशो से एक रश्मि ओर ९,८,७ या ६ रज्जु रश्मि मिलाकर एक रज्जु बनती है| आधुनिक नौकाचलन ओर विद्युत वहन,संदेशवहन आदि के लिए जो अनैक बारीक तारो की बनी मोटी कैबल या डोर बनती है वैसी प्राचीनकाल मे भी बनती थी|शायद रज्जु से ही रोप(rope)ऐसा अपभ्रंश हुआ है|

कृत्रिम अंग-
चरित्रं हि पेरि वाच्छेदि परर्ण्यमाजा परितक्म्यायाम्|
सघो जड़्घा मायसी विश्वलायै धनेहिते सर्त्तवे
प्रत्यघत्तम्||rigved 1/116/15
युध्द मे या खेल के कारण बीमारी मे चलने
का साधन(पैर) निश्चय ही टूट जाए| तो है
चिकित्सको तत्काल भागने,भगाने के लिए युध्द मे या धन के लिये ,हित
साधन कार्य मे चलने के लिए लोहआदि धातुओ
की बनी जंघा फिर से लगा दे|
मित्रो इस मंत्र मे कृत्रिम अंग का उल्लेख है|
इन कुछ वस्तुओ के उल्लेख से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय विज्ञान काफी उच्च था इन वस्तुओ के अलावा ऐसे भी कई ओर आविष्कार हमारे ग्रंथो मे छिपे बैठे है|

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