Tuesday, January 21, 2014

हिन्दु ग्रंथो मे यंत्र विज्ञान(Mechanics in Hindu scripts)

मित्रो जय श्री राम!
मित्रो हमारा हर काम आज मशीनो द्वारा आसान है| हम अपने अधिकतर कार्यो मे कई मशीनो का उपयोग करते है कई छोटी बडी मशीनो से हमारा कार्य आसान हो गया है ओर समय की बचत भी हो जाती है| यदि मशीनो को जीवन से हटा दिया जाए तो जीवन मे कई तरह की मुसीबते आ जाएगी|लेकिन क्या मशीनो का आविष्कार हमारे देश मे हुआ लेकिन ये सच नही है क्युकि हमारी हिन्दु ग्रंथो मे मशीनो का उल्लेख है| हमारे ग्रंथो मे यंत्र की परिभाषा,यंत्र की क्रियाओ का वर्णन ओर यंत्रो की कार्य कुशलता ओर विशेषताओ के बारे मे बता रखा है-
१ यन्त्रार्णव नाम के एक प्राचीन ग्रंथ मे यंत्र की परिभाषा दी हुई है-
दण्डैश्चक्रैश्च दंतैश्च सरणिभ्रमणादिभिः|
शक्तेरूत्पादनं किं वा चालनं यन्त्रमुच्यते||
यानि दंड,चक्र,दन्त,ओर सरणि के भ्रमण से शक्ति-उत्पादन या गति निर्माण करने वाली विधि-व्यवस्था को यंत्र कहते है|
अब समरांगण सूत्रधार ग्रंथ के ३१ वे अध्याय मे यन्त्रो की क्रियाओ का वर्णन निम्न प्रकार है-
"कस्यचित्का किया साध्या,कालः साध्यस्तु कस्यचित्|
शब्दः कस्यापि चोच्छायोरूपस्पर्शो च कस्यचिद्||
क्रियास्तु कार्यस्य वशादनंत्ताः परिकीर्तिताः|
तिर्यगूर्ध्वमद्यः पृष्ठपुरतः पार्श्वयोरपि||
गमने सरणं पातः इति भेदाः कियोद्य्भवाः
इन पंक्तियो मे विविध यंत्रो की क्रियाओ का वर्णन इस प्रकार है-
(१) कुछ यंत्र एक ही क्रिया बार बार करते रहते है|
(२) कुछ यंत्र समय-समय पर अथवा विशिष्ट कालांतर मे अपनी निश्चित कृति करते रहते है|(उदा.बिजली के पंखे)
(३) कुछ यंत्र विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न करने के लिए या ध्वनि संचलन या परिवर्तन के लिए होते है(जैसे आकाशवाणी या दूरदर्शन)
(४) कुछ यंत्र विशिष्ट क्रियाओ के लिए या वस्तुओ का आकार बडा या छोटा करना,आकार बदलने या धार चढाने के लिए होते है(जैसे आधुनिक 'लेथ' यंत्र)
इसी ग्रंथ समरांगण सूत्रधार मे अच्छे,कार्यकुशल यंत्रो के गुण निम्न प्रकार वर्णित है-
"यथावद्वीजसंयोगः सौश्लिष्यं श्लक्ष्णतापि च|
अलक्षता निर्वहणं,लघुत्वं शब्दहीनता||
शब्दे साध्ये तदाधिक्यं,अशैथिल्यं अगाढता|
बहनीषु समस्तासु सौस्लिष्ट्यं चास्सलद्गतिः||
यथामिष्टार्यकारित्वं लयतालानुयमिता|
इष्टकालेर्थदर्शित्वं,पुनः सम्यक्त्व संवृत्तिः||
यानि (१) समयानुसार स्वंसचालन के लिए यंत्र से शक्ति-निर्माण होता रहना चाहिए|
(२) यंत्रो की विविध क्रियाओ मे संतुलन एवं सहकार हो|
(३) सरलता से,मृदुलता से चले
(४) यंत्रो को बार बार निगरानी की आवश्यकता न पडे|
(५)बिना रूकावट के चलता रहे|
(६)जहा तहा हो यांत्रिक क्रियाओ मे जोर दबाब नही पडना चाहिए|
(७)आवाज न हो तो अच्छा,हो तो धीमी
(८) यंत्र से सावधानता की ध्यानाकर्षण की ध्वनि निकलनी चाहिए|
(९)यंत्र ढीला,लडखडाता या कांपता न हो|
(१०) अचानक बंद या रूकना नही चाहिए
(११) उसके पट्टे या पुर्जो का यंत्र के साथ गाडा संबंध हो|
(१२) यंत्र की कार्यप्रणाली मे बांधा नही आनी चाहिए|
(१३) उससे उद्दिष्टपूर्ति होनी चाहिए|
(१४)वस्तु उत्पादन मे आवश्यक परिवर्तन आदि यांत्रिक क्रिया अपने आप होती रहनी चाहिए|
(१५)यंत्र क्रिया सुनिश्चित क्रम मे हो|
(१६) एक क्रिया का दौर पूर्ण होते ही यंत्र मूल स्थिति पर यानी आरम्भ की दशा पर लौट जाना चाहिए|
(१७) क्रियाशीलता मे यंत्र का आकार ज्यों का त्यों रहना चाहिए|
(१८) यंत्र शक्तिमान हो|
(१९) उसकी कार्यविधि सरल ओर लचीली हो
(२०) यंत्र दीर्घायु होना चाहिए|
इस तरह हमारे ग्रंथो मे कई तरह की वैज्ञानिक बाते है लेकिन कई रहस्य या गूढ शब्दो मे है जिनहे पहचानना आवश्यक है जैसे मंत्र तंत्र ओर यंत्र ओर तांत्रिक के हम सिर्फ आध्यात्मिक या अंधविश्वास वाले अर्थ लेते है जबकि इनका वैज्ञानिक अर्थ भी है जो इस तरह है
(१) मंत्र जिसे formula कहते है यानि कोई कार्य सम्पन्न कराने की शाब्दिक विधि ,रीति या पध्दति
(२) तंत्र- जिसे technique कहते है कार्य या परिणाम सम्पन्न कराने की कृति
(३) यंत्र - जिसके बारे मे ऊपर बताया गया है जिसे machine कहते है|
ओर इन सबमे जो पारंगत होता है जो यंत्र बनाता ओर उनहे सुधारता है या उनमे नया कर सके ऐसा व्यक्ति जिसे technicians कहते है|
इसी तरह कई शब्दो की पहेलिया सुलझाना आवश्यक है|
उसके लिए आवश्यक यह भी है कि जो वैज्ञानिक वगैरा है उनहे संस्कृत भाषा का भी ज्ञान लेना चाहिए|
जय मा भारती!

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