Monday, October 26, 2015

विदेशो में रामायण और राम


मित्रो श्री राम जी की महानता के कारण उनकी प्रसिद्धि देश विदेश में हुई है बुद्ध का बोद्धो ने जितना प्रचार करा है अगर उतना श्री राम का होता तो आज बुद्ध की जगह चीन जापान (हालाकि बुद्ध यहा ३० % से भी कम है ) में राम जी का सिक्का चल रहा होता | ग्रीक में तो रामायण की नकल से एक महाकाव्य होमर ने इलियाड लिखा था जो हुबहू कुछ कुछ रामयाण जेसा है |और मिश्र के तो राजा राम के नाम से रामशेष नाम रखते थे | इसी तरह अनेक जगह रामायण और महाभारत का प्रभाव देखा जा सकता है | आगे जो लेख लिख रहे है वो लेख आर्यमुनि द्वारा अनुवादित रामायण भाग १ की प्रकाशीय वक्तव्य जो कि स्वामी ओमानंद सरस्वती जी ने लिखा है से लिया गया है | स्वामी ओमानद जी आयुर्वेद के साथ साथ इतिहास में भी विशेष रूचि रखते थे इन्होने अपने गुरुकुल झज्जर के संग्राहलय में काफी पुराने सिक्के और रामयाण को दर्शाती गुप्तकालीन मुर्तिया और महाभारत कालीन अस्त्र शस्त्रों का संग्रह किया है | इन्होने देश विदेश की यात्रा कर इतिहास ,महाभारत ,रामायण सम्बंधित बहुत सी जानकारिय इकट्ठी की और लाखो रुपए तक खर्च किये |हम लेख इसलिए लिख रहे है की जिन पाठको को वो रामायण सुलभ नही है वो यहा पढ़ लेंवे | इन्होने रामायण के प्राकथ्य में लिखा है - 
" विश्व की अनेक प्रसिद्ध भाषाओ अंग्रेजी ,रसियन ,जर्मन आदि में रामायण का अनुवाद मिलता है | मै (स्वामी ओमानंद जी ) अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में गया,वहा संस्कृत के ५-६ प्रवक्ता वाल्मीकि रामायण का अनुवाद इंग्लिश में क्र रहे थे | बर्कले विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के प्रवक्ता प्रो. डा. जोयना विलियम्स के घर पर जर्मनी भाषा में रामायण देखने को मिली | इंडोनेशिया में योग्याकार्ता के पर्वत पर पत्थर की सुंदर मूर्तियों से निर्मित मर्यादापुरुषोतम श्री रामचन्द्र जी का जीवन चरित्र देखने को मिला | थाईलेंड की राजधानी बेंकोक में भित्तिचित्रों के द्वारा रामायण बड़े सुंदर द्र्श्यो में दर्शाई गयी (यह गूगल पर भी है इसमें विशेष कर मेघनाथ द्वारा नकली सीता का शव बना कर राम के पास भेजने की कथा है ) | बेंकाक के संग्राहलय के सामने अष्टधातु से बनी धनुर्धर राम की बड़ी सुंदर प्रतिमा है | जब मै प्रथम बार थाईलैंड गया तो उस समय वहा नवा राम राज्य कर रहा था | वहा अयोध्या नगरी और मिथिला पूरी भी बसी हुई है |
लन्दन के ब्रिटिश म्यूजियम की लायब्रेरी में हस्त लिखित वाल्मिक रामायण देखने का सोभाग्य प्राप्त हुआ | वह रामायण ४ खंडो में थी | उस रामायण का प्रत्येक खंड २०-२० किलो से कम भारी नही था, इस प्रकार उस रामायण में कम से कम २ मन भार होगा | यह रामायण उदयपुर के महाराजा जगतसिंह जी ने सम्व्न्त १७०३ में जैन साधू सोमदेव सूरी के द्वारा तैयार कर लिखवाई थी | यह बहुत ही सुंदर संस्करण है | इसके एक पृष्ठ पर अर्थ सहित श्लोक लिखे है तथा उसी पृष्ठ के सामने उसी वर्ण्य विषयवस्तु को अत्यंत सुंदर रंगीन चित्र के द्वारा दिखाया गया है | ब्रिटिश संग्राहलय में भारतीय कक्ष के संरक्षक मेरे (स्वामी जी ) के मित्र डब्ल्यू ज्वाल्फ़ की कृपा से यह सुंदर रामायण मुझे देखने का सोभाग्य मिला | मेने कई घंटे लगातार इस ग्रन्थ का अवलोकन किया |
बालिदीप में छाया चित्रों द्वारा प्रतिदिन रामायण और महाभारत का इतिहास दिखाया जाता है | पहली बार जब मै बालीदीप में गया तो महाभारत का युद्ध छायाचित्रों के द्वारा देखा था | बाली में रामायण महाभारत की बड़ी सुंदर मुर्तिया लकड़ी ,पत्थर ,चमडा और कागज की बनाई जाती है | अरबो रुपए की सुंदर मूर्तियों का विक्रय वहा प्रति वर्ष होता है | अन्य देशो से आने वाले पर्यटक यात्री इन्हें खरीद कर लाया करते थे |यह वहा का बड़ा व्यापार है |दो मुर्तिया मै भी खरीद कर लाया एक काष्ठ की माता सीता की और उसमे वीर हनुमान जी सीता जी को अंगूठी भेट कर रहे है | दूसरी युधिष्टर की चमड़े की | बाली की शिल्पकला में मूर्ति कला सबसे बड़ी है | इसकी अधिकतर आय इसी में वय होती है | किन्तु आश्चर्य और हर्ष की बात है कि वहा जितने भी मन्दिर है उनमे किसी भी महापुरुष की कोई प्रतिमा स्थापित नही है | न ही किसी की पूजा होती है | सारे बालीदीप में २५ लाख से भी अधिक वैदिक धर्मी है ,वे किसी भी मूर्ति की पूजा नही करते है | बालीदीप की भाषा में भी रामायण छप चुकी है |उस दीप पर भारत की तरह प्रचलित जातिया नही है किन्तु ब्राहमण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शुद्र आदि वर्ण है |
यह सब देखकर मुझ पर प्रभाव पड़ा कि इन दीपो में अगस्त्य आदि ऋषि गये होंगे ,उन्होंने ही यहा वैदिक धर्म का प्रचार किया होगा | इसीलिए यहा के लोग संध्याउपासना करते है तो प्रथम गायत्री का पाठ करते है |वहा अगस्त्य कुंड और मन्दिर भी बने है | वेद भगवान की आज्ञा से वे लोग मुर्दे को जलाते है | मिलने पर नमोनम : बोल अभिवादन करते है | इन बातो से सिद्ध है कि भारत वर्ष की अपेक्षा बाली और थाईलेंड में रामायण का प्रभाव अधिक है | जब कि इसका मूलस्रोत भारत रहा है | भारत में श्री राम और के गुप्तकाल से पूर्व मन्दिर एटा हरयाना के जींद और राजस्थान के भादरा में मिले है | इनमे रामायण के द्र्श्यो से अंकित ३० मुर्तिया हमारे गुरुकुल झज्जर में है | इसी प्रकार महाभारत कालीन अस्त्र शस्त्र भी हमारे यहा कई सौ विद्यमान है |