Monday, May 11, 2020

बेबीलोन में मोर कैसे पहुंचा?



बेबीलोन में बाबुली साम्राज्य का उदय हुआ तब वहां के लोग मोर से परिचित नहीं थे.. मोर का परिचय वहां प्रथम बार भारतीय व्यापारियों द्वारा करवाया गया था... इस सम्बन्ध में एक प्राचीन कथा का संकलन बौद्ध जातक कथा "बावुरी जातक" में मिलता है.. The journal of the Royal Asiatic socity of great Britain and Ireland के 1898 April संस्करण में बावुरी की पहचान बेबीलोन देश के रुप में Rayis davids के जातक अनुवाद से दर्शायी है। 
जातक कथाओं में इस देश की प्राचीन कथायें और ऐतिहासिक विवरण बुद्ध द्वारा अपने पुनर्भव के रुप में दर्शायी गयी हैं जो कि बुद्ध द्वारा लोगों को उपदेश देने के लिए एक मसाला मात्र है। इन्हीं में से एक जातक बावुरी जातक है जिसमें बुद्ध ने मोर को स्वयं का पुनर्भव और कौऐ को निग्रंथनाथ पुत्त ( जैन गणधर) का पुनर्भव बताया है ( बुद्ध मोर की तरह श्रेष्ठ और जैन गणधर कौऐ की तरह निंदनीय).. 
इस जातक कथा के अनुसार प्राचीन काल में वाराणसी के कुछ व्यापारी भारत में कौआ लेकर गये थे, जिसे पहले कभी बावुर साम्राज्य के लोगों ने नहीं देखा था.. भारतीयों ने वो कौआ उन्हें बैच दिया। फिर दूसरी बार भारतीय वहां मोर ले गये, उसे उन्होंने और मंहगा बैचा। पूरी कथा चित्र में पढें.. 
चाहे ये कथा बुद्ध द्वारा पुनर्भव रुप में हो किंतु ये जरुर बताती है की मोर बेबीलोन भारतीय व्यापारियों द्वारा पहुंचा था। जातक कथाओं में ऐतिहासिक और लोक कथाओं को बुद्ध के पुनर्भव के रुप में इसलिए दर्शाया गया है कि बुद्ध की श्रेष्ठता के साथ - साथ मसाला लगाकर लोगों में बुद्धोपदेश के प्रति रुचि लायी जा सके। 
बाबुली - बावुरी ( ब - व, ली - री €य, र, ल)

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