Tuesday, April 1, 2014

वेदो ओर महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख (photosynthesis explaned in ved and mahabharat)

मित्रो नमस्ते,,,
इस बार आप के लिए वेदो ओर महाभारत मे वर्णित प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का वर्णन ले कर आया हु। …

प्रकाश संश्लेषण-  

सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है।
इस क्रिया मे पादप की पत्तिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं।  ……
हमारे धर्म ग्रंथो मे इस क्रिया का उल्लेख है .......

वेदो मे प्रकाश संश्लेषण- 
 
वेदो मे प्रकाश संश्लेषण क्रिया का उल्लेख नीचे दिए गए इस चित्र मे देखे-
 ॠग्वेद के 10 मं के 97 सुक्त के 5 वे मंत्र मे पत्तियो द्वारा सूर्य के प्रकाश को ग्रहण कर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का स्पष्ट उल्लेख है।
महाभारत मे भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख है महाभारत मे ये ज्ञान मर्हिषी शोनक जी ने इसी मंत्र के विश्लेषण ओर अपनी योग बल के आधार पर युधिष्टर को दिया था…जो महाभारत मे इस प्रकार मिलता है;

महाभारत मे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का उल्लेख- शौनकेनैवम उक्तस तु कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः

पुरॊहितम उपागम्य भरातृमध्ये ऽबरवीद इदम [1]------------------------------------------------
परस्थितं मानुयान्तीमे बराह्मणा वेदपारगाः
न चास्मि पालने शक्तॊ बहुदुःखसमन्वितः [2]------------------------------------------------
परित्यक्तुं न शक्नॊमि दानशक्तिश च नास्ति मे
कथम अत्र मया कार्यं भगवांस तद बरवीतु मे [3]
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मुहूर्तम इव स धयात्वा धर्मेणान्विष्य तां गतिम
युधिष्ठिरम उवाचेदं धौम्यॊ धर्मभृतां वरः [4]
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पुरा सृष्टनि भूतानि पीड्यन्ते कषुधया भृशम
ततॊ ऽनुकम्पया तेषां सविता सवपिता इव [5]
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गत्वॊत्तरायणं तेजॊ रसान उद्धृत्य रश्मिभिः
दक्षिणायनम आवृत्तॊ महीं निविशते रविः [6]
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कषेत्रभूते ततस तस्मिन्न ओषधीर ओषधी पतिः
दिवस तेजः समुद्धृत्य जनयाम आस वारिणा [7]
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निषिक्तश चन्द्र तेजॊभिः सूयते भूगतॊ रविः
ओषध्यः षड्रसा मेध्यास तदेवान्धस् पराणिनां भुवि [8]
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एवं भानुमयं हय अन्नं भूतानां पराणधारणम
पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वरज [9]
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राजानॊ हि महात्मानॊ यॊनिकर्म विशॊधिताः
उद्धरन्ति परजाः सर्वास तप आस्थाय पुष्कलम [10] [महाभारत वन पर्व ३. भाष्य]
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अर्थ - शौनक ऋषि के समक्ष अपने भाइयों के सामने कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने कहा -

हे! ऋषिवर, ब्रह्मा जी की बांते जो वेदों में लिखी गयी है, उनका अनुपालन करते हुए, मैं वन की ओर गमन कर रहा हूँ, मै अपने अनुचरो का समर्थन व उनका पालन करने में असमर्थ हूँ, उन्हें जीविका प्रदान करने की शक्ति मेरे पास नहीं है, अतः हे! मुनिश्रेष्ठ बताइए अब मुझे क्या करना चाहिए?

अपनी योगशक्तियों द्वारा संपूर्ण वस्तुस्तिथि का पता लगाकर गुणी पुरुषो में श्रैष्ठ धौम्य, युधिष्ठिर के सन्मुख होकर बोले -

"हे कुन्तीपुत्र! तू अपने अनुजों की जीविका की चिंता मत कर, तेरा कर्तव्य एक पिता का है, अति प्राचीन काल से ही सूर्यदेव अपने मृत्युलोकवासी बालकों की जीविका चलाते अर्थात उन्हें भोजन देते चले आ रहें हैं! जब वे भूंख से पीड़ित होते है, तब सूर्यदेव उन पर करुणा बरसाते हैं, वे अपनी किरणों का दान पौधों को देते हैं, उनकी किरणें जल को आकर्षित करती हैं, उनका तेज (गर्मी) समस्त पृथ्वी के पेड़-पौधों में प्रसारित (फैलता) होता है, तथा पौधे भी उनके इस वरदान (प्रकाश) का उपयोग करते है, तथा मरुत (हवा या कह सकते है CO2) एवं इरा (जल) की शिष्टि (सहायता) से देवान्धस् (पवित्र भोजन) का निर्माण करते हैं! जिससे वे इस लोक (संसार/मनुष्य) के जठरज्वलन (भूख) को शांत करते हैं!

सूर्यदेव इसीलिए सभी प्राणियों के पिता हैं! युधिष्ठिर, तू नहीं! समस्त प्राणी उन्ही के चरणों में शरण लेते हैं! सारे उच्च कुल में जन्मे राजा, तपस्या की अग्नि में तपकर ही बाहर निकलते हैं, उन्हें जीवन में वेदना होती ही है, अतः तू शोक ना कर, जिस प्रकार सूर्यदेव संसार की जीविका चलाते हैं, उसी प्रकार तेरे अनुजों के कर्म उनकी जीविका चलाएंगे! हे गुणी! तू कर्म में आस्था रख!
 
यहा पोधो के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मे सुर्य के प्रकाश ओर कार्बनडाई ओक्साईड,जल द्वारा भोजन निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है।                                            
इस लेख को लिखने मे मैने इस ब्लोग की सहायता भी ली है -
http://www.vijaychouksey.blogspot.in/2014/02/photosynthesis-explained-in-mahabharata.html इस ब्लोग पर अवश्य क्लिक करे इस पर आप भारद्वाज मुनिकृत विमानशास्त्र भी पढ सकते है।                                                                            
विशेष धन्यवाद रजनीश बंसल जी

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