मित्रो अकसर सुना करते है कि नन्दी अर्थात वृषभ रूद्र (शिव) का वाहन है ये बात पौराणिक के द्वारा बनाई गयी है ,,लेकिन इसका एक अन्य अर्थ भी आता है ,,
जिसके बारे मे हम थोडा विशलेषण करेगे:-
जिसके बारे मे हम थोडा विशलेषण करेगे:-
वास्तव मे रूद्र के कई अर्थ है जैसे अग्नि ,रोग जंतु ,विद्युत् इत्यादि असल मे रूद्र उन सबको कह सकते है जिनसे प्राणी को पीड़ा पहुचे ,,इसी तरह विद्युत् को भी रूद्र कह सकते है क्यूँ की जब किसी पर बिजली गिरती है या कोई बिजली का झटका झेलता है तो उसे दुःख होता है या पीड़ा पहुचती है इस कारण विद्युत् को रूद्र कह सकते है ...इसके अलावा वेद ओर निरुक्त मे रूद्र को विद्युत् ओर अग्नि आदि नामो से भी बुलाया है ,विद्युत् अग्नि का ही एक रूप है ...
विद्युत् रूप रूद्र :-
ऋग्वेद ७/४६/३ मे रूद्र को विद्युत् का देवता बताया है :-
है रूद्र ,तुम्हारी जो अन्तरिक्ष मे दूर फेंकी हुई बिजली है ओर जो प्रथ्वी पर विचरण कर रही है ,,वह हमें छोड़ दे ,हमारी हिंसा न करे ,है सोये हुए प्राणियों को जगाने वाले (गर्जन से ) रूद्र : तुम्हारे जो सह्श्त्र औषध है वो हमें प्राप्त हो ,है रूद्र हमारे पुत्रो की हिंसा मत करो ।
यहाँ विद्युत् का देव रूद्र है अत: विद्युत् रूद्र का वाचक है ।
अब एक अन्य मन्त्र भी देखे :-
यजु के इस १६/६२ मे कहा है :-" जो रूद्र अन्नो के ऊपर पात्रो पर गिर कर खाने पीने वाले प्राणियों का ताडन करते है उनके धनुषो को हमसे सहस्त्र योजन दूर फेंक ।
यहा रूद्र को गिरने वाला कहा है ओर उसके धनुष को सहस्त्र योजन दूर गिरने को या उससे दूर रहने को कहा है ,यदि यहाँ रूद्र पौराणिक शिव होते तो उनके अस्त्रों से रक्षा की प्राथना की जाती लेकिन उपरोक्त दोनों मंत्रो मे रूद्र के शस्त्रों से दूर रहने ओर रूद्र से हिंसा न करने की प्राथना है ,अत: रूद्र विद्युत् ही है ।
वृह्देवता मे रूद्र को विद्युत् कहा है :-
"अरोदीइन्तरिक्षे यद्विद्युत वृष्टि ददत्रृणाम् ।
चतुर्भिऋफिभिस्तेन रूद्रा इत्याभि सस्तुत ।।" (१२/३५)
जिस कारण अन्तरिक्ष मे यह विद्युत् देव रोता है ,ओर मनुष्यों के हितार्थ वर्ष्टि करता है इस लिए इसे रूद्र कहते है ।
अत: रूद्र का अर्थ विद्युत् स्पष्ट होता है ....
मेघ रूप वृषभ :-
निरुक्त मे यास्क मुनि जी ने वृषभ को वर्षा कारने वाला या जिससे वर्षा होती है उसे वृषभ कहा है :
यहाँ वृषभ को वर्षा कराने वाला कहा है ओर प्रथ्वी पर वृष्टि मेघ करते है अतः वृषभ को मेघ कह सकते है ।
एक अन्य जगह निरुक्त मे आया है " तद वृषकर्मा वर्षणादवृषभ: "(९/२२) अर्थात जो वर्षा के कर्मवाला या बरसने वाला से वृषभ है ,,,अत: यहाँ वृषभ मेघ को कहा है ।
निष्कर्ष:-
उपरोक्त दोनों बातो से हम निम्न निष्कर्ष पर पहुचे :-
(१) रूद्र =विद्युत्
(२) वृषभ =मेघ
अर्थात रूद्र की सवारी वृषभ होने का अर्थ है मेघ पर विद्युत जो की आकाश मे देखी जा सकती है यही रूद्र के वाहन वृषभ का वास्तविक अर्थ है .....
हालांकि बाद मे शिव नामक पोराणिक देव को रूद्र ओर उनके वाहन को वृषभ (नन्दी) रूप मे मूर्ति या चित्र रूप मे दर्शाना शुरू हो गया जैसे की बाद मे पुराणों मे वृत्र ओर इन्द्र की (मेघ ओर सूर्य) कथा बन गयी ओर अहिल्या ओर इन्द्र (सूर्य ओर रात्रि ) की कथा बना ली गयी ।
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