Tuesday, May 19, 2020

उत्खनन में मिला भारत का प्राचीन मापक सर्वेक्षण यंत्र

1976 - 77 की पुरातत्व विभाग के इस विवरण के अनुसार गुजरात की खीरसरा हडप्पन साईट से गढ वाली वडी स्थान से एक सर्वेक्षण उपकरण मिला है जो कि आधुनिक प्रिज्मेटिक कम्पास की तरह है..
यहीं कारण है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसे ऐसे मापक - सर्वेक्षण उपकरण थे जिनकी सहायता से सटीक माप की सडकें, किले, शस्त्र, रथ, भवन और मंदिरों का निर्माण सम्भव हो सका था..

Thursday, May 14, 2020

ईरान के संस्कृत अपभ्रंश नाम वाले पर्वत

ईरान की प्राचीनकाल में संस्कृत से निकटता इसी बात से सिद्ध है कि वहां पारसी मत का आरम्भ हुआ तथा जिसका मुख्य ग्रंथ अवेस्ता तथा उसकी भाषा संस्कृत जैसी है तथा पारसियों के व्यवहार, कर्मकांडों की समानता वैदिक क्रियाकलापों से देखी जा सकती है। एक तरह से पारसी मत को वैदिक धर्म का हिस्सा कह सकते हैं जैसे कि भारत के अनेकों मत हैं। अत: प्राचीनकाल में ईरान के अनेकों स्थानों के नाम भी संस्कृत आधारित होने चाहिए। ये बात अलग है कि ईस्लामीकरण ने क ई चीजों के नाम के साथ - साथ ईरान का प्राचीन इतिहास- संस्कृति भी बदली होगी किंतु फिर भी कुछ नाम ऐसे मिलते हैं या उनके पुराने नाम ऐसे मिलते हैं कि उसकी संस्कृत से निष्पत्ति दिख ही जाती है -
ऐसे ही ईरान के तीन पर्वतों के नाम देते हैं, जिसमें से दो नाम कृष्णानंद जी ने सुझाये थे -
1) कुबेर कोह - ये पर्वत शिखर ईरान में केस्पियन सागर से नीचे कहीं दायीं ओर है, इसकी हमें गूगल मेप पर कोई लोकेशन प्राप्त नहीं हुई किंतु 18 शताब्दी में कैथ जोनशन द्वारा बनाये गये, वर्ल्ड एटलस में परसिया के नक्शे में है। जिसे चित्र में दर्शाया गया है, वहां कुबेर कोह देख सकते हैं। यहां कोह का अर्थ शिखर जो कि परसियन है तथा कुबेर को आप सब जानते ही होगें अत: कुबेर कोह का अर्थ है - कुबेर शिखर 
सम्भवतः अब इसका कुछ अन्य नाम हो गया हो किंतु 18 वीं शताब्दी के जेग्रोफिकल एटलस पर इस नाम का स्थान अवश्य है। 
2) पर्वत धामावंत - यह गूगल मेप पर देखा जा सकता है, यह एक ज्वालामुखी पर्वत है। इसका संस्कृत तत्सम् रुप इस प्रकार है - धामावंत - धूमवंत पर्वत.. ये ज्वालामुखी है तो उठते धूएं के कारण इसका नाम धूमवंत से धामाव़त होना सिद्ध है.. 
3) कर्कश पर्वत - ये संस्कृत के कर्क से निष्पन्न लगता है..


Monday, May 11, 2020

बेबीलोन में मोर कैसे पहुंचा?



बेबीलोन में बाबुली साम्राज्य का उदय हुआ तब वहां के लोग मोर से परिचित नहीं थे.. मोर का परिचय वहां प्रथम बार भारतीय व्यापारियों द्वारा करवाया गया था... इस सम्बन्ध में एक प्राचीन कथा का संकलन बौद्ध जातक कथा "बावुरी जातक" में मिलता है.. The journal of the Royal Asiatic socity of great Britain and Ireland के 1898 April संस्करण में बावुरी की पहचान बेबीलोन देश के रुप में Rayis davids के जातक अनुवाद से दर्शायी है। 
जातक कथाओं में इस देश की प्राचीन कथायें और ऐतिहासिक विवरण बुद्ध द्वारा अपने पुनर्भव के रुप में दर्शायी गयी हैं जो कि बुद्ध द्वारा लोगों को उपदेश देने के लिए एक मसाला मात्र है। इन्हीं में से एक जातक बावुरी जातक है जिसमें बुद्ध ने मोर को स्वयं का पुनर्भव और कौऐ को निग्रंथनाथ पुत्त ( जैन गणधर) का पुनर्भव बताया है ( बुद्ध मोर की तरह श्रेष्ठ और जैन गणधर कौऐ की तरह निंदनीय).. 
इस जातक कथा के अनुसार प्राचीन काल में वाराणसी के कुछ व्यापारी भारत में कौआ लेकर गये थे, जिसे पहले कभी बावुर साम्राज्य के लोगों ने नहीं देखा था.. भारतीयों ने वो कौआ उन्हें बैच दिया। फिर दूसरी बार भारतीय वहां मोर ले गये, उसे उन्होंने और मंहगा बैचा। पूरी कथा चित्र में पढें.. 
चाहे ये कथा बुद्ध द्वारा पुनर्भव रुप में हो किंतु ये जरुर बताती है की मोर बेबीलोन भारतीय व्यापारियों द्वारा पहुंचा था। जातक कथाओं में ऐतिहासिक और लोक कथाओं को बुद्ध के पुनर्भव के रुप में इसलिए दर्शाया गया है कि बुद्ध की श्रेष्ठता के साथ - साथ मसाला लगाकर लोगों में बुद्धोपदेश के प्रति रुचि लायी जा सके। 
बाबुली - बावुरी ( ब - व, ली - री €य, र, ल)