Wednesday, February 10, 2016

जामवन्त कोई भालू / रीछ नहीं थे, बल्कि वो मनुष्य थे,


जामवंत जी के पिता का नाम गदगदा था, और इनकी माता का नाम अभी तक तो मुझे खोजने पर नहीं मिला है, परन्तु जल्दी ही आप सबके समक्ष जामवंत जी की माता का नाम भी खोज कर प्रस्तुत करूँगा। जो जामवंत जी के पिता जी का नाम ज्ञात होता है वह युद्ध काण्ड को ध्यानपूर्वक पढ़ने से प्राप्त हो जाता है, क्योंकि जब रावण अपने गुप्तचर शार्दूल को श्रीराम की सेना की गुप्त जानकारी प्राप्त करने का आदेश देता है, तब शार्दूल पूरी चतुरता से श्रीराम की सेना की सभी गुप्त जानकारिया रावण को उपलब्ध करवाता है, तब सेना नायको के बारे में भी बताता जाता है, तब वह कहता है की :
अथ ऋक्ष रजसः पुत्रो युधि राजन् सुदुर्जयः |
गद्गदस्य अथ पुत्रो अत्र जाम्बवान् इति विश्रुतः ||
(वाल्मीकि रामायण ६-३०-२०)
"निश्चित तौर पर राजा सुग्रीव, जो ऋक्षराज के पुत्र हैं उनके रहते युद्धक्षेत्र में विजय प्राप्त करना बेहद मुश्किल है, अर्थात सुग्रीव महाराज बहुत बड़े योद्धा है, और चतुर सेनापति भी, इसके साथ ही शार्दूल गुप्तचर रावण को बताता है की श्रीराम की सेना में गदगदा का पुत्र भी है जो जामवंत के नाम से विख्यात है।"
अतः यहाँ हमें उनके पिता का नाम ज्ञात हो गया की उनके पिता का नाम गदगदा था, अब भी यदि कोई भाई ऐसी शंका करे की, वो भालू / रीछ ही थे, तो जरा इस बात को ध्यानपूर्वक समझिए,
देखो ऋक्ष का अर्थ भालू के अतिरिक्त तारा (स्टार) तथा नक्षत्र भी होता है और एक अर्थ "संरक्षक" भी होता है, यही बात वाल्मीकि रामायण में "ऋक्षराज जामवंत" के लिए कही है, क्योंकि वो ऋक्ष थे, जैसे वानर प्रजाति मनुष्य होती है वैसे ही वानरों में "ऋक्ष" थे जामवंत यानी वानर प्रजाति के संरक्षक, इसलिए उन्हें ऋक्षराज कहा गया, क्योंकि उन्होंने सुग्रीव का संरक्षण बाली से किया था, इसलिए वो ऋक्षराज कहलाये। इसको दूसरे तरीके से भी समझिए, देखिये :
सुग्रीव जो एक वानर प्रजाति के मनुष्य ही थे, भले ही पौराणिक बंधू उन्हें वानर का अर्थ बंदर से लेते हो, मगर एक बात उन्हें माननी पड़ेगी की महाराज सुग्रीव के पिता जी का नाम भी ऋक्षराज था, जैसा की गुप्तचर शार्दूल ने रावण को गुप्त सुचना के तहत जानकारी दी, तो क्या पौराणिक बंधू अभी भी यही कहेंगे की ऋक्ष का अर्थ भालू तो यानी की सुग्रीव महाराज एक वानर (बन्दर) और उनके पिता एक ऋक्ष (भालू), क्या ये तर्क अथवा कपोल कल्पना आपके मस्तिष्क के भीतर जगह बना सकती है ?
अतः यहाँ दो बाते सिद्ध होती हैं, पहली वानर ये कोई पशु से सम्बंधित नाम नहीं हैं, ये एक प्रजाति है, और ऋक्ष का अर्थ यहाँ संरक्षक ही मानना पड़ेगा, क्योंकि यहाँ ऋक्ष का अर्थ संरक्षक, एक प्रजाति के संरक्षण से है, इस राम रावण युद्ध में हनुमान जी के पिता जी ने भी अपनी वानर सेना श्रीराम की सहायता हेतु भेजी थी, क्योंकि वे भी वानर प्रजाति से ही थे, और इस युद्ध में सुग्रीव की सहायता करना उनका धर्म भी था, और श्रीराम के प्रति उनका श्रद्धाभाव भी।
क्या कोई बन्दर एक मनुष्य की सहायता हेतु अपनी बन्दर सेना को भेजने का विचार सोच सकता है ? नहीं, ये कार्य नीतिनिपुण, बुद्धिमान और श्रेष्ठ आचरण वाले मनुष्य के हो सकते हैं किसी पशु के नहीं।
एक बात और, तिब्बत के राजा इंद्र की सहायता भी एक बार जामवंत जी ने की थी, तब वे युवा अवस्था में थे, लेकिन जब माता सीता को लंका पार खोजने का विषय रामायण में आता है तब ये ज्ञात होता है की जामवंत जी उस समय वृद्धावस्था में थे, क्योंकि उन्होंने स्वयं हनुमान जी से कहा था :
"मैं अब युवा तो नहीं रहा, वह युवाशक्ति जो इन्द्र (तिब्बत का राजा) को युद्ध में सहायता प्रदान की थी, यदि मैं युवा होता तो ये समुद्र पार कर लंका जाकर वापस आ जाता, लेकिन अभी में वृद्ध हो गया हु, सागर पार कर लंका जाने की क्षमता तो मुझमे है, मगर वापस आने में सक्षम नहीं, अतः हे हनुमान, तुम लंका पार करके जाओ और सीता माता का स्थान ज्ञात करो"
अतः यहाँ जब वो वृद्ध अवस्था में थे तब भी उन्होंने सुग्रीव की बाली से रक्षा हेतु एक प्रण किया था, इसलिए भी उन्हें ऋक्ष अर्थात वानर प्रजाति के संरक्षक कहा गया, क्योंकि उन्होंने सुग्रीव का संरक्षण बाली से किया था, इसलिए वो ऋक्षराज कहलाये।
फिर भी यदि जिद्द और पूर्वाग्रह ही रखो तो जरा इस पर विचार करो :
यदि वो रीछ ही थे, तो जो एक पुराण कहता है की ऋक्षराज जामवंत ने अपनी पुत्री जाम्वन्ति का विवाह कृष्ण से किया, हालांकि ये कथा प्रक्षेप है, तथापि क्या भालू की बेटी का विवाह कृष्ण (मनुष्य) से संभव है ?
ये इसलिए भी अहम है क्योंकि वो पुराण की कथा बताती है की कृष्ण और जाम्वन्ति के मिलन से एक पुत्र भी उतपन्न हुआ, जो बलशाली था, और उसने महाभारत युद्ध में भूमिका भी निभाई, अब क्या भूमिका निभाई, ये तो कुछ ज्ञात अभी तक नहीं हो पाया है, क्योंकि जहाँ तक मैं जानता हु, कृष्ण का केवल एक विवाह हुआ, और उनका केवल एक पुत्र था "प्रद्युम्न" वो भी बारह वर्षो की अखंडित ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा उपरांत उत्पन्न हुआ।
अतः उपरोक्त लेख से पूरी तरह ये कपोल कल्पना खंडित हो जाती है की ऋक्षराज जामवंत इसलिए भालू कहे जाए क्योंकि वो ऋक्ष थे, ये निराधार तथ्य साबित हुआ, यदि फिर भी ऋक्ष होने से जामवंत को भालू संज्ञा देते हो, तो जो सुग्रीव महाराज के पिता का नाम ऋक्षराज ही था, तो उन्हें भी भालू मानो, और उन भालू पिता की संतान एक वानर (बन्दर) सुग्रीव उत्पन्न कैसे हुआ ये सिद्ध करिये। वैसे आप सभी जिन्होंने भी वाल्मीकि रामायण को ध्यान से पढ़ा है, तो जान लेवे की इसी रामायण में अनेको स्थान पर जामवंत जी को वानर शब्द से ही सम्बोधन किया है। अतः हठ, द्वेष, पूर्वाग्रही और दुराग्रही मानसिकता को त्याग कर, सत्यान्वेषी होकर, सत्य को ग्रहण करे और असत्य का त्याग करे।
हम सबको अपने उन महापुरुषों का सम्मान करना चाहिए, और उन महान पूर्वजो को उनके शौर्य और महान कार्यो के प्रति श्रद्धा और आदर भाव से सदैव स्मरण करना चाहिए, न की उन्हें पशुतुल्य बताकर जग हंसाई करवाने का माध्यम बनाना चाहिए।
आइये लौटिए वेदो की और।
नोट : अभी इनकी वंशावली पर खोज चल रही है, कुछ दिन प्रतीक्षा करे, इनकी वंशावली भी सप्रमाण उपलब्ध करवाऊंगा।
नमस्ते
साभार - रजनीश बंसल जी