Monday, April 21, 2014

चुम्बक के प्रकार(Types of Magnet)

मित्रो आप ने हमारे इसी ब्लाग पर वैदिक ग्रंथो मे चुम्बक का उल्लेख-  http://bharatiyasans.blogspot.in/2014/01/magnetic-levitation-and-hindu-temples.html                                                                             भारतीय वास्तुकला मे चुम्बक का उपयोगचुंबकीय उत्तोलन और हिंदू मंदिर                                                     
 अब आप पढंगे कि भारतीय ॠषियो(वैज्ञानिको द्वारा) चुम्बक का वर्गीकरण-                                                लगभग 11-12 ईस्वी के ग्रंथ रसावर्ण तंत्र मे चुम्बक के प्रकारो का वर्णन किया है-
लगभग 11-12 ईस्वी के ग्रंथ रसावर्ण तंत्र मे चुम्बक के प्रकारो का वर्णन किया है
*भ्रामक 
 *चुम्बक
 *कर्षण
  *द्रावक
   *रोमक
ऊपर 5 प्रकारो के 6उप प्रकार-                                               
* एक तरफ़ा(  single faced)
*दो तरफ़ा (double faced)
*तीन तरफ़ा(three faced)
 *चार तरफ़ा ( four faced)
 *पाच तरफ़ा(five faced)
    *अनेक तरफ़ा(multi faced)
ऊपर के कुल 30 प्रकारो के चुम्बको को 3 रंगो मे विभाजित किया है-                              
*पीला
*लाल
 *काला
इस प्रकार चुम्बक को कुल 90 प्रकार मे विभाजित किया।                                   
,,,,,,,,,,,,,,,,,,जय मा भारती                                                    
    
 
    

                                                                                                                                                


                                  

Tuesday, April 15, 2014

पारसी मत का मूल वैदिक धर्म(vedas are the root of parsiseem)

वेद ही सब मतो व सम्प्रदाय का मूल है,ईश्वर द्वारा मनुष्य को अपने कर्मो का ज्ञान व शिक्षा देने के लिए आदि काल मे ही परमैश्वर द्वारा वेदो की उत्पत्ति की गयी,लैकिन लोगो के वेद मार्ग से भटक जाने के कारण हिंदु,जेन,सिख,इसाई,बुध्द,पारसी,मुस्लिम,यहुदी,आदि मतो का उद्गम हो गया। मानव उत्पत्ति के वैदिक सिध्दांतानुसार मनुष्यो की उत्पत्ति सर्वप्रथम त्रिविष्ट प्रदेश(तिब्बत) से हुई (सत्यार्थ प्रकाश अष्ट्म समुल्लास) लेकिन धीरे धीरे लोग भारत से अन्य देशो मे बसने लगे जो लोग वेदो से दूर हो गए वो मलेच्छ कहलाए जैसा कि मनुस्मृति के निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है "
शनकैस्तु  क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय:।   
वृषलत्वं गता लोके ब्रह्माणादर्शनेन्॥10:43॥  -
निश्चय करके यह क्षत्रिय जातिया अपने कर्मो के त्याग से ओर यज्ञ ,अध्यापन,तथा संस्कारादि के निमित्त ब्राह्मणो के न मिलने के कारण शुद्रत्व को प्राप्त हो गयी।
 " पौण्ड्र्काश्र्चौड्रद्रविडा: काम्बोजा यवना: शका:।  
पारदा: पहल्वाश्र्चीना: किरात: दरदा: खशा:॥10:44॥  
पौण्ड्रक,द्रविड, काम्बोज,यवन, चीनी, किरात,दरद,यह जातिया शुद्रव को प्राप्त हो गयी ओर कितने ही मलेच्छ हो गए जिनका विद्वानो से संपर्क नही रहा।  अत: यहा हम कह सकते है कि भारत से ही आर्यो की शाखा अन्य देशो मे फ़ैली ओर वेदो से दूर रहने के कारण नए नए मतो का निर्माण करने लगे। इनमे ईरानियो द्वारा "पारसियो" मत का उद्गम हुआ।पारसी मत की पवित्र पुस्तक जैद अवेस्ता मे कई बाते वेदो से ज्यों की त्यों ली गयी है। यहा मै कुछ उदाहरण द्वारा वेदो ओर पारसी मत की कुछ शिक्षाओ पर समान्ता के बारे मे लिखुगा-   1 वैदिक ॠषियो का पारसी मत ग्रंथ मे नाम- 
पारसियो की पुस्तक अवेस्ता के यास्ना मे 43 वे अध्याय मे आया है " अंड्गिरा नाम का एक महर्षि हुवा जिसने संसार उत्पत्ति के आरंभ मे अर्थववेद का ज्ञान प्राप्त किया।  
 एक अन्य पारसी ग्रंथ शातीर मे व्यास जी का उल्लेख है-"

"अकनु बिरमने व्यास्नाम अज हिंद आयद  !                                दाना कि  अल्क    चुना  नेरस्त  !!

अर्थात  :- "व्यास नाम का एक ब्राह्मन हिन्दुस्तान से आया . वह बड़ा ही  चतुर  था और उसके सामान अन्य कोई बुद्धिमान नहीं हो सकता  ! "    पारसियो मे अग्नि को पूज्य देव माना गया है ओर वैदिक ॠति के अनुसार दीपक जलाना,होम करना ये सब परम्परा वेदो से पारसियो ने रखी है।
 इनकी प्रार्थ्नात की स्वर ध्वनि वैदिक पंडितो द्वारा गाए जाने वाले साम गान से मिलती जुलती है। 
 पारसियो के ग्रंथ  जिन्दावस्था है यहा जिंद का अर्थ छंद होता है जैसे सावित्री छंद या छंदोग्यपनिषद आदि|
 पारसियो द्वारा वैदिक वर्ण व्यवस्था का पालन करना-
पारसी भी सनातन की तरह चतुर्थ वर्ण व्यवस्था को मानते है-
1) हरिस्तरना (विद्वान)-ब्राह्मण  
2) नूरिस्तरन(योधा)-क्षत्रिए  
3) सोसिस्तरन(व्यापारी)-वैश्य
 4) रोजिस्वरन(सेवक)-शुद्र                                  
संस्कृत ओर पारसी भाषाओ मे समानता- 
यहा निम्न पारसी शब्द व संस्कृत शब्द दे रहा हु जिससे सिध्द हो जाएगा की पारसी भाषा संस्कृत का अपभ्रंश है-
 कुछ शब्द जो कि ज्यों के त्यों संस्कृत मे से लिए है बस इनमे लिपि का अंतर है-
 पारसी ग्रंथ मे वेद- अवेस्ता जैद मे वेद का उल्लेख- 
1) वए2देना (यस्न 35/7) -वेदेन    
अर्थ= वेद के द्वारा  
 2) वए2दा (उशनवैति 45/4/1-2)- वेद  
 अर्थ= वेद     
 
वएदा मनो (गाथा1/1/11) -वेदमना  
अर्थ= वेद मे मन रखने वाला    
अवेस्ता जैद ओर वेद मंत्र मे समानता:- वेद से अवेस्ता जैद मे कुछ मंत्र लिए गए है जिनमे कुछ लिपि ओर शब्दावली का ही अंतर है, सबसे पहले अवेस्ता का मंथ्र ओर फ़िर वेद का मंत्र व अर्थ-                                        1) अह्मा यासा नमडंहा उस्तानजस्तो रफ़ैब्रह्मा(गाथा 1/1/1) 
मर्त्तेदुवस्येSग्नि मी लीत्…………………उत्तानह्स्तो नमसा विवासेत ॥ ॠग्वेद 6/16/46॥ 
=है मनुष्यो | जिस तरह योगी ईश्वर की उपासना करता है उसी तरह आप लोग भी करे।     
   2) पहरिजसाई मन्द्रा उस्तानजस्तो नम्रैदहा(गाथा 13/4/8)  
 …उत्तानहस्तो नम्सोपसघ्………अग्ने॥ ॠग्वेद 3/14/5॥
 =विद्वान लोग विद्या ,शुभ गुणो को फ़ैलाने वाला हो।
 3) अमैरताइती दत्तवाइश्चा मश्क-याइश्चा ( गाथा 3/14/5) 
-देवेभ्यो……अमृतत्व मानुषेभ्य ॥ ॠग्वेद 4/54/2॥
 =है मनु्ष्यो ,जो परमात्मा सत्य ,आचरण, मे प्रेरणा करता है ओर मुक्ति सुख देकर सबको आंदित करते है।  4) मिथ्र अहर यजमैदे।(मिहिरयश्त 135/145/1-2) 
-यजामहे……।मित्रावरुण्॥ॠग्वेद 1/153/1॥ 
जैसे यजमान अग्निहोत्र ,अनुष्ठानो से सभी को सुखी करते है वैसे समस्त विद्वान अनुष्ठान करे।        उपरोक्त प्रमाणो से सिध्द होता है कि वेद ही सभी मतो का मूल स्रोत है,किसी भी मत के ग्रंथ मे से कोई बात मानवता की है तो वो वेद से ली गई है बाकि की बाते उस मत के व्यक्तियो द्वारा गडी गई है। 
om jai maa bharti

Tuesday, April 1, 2014

वेदो ओर महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख (photosynthesis explaned in ved and mahabharat)

मित्रो नमस्ते,,,
इस बार आप के लिए वेदो ओर महाभारत मे वर्णित प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का वर्णन ले कर आया हु। …

प्रकाश संश्लेषण-  

सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है।
इस क्रिया मे पादप की पत्तिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं।  ……
हमारे धर्म ग्रंथो मे इस क्रिया का उल्लेख है .......

वेदो मे प्रकाश संश्लेषण- 
 
वेदो मे प्रकाश संश्लेषण क्रिया का उल्लेख नीचे दिए गए इस चित्र मे देखे-
 ॠग्वेद के 10 मं के 97 सुक्त के 5 वे मंत्र मे पत्तियो द्वारा सूर्य के प्रकाश को ग्रहण कर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का स्पष्ट उल्लेख है।
महाभारत मे भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख है महाभारत मे ये ज्ञान मर्हिषी शोनक जी ने इसी मंत्र के विश्लेषण ओर अपनी योग बल के आधार पर युधिष्टर को दिया था…जो महाभारत मे इस प्रकार मिलता है;

महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख- शौनकेनैवम उक्तस तु कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः

पुरॊहितम उपागम्य भरातृमध्ये ऽबरवीद इदम [1]------------------------------------------------
परस्थितं मानुयान्तीमे बराह्मणा वेदपारगाः
न चास्मि पालने शक्तॊ बहुदुःखसमन्वितः [2]------------------------------------------------
परित्यक्तुं न शक्नॊमि दानशक्तिश च नास्ति मे
कथम अत्र मया कार्यं भगवांस तद बरवीतु मे [3]
------------------------------------------------
मुहूर्तम इव स धयात्वा धर्मेणान्विष्य तां गतिम
युधिष्ठिरम उवाचेदं धौम्यॊ धर्मभृतां वरः [4]
------------------------------------------------
पुरा सृष्टनि भूतानि पीड्यन्ते कषुधया भृशम
ततॊ ऽनुकम्पया तेषां सविता सवपिता इव [5]
------------------------------------------------
गत्वॊत्तरायणं तेजॊ रसान उद्धृत्य रश्मिभिः
दक्षिणायनम आवृत्तॊ महीं निविशते रविः [6]
------------------------------------------------
कषेत्रभूते ततस तस्मिन्न ओषधीर ओषधी पतिः
दिवस तेजः समुद्धृत्य जनयाम आस वारिणा [7]
------------------------------------------------
निषिक्तश चन्द्र तेजॊभिः सूयते भूगतॊ रविः
ओषध्यः षड्रसा मेध्यास तदेवान्धस् पराणिनां भुवि [8]
------------------------------------------------
एवं भानुमयं हय अन्नं भूतानां पराणधारणम
पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वरज [9]
------------------------------------------------
राजानॊ हि महात्मानॊ यॊनिकर्म विशॊधिताः
उद्धरन्ति परजाः सर्वास तप आस्थाय पुष्कलम [10] [महाभारत वन पर्व ३. भाष्य]
------------------------------------------------

अर्थ - शौनक ऋषि के समक्ष अपने भाइयों के सामने कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने कहा -

हे! ऋषिवर, ब्रह्मा जी की बांते जो वेदों में लिखी गयी है, उनका अनुपालन करते हुए, मैं वन की ओर गमन कर रहा हूँ, मै अपने अनुचरो का समर्थन व उनका पालन करने में असमर्थ हूँ, उन्हें जीविका प्रदान करने की शक्ति मेरे पास नहीं है, अतः हे! मुनिश्रेष्ठ बताइए अब मुझे क्या करना चाहिए?

अपनी योगशक्तियों द्वारा संपूर्ण वस्तुस्तिथि का पता लगाकर गुणी पुरुषो में श्रैष्ठ धौम्य, युधिष्ठिर के सन्मुख होकर बोले -

"हे कुन्तीपुत्र! तू अपने अनुजों की जीविका की चिंता मत कर, तेरा कर्तव्य एक पिता का है, अति प्राचीन काल से ही सूर्यदेव अपने मृत्युलोकवासी बालकों की जीविका चलाते अर्थात उन्हें भोजन देते चले आ रहें हैं! जब वे भूंख से पीड़ित होते है, तब सूर्यदेव उन पर करुणा बरसाते हैं, वे अपनी किरणों का दान पौधों को देते हैं, उनकी किरणें जल को आकर्षित करती हैं, उनका तेज (गर्मी) समस्त पृथ्वी के पेड़-पौधों में प्रसारित (फैलता) होता है, तथा पौधे भी उनके इस वरदान (प्रकाश) का उपयोग करते है, तथा मरुत (हवा या कह सकते है CO2) एवं इरा (जल) की शिष्टि (सहायता) से देवान्धस् (पवित्र भोजन) का निर्माण करते हैं! जिससे वे इस लोक (संसार/मनुष्य) के जठरज्वलन (भूख) को शांत करते हैं!

सूर्यदेव इसीलिए सभी प्राणियों के पिता हैं! युधिष्ठिर, तू नहीं! समस्त प्राणी उन्ही के चरणों में शरण लेते हैं! सारे उच्च कुल में जन्मे राजा, तपस्या की अग्नि में तपकर ही बाहर निकलते हैं, उन्हें जीवन में वेदना होती ही है, अतः तू शोक ना कर, जिस प्रकार सूर्यदेव संसार की जीविका चलाते हैं, उसी प्रकार तेरे अनुजों के कर्म उनकी जीविका चलाएंगे! हे गुणी! तू कर्म में आस्था रख!
 
यहा पोधो के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मे सुर्य के प्रकाश ओर कार्बनडाई ओक्साईड,जल द्वारा भोजन निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है।                                            
इस लेख को लिखने मे मैने इस ब्लोग की सहायता भी ली है -
http://www.vijaychouksey.blogspot.in/2014/02/photosynthesis-explained-in-mahabharata.html इस ब्लोग पर अवश्य क्लिक करे इस पर आप भारद्वाज मुनिकृत विमानशास्त्र भी पढ सकते है।                                                                            
विशेष धन्यवाद रजनीश बंसल जी