Thursday, April 30, 2015

सुश्रुत में सीरिंज का उलेख

आज डॉक्टर इंजेक्शन शरीर में पहुचाने के लिए अथवा रक्त निकालने के लिए सीरिंज का उपयोग करते है ,ऋषि धन्वन्तरी के समय भी इसका उपयोग रक्त खीचने आदि कई कार्यो में होता था .. नीचे दिए रंगीन चित्र में देखिये ये सीरिंज का ही उलेख है |

सुश्रुत संहिता में स्निह्ग्ध (लुब्रिकेंट ) का उलेख -

आज मशीन या किसी वाहन को आसानी से चलाने के लिए उसका घर्षण कम करने के लिए चिकनाई का उपयोग करते है ,, जेसे लुब्रिकेंट ग्रीस ओर आयल उसी तरह धन्वन्तरी जी के समय भी करते थे इसका उलेख उनकी सुश्रुत संहिता में मिलता है - 
स्नेहाभ्य्कते यथा चक्र साधु प्रवृतते ||
संधये: साधू वर्तन्ते संश्र्लिष्टा: श्र्लेष्मेणा तथा ||सुश्रुत शरीरस्थान ४/२१ ||
जेसे रथ के पहिये के धुरे पर चिकनाई लगी होने से पहिया ठीक से फिरता है उसी तरह कफ से लिपी हुई सन्धिया अच्छी तरह फ़ैल ओर सिकोड़ सकती है ..  


प्राचीन काल मे आयुर्वेद को जानने वाले Genes व क्रोमोसोम को जानते थे।

चित्र मे भरद्वाज ने प्रश्न किया है कि लँगड़े,अंधे व अन्य विकृति वालों की सन्तान विकृत क्यों नई होती।
यहाँ पर महर्षि पुनर्वसु आत्रेय उत्तर देते हैं कि बीजभाग अवयव का जो अंश उतप्त (आंशिक विकृत) होता है वही अंग सन्तान मे विकृत होता है।
बीज = स्पर्म, Ovum,
बीजभाग - न्यूक्लियस
बीजभाग अवयव - क्रोमोसोम
जिस अंग का बीज भाग अवयव उतप्त होता है उसी अंग मे विकृति उत्पन्न होती है
। यदि गर्भाशय बनाने वाला बीजभाग अवयव विकृत होता है तो बंध्या सन्तान उत्पन्न होती है (शायद XO या XXX)
यदि बीजभागअवयव का गर्भाशय के स्थान पर कोई अन्य भाग विकृत होता है तो पूति प्रजा उत्पन्न होती है। यद्यपि पूति का अर्थ सड़ा हुआ होता है परंतु मेरे अनुमान से यहाँ जेनेटिकल क्रोमोसोम से संबन्धित विकृत सन्तान (जैसे हीमोफीलिया, कलर ब्लाईंडनेस) आदि
आगे की पंक्ति तो और अधिक महत्वपूर्ण है
बीजभागअवयव के एक देश (क्रोमोसोम का एक अंश) कारण शरीर का स्त्रीकरण होता है यदि उसमे दोष आ जाता है तब स्त्री आकृति वाली सन्तान उत्पन्न होती है जो केवल कहने मे स्त्री होती है
ये ऊपर वाला सारा अंश OVUM मे जेनेटिक क्रोमोसोम की विकृति से संबन्धित है
आगे स्पर्म की विकृति मे भी यही कहा है।
1 बंध्या उत्पति
2 पूति प्रजा उत्पत्ति
ये दोनों स्त्री सन्तान के दोष हाँ
पुरुष सन्तान के दोष
3 विकृत केवल पुरुषाकृति होता है (शायद XXY)
साभार -संजय कुमार 


Sunday, April 19, 2015

अम्लीय वर्षा ओर सुश्रुत संहिता

सुश्रुत संहिता में वर्षा जल के दो प्रकार बताये है जिन्हें - गांग ओर सामुद्र जल से विभाजित किया है | सामुद्र जल को ही आज कल अम्लीय जल वर्षा कहते है ,आचार्य धन्वन्तरी ने गाग जल को ही पीने योग्य बताया है ओर इसके परिक्षण की विधि भी लिखी है - "तत्रान्तरिक्ष चतुर्विधम| तद्यथा -धारम ,कार,तौषारं,हैममिति | तेषां धारं प्रधान,लघुत्वात,तत गांग माश्र्वयुजे मासि प्रायशो वर्षति| तयोर्द्व्योरपि परीक्षण कुर्वीत ,शाल्योदनपिण्डमकुथितमविदग्ध रजतभाजनोपहित वर्षति देवे बहिश्कूर्वीत,स यदि मुहूर्ते स्थिति स्वाद्द्श एव भवति तदा गांग पतीत्य व्गन्त्व्य ,वर्णोंन्यत्वे सिक्थप्रक्लेदे च सामुद्रमिति विद्यात तन्नोपादेयम | सामुद्रमप्याश्र्वयुजे मासि गृहीते गांग भवति | गांग पुन प्रधान तदुपाद -दीताश्र्वयुजे मासि | शुचिशुक्लविततपतैक देश्च्युत अथवा हमर्यतलपरिभ्रष्टम्नर्येर्वा शुचिभिर्भाजनैगृहीत सौवर्ण ,राजते ,मणयेते वा पात्रे निदध्यात |- सुश्रुतसंहिता (सूत्र स्थान ,अध्याय ४५ श्लोक ६ ) 
अन्तरिक्ष जल चार प्रकार का होता है -(१)धार -जो धारा से वर्षा हो कर गिरे वह जल (२) कारं -ओले गिरे वह जल (३) तौषारं -औष की बूंद से उत्त्पन जल (४) हिममिति -पिघले बर्फ का जल ... इन चारो में हल्का होने के कारण मेघ धारा जल प्रधान है | फिर वो दो प्रकार का होता है - (१) गांग (२) सामुद्र | इनमे गांग जल प्राय आश्विन के महीनों में बरसता है | फिर भी इन दोनों की परीक्षा करनी चाहिए | जो न सडा हो ,न ही जिसका वर्ण बदला हुआ हो , ऐसे पकाए हुए शालि चावलों का पिंड बनाकर चांदी के पात्र में रखकर मेघ बरसते समय बाहर रख दे | एक मुर्हुत (लगभग ४८ मिनट ) बरसते पानी में वैसा ही रहे तो जानना चाहिए कि गांग जल बरस रहा है | ओर यदि वर्ण बदल जाए या पिण्ड में कौथ पैदा हो जाए तो समझना चाहिए कि सामुद्रजल बरस रहा है |वह ग्रहण करने योग्य नही है | गांग जल को स्वर्ण ,रजत ओर मिटटी आदि के पात्रो में संग्रह करना चाहिए |