Sunday, February 22, 2015

फट वाले मन्त्र की उत्त्पति

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वेदों में ज्ञान मन्त्र के रूप में संयोजित है मन्त्र कहते है विचार को जेसा शतपथ में कहा है - मन्त्रो विचार: ७/१/१/५ अर्थात मन्त्र वह है जिन पर विचार मंथन कर सके .. इसी तरह विज्ञानं में भी फार्मूला (सूत्र ) होता है जिस पर विचार किया जाता है फिर तकनीक लगाई जाती है संस्कृत में इसे तन्त्र कहते है फिर तकनीक से कोई मशीन या वस्तु बनाई जाती है जिसे संस्कृत में यंत्र कहते है ओर ये सब करने वाला टेक्नीशियन ओर संस्कृत में तांत्रिक होता है |
इस तरह मन्त्र व्ही है जिसमे विचार हो जिसका अर्थ हों |
लेकिन धीरे धीरे लोगो में तमस बढ़ा ओर उन्होंने वेदों को सिर्फ कर्मकाण्ड यज्ञ तक सीमित कर दिया प्राम्भिक श्रोत यज्ञ आदि वैज्ञानिक होते थे ओर उनमे की गयी प्रक्रिया नाटकीय रूप से सृष्टि के नियमो को बताती थी लेकिन बाद में काल्पनिक यज्ञ होने लगे ओर काल्पनिक यज्ञ के साथ साथ काल्पनिक मन्त्र भी बनने लगे प्रारम्भ में वेदों के मन्त्रो में कुछ शब्द जोड़ या बदल कर नए मन्त्र बनाये गये जेसे -एष वो अमी राजा से एष व: कुरवो राजा ,एष पन्चाला राजा (मै.स. २.६.९ ) इसी तरह गायत्री मन्त्र से धियो यो न प्रचोदयात में परिवर्तन कर महादेवाय धीमहि ,,वीर मित्रोद्य ने भक्तिप्रकाश में एक राम गायत्री मन्त्र उलेख किया है - तन्नो राम: प्रचोदयात आदि विभिन्न मन्त्र बनने लगे |
ये सब कर्मकांड के कारण था इसका प्रभाव ये हुआ कि लोग अर्थ सहित वेदों के पठन पाठन करना छोड़ने लगे ओर केवल मन्त्रो को कर्मकांड में विनियुक्त कर लिया| कई आचार्य तो वेदों को अर्थ सहित पढना बेकार मानते थे वे उन्हें केवल कर्मकांड में ही मानते थे ऐसे ही एक थे कौत्स जिनका खंडन करते हुए ऋषि यास्क ने कहा है - " स्थाणुरय भारहार: किलाभूदधीत्य वेद न विजानाति योsर्थम -निरुक्त १/१८
अर्थात वह स्थाणु है, भारहार: है जो वेद पढ़कर उसके अर्थ नही जानता |
मीमासा में भी इसी बात का खंडन किया है -
तदर्थशास्त्रात -१/२/३१
वेद का अर्थ सहित स्वाध्याय करना चाहिय |
बुद्धशास्त्रात -१/२/३३
वेद ज्ञान देने वाले एक मात्र शास्त्र है अत: इनका अर्थ सहित अध्ययन करना चाहिय |
ऊह:- १/२/५२
तर्क से भी यही सिद्ध होता है कि वेदों का पठन पाठन अर्थ सहित हो |
पारस्कर ग्रह सूत्र में भी कहा है - " विधिविर्धेयस्तर्कश्र्च वेद :"-२/६/५
अर्थात विधि ,मन्त्र ओर तर्क सहित वेद का अधयन्न विहित है |
इन कथनों से स्पष्ट है कि वेदों को अर्थ सहित पढना चाहिय लेकिन कर्मकाण्ड वाद का प्रभाव ऐसा था कि अर्थ सहित वेदों का अध्ययन छोड़ लोगो ने इसे केवल अग्निहोत्र में आहुति देने में प्रयोग किया | जिसके कारण काल्पनिक मन्त्र बनने लगे लेकिन धीरे धीरे स्थति ओर बिगड़ी ओर वाममार्ग का भी उदय हुआ | जिसमे यज्ञो में मॉस ,मैथुन आदि का प्रचलन बढने लगा ओर वेदों से इतर कुछ अति काल्पनिक जिनका कोई अर्थ ही सम्भव न हो मन्त्र बनने लगे |
जिनमे कई मन्त्रो में फट शब्द आता है जेसे - " हु हनुमंते फट स्वाहा " कालिके फट स्वाहा , भेरवाय फट स्वाहा |
ये फट शब्द हमे अर्थववेद के एक मन्त्र में मिलता है -
अमा कृत्वा पाप्मान यस्तेनान्य जिंघाससि|
आश्मानस्तस्या दग्धाया बहुला फट करिष्यति ||- अर्थववेद ४/१८/३
यहा फट शब्द प्रयोग हुआ है सम्भवतय किसी व्यक्ति ने यही फट शब्द देखा होगा ओर इसे किसी जादू टोन का मन्त्र समझ फट नाम से अनेक मन्त्र गढ़ लिए होंगे क्यूंकि कर्मकांड ओर अंधविश्वास में डूबे तांत्रिक मन्त्रो पर विचार ओर अर्थ के विरोधी ही होते है |
यहा इस मन्त्र में पदार्थ विद्या का रहस्य है इसका अर्थ है - कृत्या के जलने पर उसमे डाले गये पोटाश, मैन्शिल आदि पदार्थ फट ऐसा शब्द करते है | इससे स्पष्ट है कि कृत्या के अंदर चटखने वाले पाषाणखंड होते है | ये कृत्या कोई बम जेसी वस्तु हो सकती है जो अग्निज्वाला उत्पन्न करती हो शब्द कल्पद्रुम में इसी तरह का संकेत है - कृत्यामुत्पादयामासु: ज्वालामालोज्वलाकृतिम |
शुक्रनीति अध्याय ४ में आंगिरस कृत्या के लिए अग्नि में डाले जाने वाले पदार्थो के निम्न नाम है - गंधक ,शोरा ,पोटाश , कपूर आदि |
अत: वेद मन्त्रो में इन पदार्थो के द्वारा होने वाले फट शब्द का प्रयोग है | जबकि तांत्रिक आदि लोगो ने इसके अर्थ पर ध्यान न दे कर काल्पनिक मन्त्र बना दिए |
अत: इससे स्पष्ट है कि बाहरी आडम्बर ,तंत्रवाद ,वाममार्ग की उत्पति का एक प्रमुख कारण यह भी था कि वेदों के अर्थ सहित पठन पाठन से परेज करना |


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