Sunday, July 27, 2014

चन्द्र कान्त मणि

भारतीय चिकित्सा शास्त्र में सूर्य किरणों की चिकित्सा के साथ साथ चन्द्र किरणों का भी महत्व बताया है ..वेदों में चन्द्र से आने वाली रात्रि कालीन शीतल किरणों को सोम कहा है क्यूँ की ये औषधियों को पुष्ट करती है |
आयुर्वेद विशेष कर शुश्रुत संहिता में चन्द्र किरणों का उपचार के रूप में उलेख है | जिनमे प्रमुख है अद्भुत चंद्रकांत मणि ,ये मणि अनुमानत श्रीलंका में मिलती है |इस मणि की एक प्रमुख विशेषता होती है की इसे चन्द्र किरणों की उपस्थति में रखने पर इससे जल टपकने लगता है जिस जल के कई अद्भुत औषधीय गुण है |
शुश्रुत संहिता में आया है -                                                                                                                          
रक्षोघ्नं शीतलं हादि जारदाहबिषापहम्|
चन्द्रकान्तोद्भवम् वारि वित्तघ्नं विमलं स्मृतम्||सुश्रुत ४५/२७||
चन्द्र कातं मणि से उत्पन्न जल कीटाणुओ का नाश करने वाला है शीतल,आह्हाददायक,ज्वरनाशक,दाह ओर विष को शांत करने वाला है|
इसी मणि के बारे में चम्पू रामायण में भी आया है :-
एष मृगाड्कोपि निजोपलमयकलशमुखात्|
अच्छाच्छामविच्छिन्नधारां निजकराभिमर्शात् आप वमन||चंपू रामायण अयोध्याकांड २३||
फेजी द्वारा लिखी आईने अकबरी पढने से पता चलता है कि मुग़ल काल में भी इसी मणि का उपयोग किया जाता था :-
There is also a shining stone called Chandra Kant which being exposed to the moon s beams drops water.(English translation page 10)
इसमें चंद्रकांत मणि और उसके चन्द्र किरणों के प्रभाव में जल गिरने का स्पष्ट उलेख है |
इस लेख के द्वारा यही बताने का प्रयाश किया है कि प्राचीन भारत का रत्न विज्ञानं ओर आयुर्वेद विज्ञानं काफी उन्नत था |जिसके कारण विभिन्न रासायनिक योगिक बने ,औषधीय बनी, कई रत्नों ओर रेडिओ एक्टिव पदार्थ ,मणियो,धातुओ की खोज भारतीय ऋषियों द्वारा की जा चुकी थी |जिसका उपयोग वे ब्रह्मास्त्र जैसे घातक शस्त्रों से लेकर चिकित्सा विज्ञानं में भी करते थे |
आज आवश्कता है देश के इसी प्राचीन वैज्ञानिक परम्परा को आगे बढ़ाने की ,इस संधर्भ में साउथ इंडियन फिल्मो का बहुत बहुत आभार जिन्होंने भारतीय कला कुंग फु और महान संत बौधिधर्म के बारे में प्रचार हेतु फिल्म बनाई |ओर उसमे भारतीय विज्ञानं परम्परा को भी बताया है |हमारा सभी से निवेदन है सिंघम नामक हिन्दू विरोधी फिल्म ओर किक आदि फिल्मो से अच्छा साउथ इंडिया की "चेन्नई तो चाइना " फिल्म देखे ओर अन्य को भी दिखाए |
om .....  

Wednesday, July 16, 2014

सारे जहा से अच्छा हिंदुस्तान हमारा के लेखक इकबाल की सच्चाई ..(सेकुलरिस्म का एक ओर चेहरा)

मित्रो ओम |
 क्या आप जानते हैं कि....."पाकिस्तान"शब्द का जनक ....सियालकोट का रहनेवाला 'मुहम्मद इकबाल' था..... जो कि...जन्म से एक कश्मीरी ब्राह्मण था . परन्तुबाद में मुसलमान बन गया था ...! येवही मुहम्मद इकबाल है.... जिसने प्रसिद्दगीत "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तानहमारा" .. लिखा है...! इसी इकबाल नेअपने गीत में एक जगह लिखा है कि.....""मजहब नहीं सिखाता ....आपस में बैररखना" परन्तु .......इसी इकबाल नेअपनी एक किताब " कुल्लियाते इकबाल "में अपने बारे में लिखा है...."मिरा बिनिगर कि दरहिन्दोस्तां दीगर नमी बीनी ,बिरहमनजादए रम्ज आशनाए रूम औ तबरेज अस्त "अर्थात... मुझे देखो......... मेरे जैसा हिंदुस्तान में दूसरा कोईनहीं होगा... क्योंकि, मैं एक ब्राह्मणकी औलाद हूँ......लेकिन,मौलाना रूम औरमौलाना तबरेज से प्रभावित होकरमुसलमान बन गया...! कालांतर मेंयही इकबाल....... मुस्लिम लीग का अध्यक्षबन गया.... और हैरत कि बात है कि......जो इकबाल "सारे जहाँ सेअच्छा हिदोस्तान हमारा" .. लिखा ...और,""मजहब नहीं सिखाता ....आपस में बैररखना"..... जैसे बोल बोले थे... उसी इकबालने ....... मुस्लिम लीग खिलाफत मूवमेंट केसमय ...... 1930 के इलाहाबाद में मुस्लिमलीग के सम्मलेन में कहा था ..... "हो जायेअगर शाहे खुरासां का इशारा ,सिजदा नकरूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर "यानि.... यदि तुर्की का खलीफा अब्दुलहमीद ( जिसको अँगरेजों ने 1920 में गद्दी से उतार दिया था ) इशारा करदे...... तो, मैं इस "नापाक हिंदुस्तान" पर नमाज भी नहीं पढूंगा...! बाद में...... इसी "नापाक" शब्द का विपरीत शब्द लेकर"पाक " से "पाकिस्तान "बनाया गया ...... जिसका शाब्दिक अर्थहै .....( मुस्लिमों के लिए ) पवित्र देश ...!कहने का तात्पर्य ये है कि..... हिन्दू बहुल क्षेत्र होने के कारण....मुस्लिमों को हिंदुस्तान ""नापाक""लगता था.... इसीलिए... मुस्लिमों ने अपनेलिए तथाकथित पवित्र देश ..."पाकिस्तान"... बनवा लिया...! अब इससारी कहानी में.... समझने की बात यह हैकि....... जब एक कश्मीरी ब्राह्मण के ....धर्मपरिवर्तन करने के बाद.... अपने देश और अपनी मातृभूमि के बारे में सोच ...इतनी जहरीली हो सकती है.... तो, आज ....हिन्दुओं की अज्ञानता और उदासीनता का लाभ उठा कर ...जकारिया नाईक जैसे..... समाज के दुश्मनों द्वारा हजारो -लाखो हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है.....उसका परिणाम कितना भयानकहो सकता है...???? ऐसे में मुझे एक मौलाना की वो प्रसिद्द उक्ति याद आरही है.... जिसमे उसने कहा था कि.... देखियेहमारे तो इतने इस्लामी देश हैं ....इसीलिए , अगर हमारे लिए जमीन तंग हो जाएगी तो ,,,हम किसी भी देश में जाकर कहेंगे " अस्सलामु अलैकुम " और वह कहेगा " वालेकुम अस्सलाम " ..... साथ ही....हमें भाई समझ कर अपना लेगा . लेकिनमैं... हिन्दुओं से एक मासूम सा सवालपूछना चाहता हूँ कि....... उनके राम-राम का जवाब देने वाला कौन सा देश है...... ???? इसलिए, जो यह लेख पढ़ रहे हैं ,उन सभी हिन्दू भाइयों-बहनों से निवेदनहै कि...., जकारिया नायक जैसे क्षद्मजिहादी और इस्लाम का पर्दाफाश करने में हर प्रकार का सहयोग करें ...... ! यादरखें कि.... अगर धर्म नहीं रहेगा तो देश भी नहीं रहेगा ! क्योंकि.... देश और धर्मका अटूट सम्बन्ध है .... जिस तरह.... धर्म के लिए देश की जरुरत होती है ... ठीक उसी तरह..... देश की एकता के लिए भी धर्म की जरूरत होती है ...! इसीलिए,अगर हमारे हिन्दुस्थान को बचाना हैतो...... जाति और क्षेत्रवाद का भेद भूलकर ..... कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी...और कच्छ से लेकर असम तक के सारे हिन्दुओं को एक होना ही होगा...!


Monday, July 14, 2014

साख्य दर्शन के विषय में भ्रान्ति

अक्सर ये माना जाता है कि सांख्य कार कपिल मुनि अनिश्वर वादी और वेद विरुधी थे तथा उनका दर्शन भी ईश्वर को नही मानता है ..ऐसी आम धारणा लोगो ने बना ली है..इन्हें देख यही कहा जा सकता है कि ऐसे लोगो ने शायद सांख्य दर्शन की शकल भी नही देखी होगी ..

सांख्य से ही प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे है कि सांख्य कार कपिल मुनि जी ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे :
"स हि सर्ववित् सर्वकर्ता (सांख्य ३:५६)" अर्थात ईश्वर सर्वत्र और निमित कारण रूप से जगत का कर्ता है .......
"ईदृशेश्वरसिद्ध: सिद्धा (सांख्य ३:५७ )" ऐसे जगत के निमित कारण रूप सर्वत्र ईश्वर की सिद्धी सिद्ध है .....
इन उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि कपिल मुनि ईश्वर को मानते थे ..अब उनके वेद विषय में देखते है :-
" नात्रिभीपौरुषेयत्वाद्वेदस्यतदर्थस्यातिन्द्रियत्वात् (सांख्य ५:४१)" वेद अपौरुष होने और वेदार्थ के अति इन्द्रिय होने से उक्त तीनो कारणों से नही हो सकता है ...                                                                            
"पौरुषेयत्व तत्कर्त्तः पुरुषस्याऽभावत् (सांख्य ३:५६)" वेदों का कर्ता पुरुष न होने से पौरुषेत्व नही बनता है ...
इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि सांख्य कार कपिल ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे ..
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) सांख्य दर्शन 
(२) वेदों का यथार्थ स्वरूप :-प. धर्मदेव जी  

Wednesday, July 9, 2014

गायत्री मंत्र और शंका समाधान



- ओउम् -

नमस्ते प्रिय पाठकों, गायत्री मंत्र के विषय में कुछ तथाकथित मुस्लिम विद्वानों का यह विचार है कि गायत्री मंत्र का उच्चारण मुसलमानों के लिये शिर्क अर्थात गुनाह है और मुसलमानों को इसका उच्चारण नहीं करना चाहिये। इनकी बात में कितना सत्य है आइये देखते हैं।

गायत्री मंत्र और उसका अर्थ -

गायत्री मंत्र वेदों का सबसे सर्वोच्च और श्रेष्ठ मंत्र माना जाता है। मंत्र इस प्रकार है:

ओउम् भूर्भुवः॒ स्वः ।
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यं ।
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। ।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥ ।


इस मंत्र का भाष्य करते हुऐ महर्षि दयानन्द लिखते हैं – जो मनुष्य कर्म, उपासना और ज्ञान-सम्बन्धिनी विद्याओं का सम्यक् ग्रहण कर सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा के साथ अपने आत्मा को युक्त करते हैं तथा अधर्म अनैश्वर्य और दुःखरूप मलों को छुड़ा के धर्म ऐश्वर्य और सुखों को प्राप्त होते हैं, उनको अन्तर्यामी जगदीश्वर आप ही धर्म के अनुष्ठान और अधर्म का त्याग कराने को सदैव चाहता है।। (यजुर्वेद 36.3)

न तो इस मंत्र में कहीं भी परमात्मा को छोड़ अन्य किसी की उपासना करने को कहा गया है, और न ही किसी देवता की। फिर मुस्लिमों का विरोध किस बात पर है? मुसलमानों का विरोध मंत्र में आये “सवितुः” के लिये होता है। उनके अनुसार मंत्र में “सवितुः” का प्रयोग ईश्वर द्वारा निर्मित सूर्य के लिये किया गया है और उसकी उपासना करने और मार्गदर्शन करने के लिये कहा गया है। परंतु यह बात पूर्णतः असत्य है। वेदों में ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु, पदार्थ की उपासना करने की आज्ञा कदापि नहीं है।

तमीळत प्रथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुतमृञ्जसानम। ऊर्जः पुत्रं भरतं सृप्रदानुं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्।। (ऋग्वेद 1.96.3)
हे जिज्ञासु, अर्थात परमेश्वर का विज्ञान चाहनेवाले मनुष्यों ! तुम जिस ईश्वर ने सब जीवों के लिए सब सृष्टियों को उत्पन्न करके प्राप्त कराया है वा जिसने सृष्टि को धारण करनेहारे पवन और सूर्य रचा है, उसको छोड़ के अन्य किसी की कभी ईश्वर भाव से उपासना मत करो।।

अब प्रश्न उठता है कि यह “सवितुः” जो इस मंत्र में आया है वह किसके लिये प्रयोग हुआ है? उत्तर है – “ईश्वर”। महर्षि दयानन्द ने मंत्र के पदार्थ में यह स्पष्ट कर दिया है।




अब पाठक गण स्वंय निर्णय लेवें और सत्य को स्वीकार करें। और मुस्लिम पाठकों से भी यही कहना है कि इस मंत्र का उच्चारण करने में कोई शिर्क नहीं है। आप इसका उच्चारण शुद्ध मन से कर सकते हैं।

Friday, July 4, 2014

वेदों मे यशस्वी ओर परोपकारी बनने का उपदेश

यशा इंद्रो यशा अग्निर्यशा: सोमो अजायत|
यशा विश्वस्य भूतस्याहमस्मि यशस्तम:||अर्थववेद ६/३६/३/
  

सूर्य यशस्वी ,आग यशस्वी,चंद्रमा यशस्वी,मै यशस्वी हू,सब संसार के बीच अत्यन्त यशस्वी हू
यशस्वी का अर्थ है यश वाला,यश कोई बूरी वस्तु नही है| अपयश अवश्य बूरा है|प्रत्येक मनुष्य को यश प्राप्त करने की कौशिश करनी चाहिए|परमात्मा के लिए वेद मे कहा है यस्य नाम महद्यश:(यजु ३२:३)अर्थात् परमात्मा का बडा यश है| परन्तु स्मरण रखना चाहिए कि यश "धर्म ओर सत्यकर्मो का फल " है| अधर्म और असत्कर्मो का फल अपयश है,निंदा है| यशस्वी होने के लिए असन्मार्गो का अवलम्बन नही करना चाहिए|
मंत्र मे यश की प्राप्ती मे सूर्य ,चंद्र ओर आग का दृष्टांत दिया है| इन के साथ "अजायत" अर्थात् जन धातु का प्रयोग किया है| जिसका अभिप्राय है सूर्य,आग ओर अग्नि जन्म से ही यशस्वी है| यह क्यु?कारण तीनो प्रकाश स्वरूप है तथा इनका प्रकाश स्वार्थ के लिए नही अपितु परार्थ के लिए है|सूर्य इसलिए प्रकाशित नही कि उसे अपने लिए प्रकाश चाहिए अपितु इसलिए कि ओरो को प्रकाश चाहिए|इसी तरह चंद्र ओर आग का लेना चाहिए..
मनुष्य को चाहिए कि अपने यश को बढाता चले ओर परोपकार मे लगाता रहे|…

Thursday, July 3, 2014

हिन्दुओं की सती प्रथा मुग़लों की देन

सती प्रथा .... हमारे सभ्य मानवीय इतिहास की कुछेक सबसे बड़ी कुरीतियों मे से एक है ..... जिसे एक कुरीति से ज्यादा हमारे समाज पर कलंक कहना अधिक उपर्युक्त होगा...!
स से भी ज्यादा तो दुखद यह है कि..... इस संबंध मे समुचित जानकारी का अभाव .....आज के हिन्दू नौजवानों को हमेशा ""बचाव मुद्रा"" मे आने को विवश कर देता है ॰
आश्चर्यजनक रूप से..... हमारे समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा ""सतीप्रथा"" को हिन्दू समाज के एक बड़ी कुरीति के रूप मे प्रस्तुत किया गया और यह प्रचारित किया गया कि..... ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हिन्दू समाज का हिस्सा रहा है....!
परंतु ..... कोई भी मनहूस बुद्धिजीवी आजतक यह बताने मे असफल रहा है कि...... दुनिया की पहली सती कौन थी और.... उसने सर्वप्रथम कब आत्मदाह किया था...?????
साथ ही.... ऐसे बुद्धिजीवियों के मुंह मे उस समय "मेंढक" चला जाता है .... जब उन्हे पूछा जाता है कि.... अगर ""सतीप्रथा"" पुरातन काल से ही हमारे हिन्दू समाज का हिस्सा रहा है तो...... हमारे धार्मिक ग्रन्थों .... खासकर वेद-पुराण या रामायण-महाभारत मे इसका जिक्र क्यों नहीं है...????
हालांकि, शातिर सेकुलरों द्वारा यह ज़ोर शोर से यह फैलाया जाता है कि..... महाभारत मे पांडु की पत्नी "माद्री" दुनिया की पहली सती थी.... और, उसने पांडु के मृत्यु उपरांत ... उसी के साथ चिता मे जल गयी थी....!
परंतु.... महाभारत मे ऐसा इसीलिए हुआ था क्योंकि..... माद्री खुद को पांडु के मृत्यु का जिम्मेदार मानती थी.... और, वो आत्मग्लानि के कारण .... अपने पति पांडु के साथ जल गयी थी...!
यह बहुत कुछ ऐसा ही है .... जैसे आज के जमाने मे भी .... कई प्रेमी -प्रेमिका साथ मे आत्महत्या कर लेते हैं..... अथवा , एक के गुजर जाने के बाद ... उसकी याद मे दूसरा भी मर जाता है या आत्महत्या कर लेता है...!
इसीलिए.... इस घटना को धार्मिक रंग नहीं दिया जा सकता है .... क्योंकि... वह एक भावनात्मक बात थी.... ना कि ... धार्मिक ...!
और तो और..... आपको यह जानकार काफी हैरानी होगी कि ..... ""सती"" का मतलब वो होता ही नहीं है..... जो, हमें इन मनहूस बुद्धिजीवियों द्वारा जबरदस्ती समझाने का प्रयास किया जाता है....!
""सती"" का मतलब होता है...... अपने पति को पूर्ण समर्पित अर्थात .... पतिव्रता स्त्री...!
शायद हम हिन्दू एक महत्वपूर्ण बात भूल रहे हैं कि...... सती अनुसूइया , सती सीता , सती सावित्री इत्यादि दुनिया की सबसे "सुविख्यात सती" हैं .... और, इन सबमें से किसी ने भी..... ना तो आत्महत्या की है .... ना ही , अपने पति के मृत्यु उपरांत .... उनके साथ आत्मदाह किया है ...!
असल मे .... मैं सती प्रथा के उस पक्ष को बताना चाहता हूँ .... जिस पक्ष को उठाने मे ..... तथाकथित बुद्धिजीवियों की फट जाती है....!
हकीकत यह है कि..... ""सती प्रथा"" ..... हमारे हिन्दू धर्म के कारण नहीं बल्कि.... ""इस्लाम"" के कारण शुरू हुआ था.... और, इस्लाम का प्रभुत्व कम होने के साथ ही खत्म भी हो गया ...!
""सती प्रथा"".... और कुछ नहीं बल्कि.... ""जौहर प्रथा"" का ही विस्तार था..... जो कि ... सामूहिक आत्मदाह से होते -होते कालांतर मे ..... व्यक्तिगत स्तर तक पहुँच गया था...!
जानकारी के लिए आपको याद दिला दूँ कि...... आज से करीब 1200 साल पहले .... मुस्लिमों ने जब भारत पर आक्रमण किया तो..... उनका काम सिर्फ लूट-मार और हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार करना ही था...!
उसके बाद जब हमारे हिंदुस्तान मे मुगलों का ""शासन"" हो गया तो.... वे युद्ध मे हारे हुए हिन्दू राजाओं के परिवार के सभी स्त्रियों को लूटा हुआ माल समझ कर..... बलात्कार करते एवं उन्हे अपने हरम मे रखेल बनाकर रखते थे...!
इसीलिए.... युद्ध हार जाने की स्थिति मे..... हिन्दू रानियाँ , राजकुमारी और उनकी सभी दासियाँ ..... खुद को मुस्लिमों के बलात्कार से बचाने ... एवं , अपनी सतीत्व , इज्जत और मन-सम्मान बनाए रखने के लिए ..... एक जगह अग्नि जलाकर .... सामूहिक आत्मदाह कर लेती थीं.... !
और चूंकि.... इस से मुस्लिम आक्रांताओं को कुछ भी हाथ नहीं लगता था तो.... वे आक्रांता .... राजपरिवार के स्थान पर..... राजकर्मचारियों के घर की महिलाओं को ही ले जाने लगे......!
इसीलिए... कुछ समय बाद ........ राजपरिवार के साथ राजकर्मचारियों के घर की स्त्रियाँ भी..... राजपरिवार के साथ .... "" जौहर "" मे छलांग लगाने लगी.....!
और.... इस तरह..... धीरे -धीरे खुद को मुस्लिमों के बलात्कार से बचाने ... एवं , अपनी सतीत्व , इज्जत और मन-सम्मान बनाए रखने के लिए यह प्रथा .... निजी स्तर तक तक पहुँच गयी और..... थोड़ी अपभंश होकर ........ अपने पति के सामान्य मृत्यु के उपरांत भी..... स्त्रियाँ अपने पति की चिता के साथ ही अग्नि मे प्रवेश कर जाने लगी ..... जबकि... प्रारम्भ मे यह सिर्फ .... युद्ध मे वीरगति प्राप्त होने पर ही किया जाता था.....!
आगे चलकर .... यह "" व्यक्तिगत जौहर प्रथा "" पवित्र हिन्दू समाज मे एक सामाजिक नियम सा बन गया.... और, स्वेच्छा का स्थान ""जबरदस्ती"" ने लिया..... और, उसे ""सती प्रथा"" का नाम दे दिया गया ...!
अंत मे.... आततायी मुगलों का वर्चस्व खत्म होने ..... तथा , अंग्रेजी शासन मे..... एक हिन्दू समाजसुधारक ""राजा राम मोहन राय "" के अथक प्रयासों के बाद .... 1829 ईस्वी मे अंग्रेजी शासन द्वारा ""सती प्रथा "" को प्रतिबंधित कर दिया गया और.... इसे इसे गैरकानूनी बना दिया गया....!
आप खुद ही सोच सकते हैं कि..... आज के वामपंथी किस तरह..... लोगों को भ्रमित करने का काम किया करते हैं....
और, जो प्रथा .... मुस्लिमों के अत्याचार के कारण ..... और, खुद को मुस्लिमों के बलात्कार से बचाने ... एवं , अपनी सतीत्व , इज्जत और मन-सम्मान बनाए रखने के लिए ..... हिन्दू स्त्रियों द्वारा बेहद मजबूरी मे उठाया गया एक कदम था..... उसे , हिन्दू समाज के कुरीति की संज्ञा दे गयी.... और, उसे धर्म से जोड़ दिया गया ...... जबकि, यह विशुद्ध रूप से .... मुस्लिमों से अत्याचार से ही प्रारम्भ हुआ था....!
और.... आश्चर्यजनक रूप से आज भी ऐसे बुद्धिजीवी ..... ""सती प्रथा"" की तो बात करते हैं .... परंतु उसका प्रारम्भ ""जौहर प्रथा"" और ""मुस्लिमों के अत्याचार"" की चर्चा तक नहीं चाहते ...!
इसीलिए ....
जागो हिंदुओं .... और, सच्चाई को जानो ....
क्योंकि, सच्चाई ही तुम्हारे अस्तित्व की रक्षा मे सहायक होगा...!
जय महाकाल...!!!
नोट : यह लेख किसी भी तरह से .... ""सती प्रथा"" का समर्थन नहीं करता है , ना ही इस लेख का उद्देश्य किसी भी समुदाय भावना को ठेस पहुंचाना है...!
यह लेख ...मात्र लोगों को समाज की कुछ सच्चाईयों से अवगत करवाना है.... ताकि, लोग सही-गलत मे भेद कर सकें...!