Wednesday, April 29, 2020

ईस्लाम पूर्व अरब में कैसा जाहिलियत युग था?

क ई मुस्लिमो को आपने कहते हुए सुना होगा कि ईस्लाम से पूर्व अरब में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी.. उन्हें अधिकार नहीं थे वो जाहिलियाना युग था आदि आदि.. 
किंतु हमें ईसापूर्व लगभग 600 वर्ष में अरब में एक महिला शासिका का प्रमाण असूर बनीपाल के असीरिया से प्राप्त प्राचीन अभिलेखों में मिलता है.. असूर बनीपाल ने 600 ईसापूर्व अपने विजय अभियानों और आक्रमणों को अभिलेख बद्ध किया था.. उन्ही अभिलेखों में से एक अभिलेख में उसका अरब आक्रमण का विवरण है जिसके अनुसार अरब के किसी प्रदेश पर महिला शासिका थी जिसका नाम आदिया था.. उसके साथ क ई सैनिक थे.. असूर बनीपाल ने आक्रमण करके उस अरब रानी के शिविरों को जला दिया और उस रानी तथा उसके सैनिकों के प्राणों को अपने हाथों में कब्जा कर लिया अर्थात् रानी को हरा दिया और अरब के उस प्रदेश की अटूट सम्पत्ति को लूटकर असीरिया पहुंचा दिया... 
इस 600 ईसापूर्व अभिलेख से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अरब में मुस्लिम पूर्व महिलाओं को शासिका बनने तक का अधिकार था वो सैन्य नैतृत्व भी करती थी... और जाहिलियाना युग एक कल्पना मात्र है जिसका उद्देश्य ईस्लाम की श्रेष्ठता दर्शाना तथा ईस्लाम पूर्व अरब सभ्यता को नीचा दिखाना मात्र था..

असीरिया का दंड विधान (code of Hammurabi)



दंड विधान चाहे आज हो या कल अथवा इस देश का हो वा अन्य देश का.. दंड विधानों में क ई कारणों से पक्षपात दृष्टिगत हो ही जाता है.. जैसे - दंड विधान में प्रक्षेप के कारण, दंड विधान कर्ता का जातीय, पारिवारिक कुंठित होने के कारण, अधिकारियों और न्यायाधीशों के घूसखोर होने के कारण.. आदि ऐसे अनेकों कारण हैं जिससे दंड विधानों में भेदभाव पक्षपात आ जाता है..
हमारे एक मात्र विद्वान कौम नवभौंदुओं का कहना है कि दूनिया में सबसे पक्षपात युक्त कानून मनु ने बनाया था किंतु उसी मनुस्मृति मे अनेकों जगह ब्राह्मणों को ज्यादा दंड और ज्यादा प्रायश्चित भी है.. किंतु वो सब उन्हें नहीं दिखेगा.. नवभौंदुओं के अनुसार मनुस्मृति कम से कम शुंग कालीन है जिसे डा. अम्बेडकर ने दूनिया का सबसे खराब विधान कहकर जलाया था किंतु प्राचीन काल में अन्य भी दंडविधान थे जो क्रूरता और पक्षपात में हद पार कर गये थे.. इनमें से ऐसा ही एक दंड विधान है असीरिया का दंड विधान जिसका लेखन वहां के शिला पट्टों पर है जिनका काल लगभग 1700 ईसापूर्व माना गया हैं जिसे Code of Hammurabi भी कहतें हैं ये दंड विधान कीलाक्षर लिपि में लिखे गयें हैं जिनका अंग्रेजी अनुवाद हो चुका है...
इन दंड विधानों में किस तरह का पक्षपात है, उसकी एक झलक देखिये -
The code of Hammurabi 209 - 214 में भेदभाव देखें -
1) यदि किसी मनुष्य (असीरिया का प्रतिष्ठित) की बेटी को कोई दूसरा मनुष्य (प्रतिष्ठित) चोट पहुंचाये तो वह 10 शल चांदी जुर्माना देगा...
2) यदि लडकी मर जाती है तो बदले में दंड देने वाले उसकी (मारने वाले) की बेटी को मृत्यु में डाल देगें..
यहां अपराध किसी और ने किया है लेकिन सजा किसी और को मिल रही है.. भला मारने वाले की बेटी का क्या दोष जो उसे उसके पिता की गलती के बदले मारा जा रहा है...
3) यदि मनुष्य किसी साधारण व्यक्ति की पुत्री को चोट पहुंचाये तो उससे 5 शेकल चांदी दंड स्वरुप ली जाये..
4) यदि साधारण व्यक्ति की महिला मर जाये तो दंड आधा मन (मन भारतीय प्रणाली के तौल में भी है) चांदी दंड होगा..
5) अगर ये आघात दासी महिला या सेविका महिला पर हो तो दंड 2 शकल चांदी..
6) अगर महिला मर जावें तो दंड 1/3 मन चांदी..
यहां दंड में प्रतिष्ठित स्त्री, सामान्य मुक्त स्त्री और दासी(सेविका) को देखकर बहुत बडा भेदभाव किया गया है...
Code 203 - 205 में है -
1) अगर दो मनुष्य राज्य में समान पद पर हों तो.. एक मनुष्य यदि दूसरे को चोट पहुंचाता है तो वह एक मन चांदी दंड स्वरुप देगा...
2) यदि एक सामान्य मनुष्य किसी दूसरे सामान्य मनुष्य को चोट पहुंचाये तो उससे 10 शकल चांदी दंड है..
3) अगर कोई दास या सेवक किसी मनुष्य (प्रतिष्ठित) के पुत्र को मारे या चोट पहुंचाये तो नौकर अथवा दास का कान काट लिया जायेगा..
यहां भी दंड विधान में पछपात है... तथा हर जगह की तरह दास को ही कठोर शारिरिक दंड लिखा है...
Code 196 - 199 में लिखा है -
1) आंखे बदले आंख ली जाये..
2) हड्डी तोडने पर हड्डी तोडी जाये.
3) अगर सामान्य या मुक्त व्यक्ति की आंख और हड्डी है तो एक मन चांदी दंड..
4) अगर दास की आंख और हड्डी है तो दंड आधा हो जायेगा...
इस प्रकार पक्षपात युक्त और क्रूरतम दंड विधान हम्मूराबी ने बनाया था जिसमें महिलाओं को स्तन काटने जैसे क्रूरतम दंड विधान भी थे वो भी छोटी - छोटी गलतियों पर.

यही नहीं नवभौंदू के मीम भाईयों के शरीयत कानून में भी ऐसा ही है जिसमें खलीफाओं, शेखों के मजे रहे हैं.. आज का sc - st act और महिला एक्ट आदि भी ऐसे ही कानून है जो पक्षपात युक्त तो है किंतु झूठे आरोपों में इनमें लूट और मोटी रकम भी हडपी जाती है....

महाभारत में राजा को श्रेष्ठ राज्य का उपदेश

महाभारत सभापर्व में नारद जी द्वारा युद्धिष्ठिर को जो उपदेश दिये थे वे आज भी कितने प्रासंगिक है, ये बात हमें जाननी चाहिए...
राज्य के लिए कृषि और अन्नदाता कृषक कितने महत्वपूर्ण हैं, इसका वर्णन महाभारत में किया है -
1) कृषक दु:खी न हो..
2) राज्य की कृषि केवल वर्षा जल पर ही आश्रित न हो बल्कि किसानों को जलापूर्ति मिलती रहे.. इसके लिए राजा तरह तरह के प्रबंध करे... (एक बार अरुण लावनिया जी सर से बातचीत के दौरान उन्होनें यही बताया कि किसानों को बस जल उपलब्ध करवा दे सरकार तो शेष खेती और फसल उन्नति वो खुद कर सकते हैं, उन्हें सिखाने के लिए कृषि वैज्ञानिक या किसी की कोई आवश्यकता नहीं है..)
3) किसानों के लिए ऋण योजना जारी हो..
4) किसान और उसके बीज नष्ट तो नहीं हो रहे.. कहीं किसान आत्महत्या तो नहीं कर रहे..
आदि जो बातें महाभारत में राजा के लिए श्रेष्ठ राष्ट्र स्थापना के उद्देश्य से कही गयी है, वही बात आज भी कितनी प्रासंगिक है..
इस तरह की अनेकों बातें हमारे शास्त्रों में है.. कितना अच्छा होता कि हमारे ही शास्त्रों से ऐसे ऐसे उत्तम उत्तम प्रकरण लेकर संविधान आदि भी लिखा जाता... उसमें बौद्ध, जेन और सिख आदि भारतीय मतों के ग्रंथों की भी राष्ट्र के लिए उत्तम बातों का संग्रह भी हो जाता तथा हमारा अपने ही लोगों से लिया गया संविधान होता,, विदेशियों का कापी पेस्ट नहीं...

Saturday, April 25, 2020

रसियन का मूल संस्कृत





 ये बात हम या कोई भारतीय नहीं कह रहे हैं बल्कि अमेरिका में रसियन सिखाने वाली ये पुस्तक Russian for dummies का पहला अध्याय ही कह रहा है.. इस पुस्तक के सभी लेखक अमेरिका में सेल्विक भाषाओं के प्रोफेसर है.. अर्थात् भारत से बहार अमेरिका आदि की पुस्तकों में भी पढाया जाता है कि उनकी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है.. पुस्तक के कुछ चित्रों के स्क्रीन शॉट भी दिये हैं जिनमें रसियन गिनती है जो काफी संस्कृत से मिलती है.. 
साभार - सौरभ अग्रवाल जी..

लैटिन भाषा का मूल संस्कृत

संस्कृत का मनुष्य, लेटिन में मनुस manus(श्) और अंग्रेजी में man हो गया... 
मनुष्य - मनुस - manus - man

पारसी राजा महाराज डेरियस - ग्रीक, धारयद्वसु: - संस्कृत(धार्यवहु - मूल पारसी) की वंशावली...

महाराज डेरियस ने लगभग 500 ईसापूर्व अपने अभिलेख Persepois
Βιston आदि अनेकों जगह प्राचीन पारसी भाषा में कीलाक्षर लिपि में लिखवाये थे.. इन अभिलेखों की भाषा जिसे प्राचीन पारसी या गाथिक (अवेस्तन) कहते हैं वो संस्कृत भाषा के अत्यंत निकट है.. ये संस्कृत, प्राकृत, पारसी एक ही भाषा परिवार है... इन अभिलेखों में दो अभिलेखों के मूल रोमन रुप और संस्कृत अनुवाद के चित्र हमने नीचे दिये हैं.. इनसे स्पष्ट है कि महाराज डेरियस का शासन विश्व के सभी महान राष्ट्रों के क्षेत्रों में था... उनके Persepois अभिलेख में उन्होनें लिखा है -
असुरमेधसं यजे: ऋतानि च ब्रह्माणि (संस्कृत लिप्यन्तरण) जो कि वेदों के निम्न उपदेश का ही भावार्थ है - ऋतस्य पन्था: || (ऋग्वेद, ८.३१.१३)
दोनो जगह ईश्वर और सत्य के लिए - ऋत और ब्रह्म का प्रयोग देखा जा सकता है...
अपने Βιston अभिलेख में डेरियस ने अपनी वंशावली का विवरण इस प्रकार दिया है -
(यहां हम केवल संस्कृत रुपांतरण लिख रहे हैं)
साखामनीष: (हाखामनीष)
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चसिश्वि
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अर्यारम्न:
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ऋषामस्य
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विष्टाश्व:
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धारयद्वसु (धार्यवहु) (Darius - Greek)