Thursday, January 23, 2014

कामसूत्र, ऋषि वात्स्यायन और विदेशी इस्लामिक दुष्प्रचार(Kama Sutra, the sage Vatsyayana And Foreign Islamic Disinformation)

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अक्सर मैंने कुछ लोगो विशेषत: मुसलमानों को ये कहते सुना है
की सनातन धर्म में कामसूत्र एक कलंक है और वे
बार बार कुछ पाखंडियो बाबाओ के साथ साथ कामसूत्र को लेकर सनातन
धर्म पर तरह तरह के अनर्लग आरोप व् आक्षेप लगाते रहते
है| चूँकि जब मैंने ऋषि वात्सयायन द्वारा रचित कामसूत्र
का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ की कामसूत्र
को लेकर जितना दुष्प्रचार हिन्दुओ ने किया है
उतना तो मुसलमानों और अंग्रेजो ने
भी नहीं किया | मुसलमान विद्वान व्
अंग्रेज इस बात पर शोर मचाते रहते है
की भारतीय संस्कृति में कामसूत्र के साथ
साथ अश्लीलता भरी हुई है और ऐसे में
वे खजुराहो और अलोरा अजन्ता की गुफाओं
की मूर्तियों, चित्रकारियो का हवाला दे कर भारत
संस्कृति के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार करते है|
आज मैं आप सभी के समक्ष उन
सभी तथ्यों को उजागर करूँगा जिसके अनुसार कामसूत्र
अश्लील न होकर एक जीवन पद्दति पर
आधारित है, ये भारतीय संस्कृति की उस
महानता को दर्शाता है जिसने पति पत्नी को कई
जन्मो तक एक ही बंधन में बाँधा जाता है और
नारी को उसके अधिकार के साथ धर्म-
पत्नी का दर्जा मिलता है, भारतीय
संस्कृति में काम को हेय की दृष्टि से न देख कर
जीवन के अभिन्न अंग के रूप में देखा गया है,
इसका अर्थ ये
नहीं की हमारी संस्कृति अश्लील
है, कामसूत्र में काम को इन्द्रियों द्वारा नियंत्रित करके भोगने
का साधन दर्शाया गया है, वास्तव में ये केवल एक दुष्प्रचार है
की कामसूत्र में अश्लीलता है और ये
विचारधारा तब और अधिक फैली जब कामसूत्र फिल्म
आई थी, जिसमे काम को एक वासना के रूप में दिखा कर न
केवल ऋषि वात्सयायन का अपमान किया गया था अपितु ऋषि वात्स्यायन
द्वारा रचित कामसूत्र के असली मापदंडो के
भी प्रतिकूल है, अब आगे लेख में आप पढेंगे
की ऐसा क्या है कामसूत्र में??
सौजन्य से – Saffron Hindurashtra
कौन थे महर्षि वात्स्यायन
महर्षि वात्स्यायन भारत के प्राचीनकालीन
महान दार्शनिक थे. इनके काल के विषय में इतिहासकार एकमत
नहीं हैं. अधिकृत प्रमाण के अभाव में
महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है. कुछ
स्थानों पर इनका जीवनकाल
ईसा की पहली शताब्दी से
पांचवीं शताब्दी के बीच
उल्लिखित है. वे ‘कामसूत्र’ और ‘न्यायसूत्रभाष्य’ नामक
कालजयी ग्रथों के रचयिता थे. महर्षि वात्स्यायन
का जन्म बिहार राज्य में हुआ था. उन्होंने कामसूत्र में न केवल
दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, बल्कि कला,
शिल्पकला और साहित्य को भी श्रेष्ठता प्रदान
की है. कामसूत्र’ का अधिकांश भाग मनोविज्ञान से
संबंधित है. यह जानकर अत्यंत आश्चर्य होता है कि आज से
दो हजार वर्ष से भी पहले
विचारकों को स्त्री और पुरुषों के मनोविज्ञान
का इतना सूक्ष्म ज्ञान था. इस जटिल विषय पर वात्स्यायन रचित
‘कामसूत्र’ बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ.
भारतीय संस्कृति में
कभी भी ‘काम’ को हेय
नहीं समझा गया. काम को ‘दुर्गुण’ या ‘दुर्भाव’ न
मानकर इन्हें चतुर्वर्ग अर्थ, काम, मोक्ष, धर्म में स्थान
दिया गया है. हमारे शास्त्रकारों ने जीवन के चार
पुरुषार्थ बताए हैं- ‘ धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’ और ‘मोक्ष’ . सरल
शब्दों में कहें, तो धर्मानुकूल आचरण करना, जीवन-
यापन के लिए उचित तरीके से धन कमाना, मर्यादित
रीति से काम का आनंद उठाना और अंतत:
जीवन के अनसुलझे गूढ़ प्रश्नों के हल
की तलाश करना. वासना से बचते हुए आनंददायक
तरीके से काम का आनंद उठाने के लिए कामसूत्र के उचित
ज्ञान की आवश्यकता होती है.
वात्स्यायन का कामसूत्र इस उद्देश्य की पूर्ति में
एकदम साबित होता है. ‘काम सुख’ से लोग वंचित न रह जाएं और
समाज में इसका ज्ञान ठीक तरीके से फैल
सके, इस उद्देश्य से प्राचीन काल में कई ग्रंथ लिखे
गए.
जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन
बहुत ही आवश्यक है. ऋषि-मुनियों ने
इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर
दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन
कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और
नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए.
या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार
को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
जीवन के इन चारों पुरुषार्थों के बीच संतुलन
बहुत ही आवश्यक है. ऋषि-मुनियों ने
इसकी व्यवस्था बहुत ही सोच-विचारकर
दी है. यानी ऐसा न हो कि कोई केवल धन
कमाने के पीछे ही पड़ा रहे और
नीति-शास्त्रों को बिलकुल ही भूल जाए.
या काम-क्रीड़ा में इतना ज्यादा डूब जाए कि उसे संसार
को रचने वाले की सुध ही न रह जाए.
मनुष्य को बचपन और यौवनावस्था में विद्या ग्रहण
करनी चाहिए. उसे यौवन में ही सांसारिक
सुख और वृद्वावस्था में धर्म व मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्न
करना चाहिए. अवस्था को पूरी तरह से निर्धारित
करना कठिन है, इसलिए मनुष्य ‘त्रिवर्ग’ का सेवन इच्छानुसार
भी कर सकता है. पर जब तक वह विद्याध्ययन करे,
तब तक उसे ब्रह्मचर्य रखना चाहिए यानी ‘काम’ से
बचना चाहिए.
कान द्वारा अनुकूल शब्द, त्वचा द्वारा अनूकूल स्पर्श, आंख
द्वारा अनुकूल रूप, नाक द्वारा अनुकूल गंध और जीभ
द्वारा अनुकूल रस का ग्रहण किया जाना ‘काम’ है. कान
आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन और
आत्मा का भी संयोग आवश्यक है.
स्पर्श विशेष के विषय में यह निश्चित है कि स्पर्श के
द्वारा प्राप्त होने वाला विशेष आनंद ‘काम’ है.
यही काम का प्रधान रूप है. कुछ आचार्यों का मत है
कि कामभावना पशु-पक्षियों में भी स्वयं प्रवृत्त
होती है और नित्य है, इसलिए काम
की शिक्षा के लिए ग्रंथ की रचना व्यर्थ
है. दूसरी ओर वात्स्यायन का मानना है
कि चूंकि स्त्री-पुरुषों का जीवन पशु-
पक्षियों से भिन्न है. इनके समागम में भी भिन्नता है,
इसलिए मनुष्यों को शिक्षा के उपाय की आवश्यकता है.
इसका ज्ञान कामसूत्र से ही संभव है. पशु-
पक्षियों की मादाएं खुली और स्वतंत्र
रहती हैं और वे ऋतुकाल में केवल स्वाभाविक
प्रवृत्ति से समागम करती हैं.
इनकी क्रियाएं बिना सोचे-विचारे होती हैं,
इसलिए इन्हें
किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती.
वात्स्यायन का मत है कि मनुष्य को काम का सेवन करना चाहिए,
क्योंकि कामसुख मानव शरीर की रक्षा के
लिए आहार के समान है. काम ही धर्म और अर्थ से
उत्पन्न होने वाला फल है. हां, इतना अवश्य है कि काम के
दोषों को जानकर उनसे अलग रहना चाहिए| कुछ आचार्यों का मत है
कि स्त्रियों को कामसूत्र की शिक्षा देना व्यर्थ है,
क्योंकि उन्हें शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं है.
इसके विपरीत वात्स्यायन का मत है
कि स्त्रियों को इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए,
क्योंकि इस ज्ञान का प्रयोग स्त्रियों के बिना संभव
नहीं है.
आचार्य घोटकमुख का मत है कि पुरुष
को ऐसी युवती से विवाह करना चाहिए,
जिसे पाकर वह स्वयं को धन्य मान सके तथा जिससे विवाह करने
पर मित्रगण उसकी निंदा न कर सकें. वात्स्यायन लिखते
हैं कि मनुष्य की आयु सौ वर्ष की है.
उसे जीवन के विभिन्न भागों में धर्म, अर्थ और काम
का सेवन करना चाहिए. ये ‘त्रिवर्ग’ परस्पर संबंधित होना चाहिए
और इनमें विरोध नहीं होना चाहिए.
कामशास्त्र पर वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ के अतिरिक्त ‘नागर
सर्वस्व’, ‘पंचसायक’, ‘रतिकेलि कुतूहल’, ‘रतिमंजरी’,
‘रतिरहस्य’ आदि ग्रंथ भी अपने उद्देश्य में
काफी सफल रहे.
वात्स्यायन रचित ‘कामसूत्र’ में अच्छे लक्षण वाले
स्त्री-पुरुष, सोलह श्रृंगार, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय,
कामशक्ति में वृद्धि से संबंधित उपायों पर विस्तार से
चर्चा की गई है.
इस ग्रंथ में स्त्री-पुरुष के ‘मिलन’
की शास्त्रोक्त रीतियां बताई गई हैं. किन-
किन अवसरों पर संबंध बनाना अनुकूल रहता है और किन-किन
मौकों पर निषिद्ध, इन बातों को पुस्तक में विस्तार से बताया गया है.
भारतीय विचारकों ने ‘काम’ को धार्मिक मान्यता प्रदान
करते हुए विवाह को ‘धार्मिक संस्कार’ और
पत्नी को ‘धर्मपत्नी’ स्वीकार
किया है. प्राचीन साहित्य में कामशास्त्र पर बहुत-
सी पुस्तकें उपलब्ध हैं. इनमें अनंगरंग, कंदर्प,
चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्व, पंचसायक,
रतिकेलि कुतूहल, रतिमंजरी, रहिरहस्य, रतिरत्न
प्रदीपिका, स्मरदीपिका,
श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख हैं.
पूर्ववर्ती आचार्यों के रूप में नंदी,
औद्दालकि, श्वेतकेतु, बाभ्रव्य, दत्तक, चारायण, सुवर्णनाभ,
घोटकमुख, गोनर्दीय, गोणिकापुत्र और कुचुमार
का उल्लेख मिलता है. इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं
कि कामशास्त्र पर विद्वानों, विचारकों और ऋषियों का ध्यान बहुत
पहले से ही जा चुका था.
वात्स्यायन ने ब्रह्मचर्य और परम समाधि का सहारा लेकर
कामसूत्र की रचना गृहस्थ जीवन के
निर्वाह के लिए की की .
इसकी रचना वासना को उत्तेजित करने के लिए
नहीं की गई है. संसार
की लगभग हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद
हो चुका है. इसके अनेक भाष्य और संस्करण
भी प्रकाशित हो चुके हैं. वैसे इस ग्रन्थ के
जयमंगला भाष्य को ही प्रमाणिक माना गया है.
कामशास्त्र का तत्व जानने वाला व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम
की रक्षा करता हुआ अपनी लौकिक
स्थिति सुदृढ़ करता है. साथ ही ऐसा मनुष्य जितेंद्रिय
भी बनता है. कामशास्त्र का कुशल ज्ञाता धर्म और
अर्थ का अवलोकन करता हुआ इस शास्त्र का प्रयोग करता है.
ऐसे लोग अधिक वासना धारण करने वाले कामी पुरुष के
रूप में नहीं जाने जाते.
वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन
का श्रृंगार किया है, बल्कि कला, शिल्पकला और साहित्य
को भी श्रेष्ठता प्रदान की है.
राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के
क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है.
करीब दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद् सर रिचर्ड एफ़
बर्टन ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया. अरब
के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ पर भी इस
ग्रन्थ की छाप है. राजस्थान की दुर्लभ
यौन चित्रकारी के अतिरिक्त खजुराहो, कोणार्क
आदि की शिल्पकला भी कामसूत्र से
ही प्रेरित है.
एक ओर रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र
की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत
की हैं. दूसरी ओर गीत-
गोविन्द के रचयिता जयदेव ने
अपनी रचना ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र
का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया है.
कामसूत्र के अनुसार -
स्त्री को कठोर शब्दों का उच्चारण,
टेढ़ी नजर से देखना, दूसरी ओर मुंह
करके बात करना, घर के दरवाजे पर खड़े रहना, द्वार पर खड़े
होकर इधर-उधर देखना, घर के बगीचे में जाकर
किसी के साथ बात करना और एकांत में अधिक देर तक
ठहरना त्याग देना चाहिए.
स्त्री को चाहिए कि वह पति को आकर्षित करने के
लिए बहुत से भूषणों वाला, तरह-तरह के फूलों और सुगंधित
पदार्थों से युक्त, चंदन आदि के विभिन्न अनूलेपनों वाला और
उज्ज्वल वस्त्र धारण करे.
स्त्री को अपने धन और पति की गुप्त
मंत्रणा के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए.
पत्नी को वर्षभर की आय
की गणना करके उसी के अनुसार व्यय
करना चाहिए.
स्त्री को चाहिए कि वह सास-ससुर
की सेवा करे और उनके वश में रहे.
उनकी बातों का उत्तर न दे. उनके सामने
बोलना ही पड़े, तो थोड़ा और मधुर बोले और उनके पास
जोर से न हंसे. स्त्री को पति और परिवार के सेवकों के
प्रति उदारता और कोमलता का व्यवहार करना चाहिए.
स्त्री और पुरुष में ये गुण होने चाहिए- प्रतिभा,
चरित्र, उत्तम व्यवहार, सरलता, कृतज्ञता,
दीर्घदृष्टि, दूरदर्शी. प्रतिज्ञा पालन, देश
और काल का ज्ञान, नागरिकता, अदैन्य न मांगना, अधिक न हंसना,
चुगली न करना, निंदा न करना, क्रोध न करना, अलोभ,
आदरणीयों का आदर करना, चंचलता का अभाव, पहले न
बोलना, कामशास्त्र में कौशल, कामशास्त्र से संबंधित क्रियाओं, नृत्य-
गीत आदि में कुशलता. इन गुणों के विपरीत
दशा का होना दोष है.
ऐसे पुरुष यदि ज्ञानी भी हों,
तो भी समागम के योग्य नहीं हैं- क्षय
रोग से ग्रस्त, अपनी पत्नी से अधिक
प्रेम करने वाला, कठोर शब्द बोलने वाला, कंजूस, निर्दय, गुरुजनों से
परित्यक्त, चोर, दंभी, धन के लोभ से शत्रुओं तक से
मिल जाने वाला, अधिक लज्जाशील.
वात्स्यायन ने पुरुषों के रूप को भी निखारने के उपाय बताए
हैं. उनका मानना है कि रूप, गुण, युवावस्था, और दान आदि में धन
का त्याग पुरुष को सुंदर बना देता है. तगर, कूठ और
तालीस पत्र को पीसकर बनाया हुआ
उबटन लगाना पुरुष को सुंदर बना देता है. पुनर्नवा,
सहदेवी, सारिवा, कुरंटक और कमल के पत्तों से
बनाया हुआ तेल आंख में लगाने से पुरुष रूपवान बन जाता है.
आधुनिक जीवनशैली और
बढ़ती यौन-स्वच्छंदता ने समाज को कुछ भयंकर
बीमारियों की सौगात दी है.
एड्स
भी ऐसी ही बीमारियों में
से एक है. अगर लोगों को कामशास्त्र का उचित ज्ञान हो, तो इस
तरह की बीमारियों से बचना एकदम मुमकिन
है.

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