Friday, February 13, 2015

स्वाध्याय का महत्व

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कई लोग कहते है कि केवल भक्ति ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है स्वाध्याय या वेद अध्ययन नही ..ये उन लोगो का भ्रम है जो ऐसा कहते है क्या बिना ज्ञान के कोई सही मार्ग पर जा सकता है नही
जो ऋषि मुनि ईश्वर का साक्षात्कार किया उन्होंने स्वाध्याय को भी ईश्वर प्राप्ति में आवश्यक माना है |
मह्रिषी पतंजली कहते है -
" स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोग: (योग २/४४ )
अर्थात स्वाध्याय से ईष्ट की प्राप्ति होती है |
मह्रिषी वेद व्यास जी योग की १/२८ की व्याख्या कर कहते है -
स्वाध्यायद योगमासीत योगात स्वाध्यायमामनेत |
स्वाध्याययोगसम्पत्या परमात्मा प्रकाशते ||
चितवृतियो के निरोध की प्राप्ति करे, चितवृतियो का निरोध कर स्वाध्याय करे| स्वाध्याय ओर योग की सम्लित शक्ति से आत्मा में परमात्मा प्रकाशित हो जाता है |
स्वाध्याय तपस्या है -
मह्रिषी याज्ञवल्क्य शतपथ ब्राह्मण में कहते है -
यदि ह वाभ्यडक्तोsलंकृत: सूखे शयने शयान: स्वाध्यायमधीते, आ हैव नखाग्रे-भ्यस्तपस्तप्यते, य एव विद्वान् स्वाध्यायमधीते |शत. ११/५/१/४ |
जो पुरुष अच्छी प्रकार अलंकृत होकर सुखदायक पलंग पर लेटा हुआ भी स्वाध्याय करता है, तो मानो वह चोटी से लेकर एडी पर्यन्त तपस्या कर रहा है | इसलिए स्वाध्याय करना चाहिए |
इन बातो से स्पष्ट है कि आज कल के ढोंगी सिर्फ भक्ति ओर राधे राधे करने को ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते है लेकिन प्राचीन ऋषि भक्ति के साथ साथ ज्ञान ओर कर्म का भी उपदेश बताते थे जो कि मोक्ष के लिए आवश्यक है |

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