Friday, June 20, 2014

क्या रूद्र मूल निवासी अनार्य राजा थे ...

अम्बेडकरवादी दावा-


कुछ दिन पहले एक अम्बेडकर वादी पेज पर एक चित्र देखा जिसमे लिखा था "रुद्रा द चमार "ओर रूद्र को मूलनिवासी राजा लिखा था ...ओर आर्यों (विदेशी ब्राह्मणों ) को सताने वाला लिखा था ..क्यूँ की वेदों मे कई मन्त्र रूद्र से अहिंसा की प्राथना को लेकर है ..इन्होने हडप्पा की एक सील को रूद्र बताया ओर आर्यों को विदेशी जो कि मूलनिवासियो पर अत्याचार करते थे ...

दावे का विश्लेषण :-

आर्यों के विदेशी होने की बात तो स्वयं इनके अम्बेडकर जी नकारते है लेकिन फिर भी राजनेतिक रोटिया जो सेकनी है। अब ऋग्वेद का ये मन्त्र देखे :
" नकिर्देवा मिनीमसि नकिरा योपयामसि मंत्रश्रुत्य चरामसि ।
पक्षेभिरपि कक्षभि सरभामहे।।ऋ॰ १०/१३४/७।।"
न तो हम हिंसा करते है ,न ही घात पात करते है ओर न ही फूट डालते है ,वरन मन्त्र के श्रवण अनुसार आचरण करते है,तिनको के सामान तुच्छ साथियो से भी एक होकर एक मत होकर ,मिल जुल कर प्रेम पूर्वक कार्य करते है ।
इस मन्त्र मे स्पष्ट कहा है कि हम अहिंसक है,किसी पर अत्याचार नही करते तो फिर ऐसे मे अत्याचारी बताना मात्र गोल गप्प है। हां लेकिन दुष्ट ओर हिंसक प्राणी को दण्डित करने का उपदेश आपको वेदों मे मिल जायेंगे।
रूद्र के सम्बन्ध मे एक प्राथना आती है :-
" है रूद्र हमारे बड़ो को ,छोटो को तथा वीर्य सिंचित मे समर्थ युवा को मत मार,हमारे माता पिता को मत मार ओर प्रिय शरीरो ओर शिशुओ की हिंसा मतकर "(ऋग्वेद १/११४/७)
इसी तरह अगले मन्त्र मे भी प्राथना है ।
यहाँ रूद्र को देख ये लोग एक मूलनिवासी राजा की काल्पनिक छवि बना लेते है ओर आर्यों को विदेशी बना देते है,जबकि यहाँ वास्तविक अर्थ कुछ अन्य ही है :-
वेदों मे चिकित्सा विज्ञानं है जिसमे विभिन्न तरह के रोगाणुओ कृमियो का भी उलेख है,जो निम्न प्रकार है :-
" अन्वान्त्र्यं शीर्षण्यमथो पाष्ठेयं क्रिमीन ।
अव्यस्कवं व्यध्वरं क्रिमीन वचसा जेभयमसि ।।अर्थ॰२/३१/४।।"
आंतो मे ,मस्तक मे ,पसलियों मे जाने वाले, व्यधर तथा अवयस्क क्रीमी होते है,इनका हम नाश करते है इनका निम्न प्रकार का वर्णन भी है :-
" दृष्टमद्दष्टमतृहमथो कुरुरुमतृहम् ।
अल्गण्डूकन्त्सर्वान् छलुनान् कृमीन वचसा जैभयामसि ।।अर्थ॰२/३/२१।।"
इस मन्त्र मे द्रश्य तथा अद्रश्य कुरुक ,अल्गणुक,तथा शलुन नाम के रोग जन्तुओ का नाम है ,
इसके आलावा एक ओर क्रिमी का उलेख है जिसे रूद्र कहा है ,
" ये अश्रेषु विविध्यंति पात्रेषु पिक्तो जनान् ।।यजु ।।"
यह रूद्र संज्ञक जंतु अन्न,पानी के द्वारा शरीर मे पहुच कर विभिन्न रोग उत्पन्न करते है :-
इन जीवो को रूद्र नाम क्यूँ दिया इसके लिए निरुक्त मे आया है " यदरोदीत्तद्रुद्रस्य"(निरुक्त १०;५)"
रुलाता है से रूद्र है ।
चुकि रोग फैला कर ये रोगी ओर उसके परिजनों को कष्ट पंहुचा कर दुखी करते है या रुलाते है इसी कारण इन्हें रूद्र कहा है ।
इनका निवास भी बताया है अर्थात ये कहा पाए जाते है :-
" नमो रुद्रेभ्यो ये पृथिव्यां ये अन्तरिक्षे मे दिवि ।
येषामन्नं वातो वर्षमिषवः ।।यजु॰ ।।"
रुद्रो के लिए नमन :जो प्रथ्वी, अन्तरिक्ष ,आकाश ,मे रहते है तथा वायु जिनका अन्न है तथा वृष्टि जिनका घर है ।अर्थात यहाँ इन रोग जन्तुओ का सर्वत्र होने का भी प्रमाण मिलता है ।
अतः यहाँ स्पष्ट है की उपरोक्त मन्त्र मे जो रूद्र से प्राथना की है वो वास्तव मे रोगाणुओ के लिए है न कि किसी राजा या किसी व्यक्ति के लिए।क्यूँ की रोग जंतु ही पशुओ ,बालको ,स्त्री ,पुरुष सब मे रोग फैला कर हिंसा करते है अतः यहाँ रोगाणु से बचने ओर स्वस्थ जीवन की प्राथना है ।
अतः वेदों मे आये इस रूद्र के वर्णन से राजा या मनुष्य समझना मुर्खता ओर कोरी कल्पना है ।

रूद्र पर पौराणिक विवेचन :-

               

अब हम पौराणिक देव शिव को देखते है ,लेकिन उससे पहले हम इनका धन्यवाद देते है कि इन्होने इस शील को रूद्र नाम दिया जो की सही है क्यूँकी इस शील मे योगी के ३ या 4 सिर है ,जो कि मेवाड़ के एक लिंग जी से मिलता जुलता सा है । 

 
लेकिन कुछ इसे प्रथम बुद्ध बताते है जबकि बुद्ध के चार सिर नही थे ओर न ही किसी किसी बोद्ध प्रतिमा के ,दूसरा ये लोग कहते है की इसके निचे धम्म चक्र है जो की इस चित्र मे देखने पर नजर नहीं आता है ,हा कुछ शीलो पर चक्र है लेकिन यहाँ हम पूछना चाहते है कि क्या धम्म चक्र मे पहले 4 या 6 आरे होते थे ।
तो कुछ इसे आदिनाथ बताते है जो की काफी हास्यापद है ,इस मोहर के रूद्र या शिव होने की सम्भावना एक प्रकार से ओर बड जाती है वो है लिंग पूजन से ,हडप्पा वासी भी आज की तरह लिंग पूजन करते थे कुछ रेखा चित्र यहाँ देखे :-lingam yoni indus   
अब पौराणिक देव शिव को देखते है ,पुराणों के अनुसार वे शत्रुओ को ओर दुष्टो को मारते थे जो की राक्षक ही होते थे ..जैसे की तारकासुर,जलंधर,अन्धक आदि ।चुकि ये दुष्टो को रुलाते थे इस कारण इन्हें भी रूद्र नाम दिया गया । इनका दक्ष को छोड़ किसी से बेर नही था ,वो भी दक्ष द्वारा अपमान किये जाने के कारण ।
अतः यहाँ स्पष्ट है की रूद्र के बारे मे ,हडप्पा के बारे मे मात्र इनकी कोरी कल्पना ही है ओर ये रोज रोज नयी नयी कल्पनाएँ बनाते रहते है न तो रूद्र आर्य विरोधी थे न वै स्वयं अनार्य थे । क्यूँ की आर्य कोई जाती नही बल्कि आर्य का अर्थ है श्रेष्ट कर्म करने वाला ।                                                                                     
इसके अलावा निघुंट मे रूद्र को विद्युत,अग्नि,इन्द्र,प्रजापति अन्य नामो से भी बुलाया है कुछ यहाँ देखे :-

 

सन्दर्भित पुस्तके :- (१) निरुक्त 

(२) ऋग्वेद मे आचार सामग्री -सत्यप्रिय शास्त्री 

(३) वेद मे रोग जंतु -श्री. दा. सातवलेकर 

(४ ) स्वाध्याय संदोह - बे.शा. स्वामी वेदानन्द सरस्वती 

(५ ) निघुंट 

संदर्भित साईट :- (१) http://prachinsabyata.blogspot.in/2013_08_01_archive.html

(२) http://tamilandvedas.com/2013/07/26/sex-worship-in-indus-valley/

                


   
                                                                  
          

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