Sunday, June 22, 2014

क्या चार्वाक दलित क्रांतिकारी थे ...

चार्वाक जिन्हें देख हम सब नास्तिक की छवि बना लेते है ,खेर चार्वाक नास्तिक अनीश्वर वादी थे ,,,लेकिन वो पहले से ही ऐसे थे या बाद मे ऐसे हुए कुछ कहा नहीं जा सकता है ,,,लेकिन आज कल एक हवा उड़ाई जा रही है कि चार्वाक मूलनिवासी आन्दोलन कारी थे ,,,इसका कारण है की दलितों ने जो भी वेदविरोधी देखा उसे मूलनिवासी क्रांतिकारी बना दिया चाहे कोई भी हो ,,,
अब हम चार्वाक के बारे मे कुछ जानेंगे ...चार्वाक असल मे ब्राह्मण वाद का विरोधी था लेकिन उनके दर्शन मे छुआछूत या वर्ण व्यवस्था के विरोध मे कुछ नही मिलता है तो चार्वाक को मूलनिवासी क्रांतिकारी नही कह सकते है ...हाँ पाखंड विरोधी कहा जा सकता है लेकिन चार्वाक की कुछ शिक्षाए पर नजर डालते है ...

चार्वाक का अनीश्वरवाद :-

जैसा की बताया है की चार्वाक ब्राह्मण विरोधी थे तो ब्राह्मणों के ईश्वर वाद का उन्होंने खंडन किया ओर राजा को ही ईश्वर कहा :-
"लोक सिध्दो राजा परमेश्वर:" 
राजा ही परमैश्वर है|

चार्वाक का अनात्मवाद :-

चार्वाक ने ब्राह्मणओ के द्वारा आत्मा की सत्ता के सिधान्त का खंडन किया अर्थात ब्राह्मण आत्मा को मानते है तो चार्वाक ने मानने से इंकार कर दिया :-
"तत् चैतन्यविशिष्टदेह एवात्म् देहातिरिक्त आत्मानि प्रमाणाभावात् प्रत्यक्षैकप्रमाणवादितया अनुमानदेरनड्गीकारेण प्रामाण्याभावात्||
चैतेन्यविशिष्ट देह ही आत्मा है,देह के अतिरिक्त आत्मा के होने मे कोई प्रमाण नही जिनलोगो के मत मे केवल एकमात्र प्रत्यक्ष ही प्रमाणरूप मे परिणत होता है अनुमानादि प्रमाण मे परिमाणित नही होता उ लोगो के मत मे देह के अतिरिक्त आत्मा मानने मे दुसरा कोई प्रमाण नही है|

चार्वाक द्वारा 4 भूतो को ही मानना :-

ब्राह्मण आदि 5 महाभूतो को मानते थे लेकिन चार्वाक ने इससे इंकार किया ओर केवल 4 भूत माने :-
तदेतत् सर्व्व समग्राहि" अत्र चत्वारि भूतानि स्यापवलानिला:||
इस जगत मे भूमि ,जल,अग्नि,वायु चार ही भूत है|

चार्वाक द्वारा पुनर्जनम को अमान्य बताना:-

ब्राहमणओ के पुनर्जनम के सिधान्त को चार्वाक ने गलत बताया :-
  भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:इति|| 
देह जलने पर किसी प्रकार का पुनरागमन नही हो सकता है|

चार्वाक द्वारा वेदों का विरोध :-

चार्वाक ने अपने ब्राह्मण विरोध के चलते वेदों का भी विरोध किया :-
"त्रयो वेदस्य कर्तारो भण्डधूर्तनिशाचरा:| जर्फरीतुर्फरीत्यादि पण्डितानां वच: स्मृतम्||
भंड,धूर्त,निशाचर ये लोग वेद के कर्ता है| जर्फरी तुर्फरी इत्यादि वाक्यो से वेद भरा है|
अब ये पता नही की चार्वाक को जाफरी तुर्फरी शब्द कोनसे वेद मे दिखे ,,खेर ब्राह्मण विरोध के चलते सब कुछ का विरोध करना शुरू कर दिया था ...

चार्वाक द्वारा पशु बलि ,श्राद्ध आदि का विरोध :-

चार्वाक ने पशु बलि ओर पाखंड का विरोध किया जिसे हम सही कहते है लेकिन इसका कारण ब्राह्मण वाद के विरोध की वजह से हुआ ,,जिसे आगे बताया जायेगा :-
पशुश्र्चेत्रित: स्वर्ग ज्योतिष्टोमे गमिष्यति| स्वपिता यजमानेन तत्र कस्मान्न हिंस्यते||
तुम लोग कहते हो जो ज्योतिष्टोमादि यज्ञ मे जिस पशु का वध किया जाता है वह स्वर्ग मे जाता है,तो तुम अपने पिता की बलि क्यु नही देते ऐसा करने से वह भी स्वर्ग मे जा सकता है|
"अग्निहोत्र त्रयो वेदास्त्रिदण्डं भस्मगुंठनम्| बुध्दिपौरुषहीनानां जीविकेति बृहस्पति:"||
त्रिवेद,यज्ञोपवीत्,भस्मलेपन ये सब बुध्दि ओर पौरूषहीन व्यक्तियो की जीविकामात्र है|

चार्वाक द्वारा संयम का विरोध ओर इन्द्रिय सुख को महत्व देना :-

चार्वाक जैसा की बताया ब्राह्मण विरोधी थे तो उन्होंने ब्राह्मणों के साथ साथ वैदिक सिधान्तो का भी विरोध किया जहा वेदों मे ब्रह्मचर्य का उपदेश है ओर इन्द्रिय सुख को दुःख का कारण बताया है ..लेकिन अपने ब्राह्मणवाद मे अंधे हुए चार्वाक ने इनका भी विरोध किया :-
अंगनालिकानादिजन्यं सुखमेव पुरूषार्थ:| न चास्य दुखसंभित्रतया पुरूषार्थत्वमेव नास्तीति मन्तव्यम्|अवर्ज्जनीयतया प्राप्तस्य दुखस्य परिहारेण सुखमात्रस्यैव भौक्तव्यत्वात् | तद्यथा मत्स्यार्थी सशल्कान् सकण्टकान् मत्स्यानुपादत्ते स यावदादेयं तावदादाय निवर्तते| यथा वा धान्यार्थी सपलालानि धन्यान्याहरित सयावदादेंय तावदादाय निवर्तेते|नहि मृगा: सन्तीति शालयो नोप्यन्ते नहि भिक्षुका: सन्तीति स्थाल्यो नाधिश्रीयन्ते यदि कश्चिद् भीरूदृष्टं सुखम् त्यजेत् तर्हि स पशुवन्मूर्खो भवेत्||"
कामिनीसंगजनित सुखही पुरूषार्थ है| स्त्रीसंगजनित सुखमे दु:खसम्पर्क है (यदि ऐसा) कहकर इसको पुरूषार्थ न कहे तो इसको नही मान सकते चाहे युवती के संसर्ग मे दुख हो तथापि उस दुख को छोड कर केवल सुख ही का भोग करना चाहिए|जिस प्रकार मछलीखाने वाले लोग छिलका ओर काटा निकली हुई मछली के छिलका ओर कांटे का परित्याग कर मास भाग ही ग्रहण करते है| तृणयुक्त धान्य मे से तृण परित्यागकर केवल सारभाग धान्य ग्रहण करते है,उसी प्रकार स्त्री संग मे दुख होने पर उस दुख का परित्यागकर सुख भौगा जा सकता है|इस लिए दुख के भय से सुख का परित्याग नही करना चाहिए| जिस देश मे मृग होते है क्या वहा धान नही बोए जाते है| एवं भिक्षुकभय से चूल्हे पर हांडी नही चढाई जाती?यदि कोई भीरू व्यक्ति इसप्रकार दुष्टमुख छोडे तो उसको पशुतुल्य मूर्खभिन्न ओर क्या कहा जाएगा
" यावज्जीवेत सुखं जीवेद्दणं कृत्वा घृतं पिवेत्| " भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:||
जब तक जियो सुख से जियो कर्जा लेकर भी घी पियो क्यु की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म किसने देखा है
यदि उपरोक्त कथन देखे तो चार्वाक ब्राह्मणवाद के विरोधी थे ,,लेकिन उन्हें दलित क्रांतिकारी नही कह सकते है ,,क्यूँ की ब्राह्मण क्षत्रिय ,ब्राहमण वेश्यो मे भी विरोध चलता रहा है ,,शायद चार्वाक क्षत्रिय हो क्यूँ की उन्होंने अश्वमेध की गलत परम्परा का भी विरोध किया था देखे :-
"अश्वस्यात्र हि शिश्नं तु पत्नीग्राह्मं प्रकीर्त्तितम्| भण्डेस्तद्वत्परं चैव ग्राहजातं प्रकीर्त्तितम्|
अश्वमेध यज्ञ मे यचमान की पत्नि घोडे का शिश्न ग्रहण करे इत्यादि भंड रचित है|
अब यहाँ हम स्पष्ट नही कह सकते की चार्वाक कोन थे लेकिन वो ब्राह्मणवाद के विरोधी थे ये कह सकते है ..लेकिन दलित क्रांतिकारी कहना गलत है ...क्यूँ की चार्वाक दर्शन मे छुआछूत का विरोध नही दीखता है ...इसके अलावा चार्वाक ने राजा को ईश्वर बताया है मतलब जैसे ईश्वर को मानते है वेसे राजा को मानो अब यहाँ सोचने वाली बात है की क्या राजा लोग दलितों पर अत्याचार नही करते थे ...यदि चार्वाक दलित क्रांतिकारी होते तो राजा आदि का भी विरोध करते ,,,लेकिन ऐसा नही है जबकि क्षत्रिय तो सुवर्ण मे ही आते है ,,जिन्हें चार्वाक ने ईश्वर ही बताया ........

संधर्भित पुस्तके :- (१) चार्वाक दर्शन 

5 comments:

  1. चार्वाक दर्शन या लोकायत की नीव बृहस्पति नाम के एक ब्राह्मण ने रखी थी
    बृहस्पति के बारे में इतना नहीं पता पर वह चार्वाक के गुरु माने जाते है |

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    1. ji ..chewak ne bhi apne dershan ko brahspati ka btaya hai ....ye kewal prtyakshya prman maanta hai

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  2. चार्वाक दर्शन भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग है। यद्धपि यह वर्तमान व समकालीन दर्शन से पूर्णतः विरोध रखता है परंतु यहाँ सोचने वाली बात यह है की ऐसे दर्शन की आवश्यकता क्यों पड़ी। यह दर्शन सुरासुर संग्राम में दैत्यों को कमजोर करने के लिए बनाया गया। और एकमात्र प्रतक्ष्य को प्रमाण मानकर इस दर्शन ने सिर्फ बर्तमान सुख भोग पर जोर दिया जो केवल असुरो के लिए था। अन्ततः इस महँ दार्शनिक को युधिष्ठर के सामने पीट पीट कर मार डाला गया।

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  3. चार्वाक महाभारत मे ही था क्योंकी कृष्ण ने चार्वाक के कुछ नियमों को अपनाया था। जैसे की -
    1. कृष्ण की मुख्य चार पत्नीयाँ और सोलह हजार पत्नीयों के साथ भोगविलास करना. इसके साथ उन्हे भी भोगविलास में स्वतंत्रता प्रदान करना।
    2. गोपियों की चोलियाँ चुराकर उन्हे नग्नावस्था में देखना और वक्त आते ही किसी अबला की इज्जत बचाकर उस ऋण को फेडना।
    3. अपने फायदे के लिए झूठ बोलना और उसकी जान लेना उसे अर्धसत्य कहा गया है।
    4. दुसरों के लघुयुद्ध में सुझाव देना और धर्मयुद्ध में भी अपना कर्म बताना।
    5. पांडवो को एक पत्नी रखने का अधिकार देना। और अर्जुन को उसकी पत्नी से उसका ध्यान भटकाना। सभी भाई उसे समान मिलकर भोगना। और जूए में उसे हारना। लेकिन समान भोगने का नतीज़ा ये भी की कौरव को हराकर उसे न्याय दिलाना।
    6. पांडव जुआ खेलते थे लेकिन कृष्ण ने उन्हे रोका। इसलिए क्योंकी शकुनी के फासे मे जादुई ताकद थी। इसके विरूद्ध कृष्ण भी सोलाह हजार पत्नीयों के साथ द्युत खेलते थे लेकिन बिना किसी पराई स्त्री, व्यक्ती, राजपाट और पैसो को दाव पे लगाये।
    7. कृष्ण ने अलग धर्म भी बनाया था। और भगवद्गीता में भी व्यक्ती को अभिव्यक्ती स्वातंत्र्य दिया था। लेकिन ब्राह्मणो ने अपनी नकली गीता बनवाई।
    8. कृष्ण ने यदुवंशीयों को अभिव्यक्ती स्वातंत्र्य दिया लेकिन पूरी अज्ञानता के कारण उन्होंने उसका गलत मतलब निकाला और सभी जगह अराजकता फैली लेकिन इसी अभिव्यक्ती के आधार पर कृष्ण ने यदुवंशीयों का नाश किया। यदुवंशीयों की मृत्यू का काल कृष्ण नही था। फिर भी उसने यदुवंशीयों को कौरवो की तरफ से लड़ने को कहा।

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