Tuesday, January 21, 2014

वेदों में प्रातः भ्रमण(Morning walk in Vedas)

स्योनाद् योनेरधि बुध्यमानौ हसामुदौ महसा मोदमानौ ।
सुगू सुपुत्रौ सुगृहौ तराथो जीवावुषसो
विभाती: ॥ AV 14.2.43
सुखप्रद शय्या से उठते हुए, आनंद चित्त से प्रेम
मय हर्ष  मनाते हुए, सुंदर आचरण से
युक्त, श्रेष्ठ पुत्रादि संतान,  उत्तम गौ, सुख
सामग्री से युक्त घर में निवास करते हुए
सुंदर प्रकाश युक्त प्रभात वेला का दीर्घायु
के लिए सेवन करो.
प्रात: भ्रमण के लाभ
नवं वसान: सुरभि: सुवासा उदागां जीव
उषसो विभाती:  ।
आण्डात्
पतत्रीवामुक्षि विश्वस्मादेनसस्परि ॥
AV14.2.44
स्वच्छ नये जैसे आवास और परिधान कपड़े आदि के साथ
स्वच्छ वायु में सांस लेने वाला मैं आलस्य
जैसी बुरी आदतों से छुट
कर, विशेष रूप से सुंदर लगने वाली  प्रात:
उषा काल में उठ कर अपने घर से निकल कर घूमने चल
पड़ता हूं जैसे एक पक्षी अपने अण्डे में
से निकल कर चल पड़ता है.
प्रात: भ्रमण के लाभ
शुम्भनी द्यावा पृथिवी अ
न्तिसुम्ने महिव्रते ।
आप: सप्त
सुस्रुवुदेवीस्ता नो मुञ्चन्त्वंहस: ॥
AV14.2.45
सुंदर प्रकृति ने मनुष्य को सुख देने का एक महाव्रत
ले रखा है. उन जनों को जो जीवन में
प्राकृतिक वातावरण के समीप रहते हैं
सुख देने के लिए मानव शरीर में प्रवाहित
होने वाले सात दैवीय जल तत्व हमारे
दु:ख रूपि रोगों से छुड़ाते हैं .
Elements of Nature have avowed to
make life comfortable and healthy for
the species. Particularly the seven fluids
that move around the human anatomy
are specifically helped by Nature.
Modern science confirms that presence
of naturally created ‘Schumann’
electromagnetic field and negative ions
generated by Nature play very
significant roles in maintaining  good
physical and mental health of human
beings.
(प्रात: कालीन उषा प्रकृति के सेवन
द्वारा सुख देने वाले वे मानव शरीर के सात
जल तत्व अथर्व वेद के निम्न मंत्र में बताए गए हैं .
( को आस्मिन्नापो व्यदधाद् विषूवृत: सिन्धुसृत्याय जाता:।
तीव्रा अरुणा लोहिनीस्ताम्रधूम्रा
ऊर्ध्वा अवांची: पुरुषे तिरश्ची:
॥ AV 10.2.11
(भावार्थ) परमेश्वर ने मनुष्य में रस रक्तादि के रूप में
(सप्तसिंधुओं) सात भिन्न भिन्न
जलों को मानवशरीर में स्थापित किया है. वे
अलग अलग प्रवाहित होते हैं . अतिशय रूप से –
अलग अलग नदियों की तरह बहने के
लिए उन का निर्माण गहरे लाल रंग के, ताम्बे के रंग
के, धुएं के रंग इत्यादि के ये जल (रक्तादि)
शरीर में ऊपर नीचे और तिरछे
सब ओर आते जाते हैं.
ये सात जल तत्व आधुनिक शरीर शास्त्र के
अनुसार निम्न बताए जाते हैं.
1.  मस्तिष्क सुषुम्णा में प्रवाहित होने वाला रस
(Cerebra –Spinal Fluid)
2.  मुख लाला (Saliva)
3.  पेट के पाचन रस (Digestive juices)
4.  क्लोम ग्रन्थि रस जो पाचन में सहायक होते
हैं (Pancreatic juices)
5.  पित्त रस ( liver Bile)
6.  रक्त (Blood)
7.  (Lymph )
ये सात रस मिल कर सप्त आप:= सप्त प्राण: – 5
ज्ञानेन्द्रियों, 1 मन और 1 बुद्धि का संचालन करते
हैं.)
भ्रमण में पारस्परिक नमस्कार
सूर्यायै देवेभ्यो मित्राय वरुणाय च ।
ये भूतस्य प्रचेतसस्तेभ्य इदमकरं नम: ॥
AV14.2.46
सूर्य इत्यादि प्राकृतिक देवताओं को,  सब मिलने वाले
मित्रों जनों को जो सम्पूर्ण भौतिक जगत को प्रस्तुत
करते हैं हमारा नमन है. ( भारतीय
संस्कृति में प्रात: काल भ्रमण में जितने लोग मिलते हैं
उन सब को यथायोग्य नमन करने
की परम्परा इसी वेद मंत्र पर
आधारित है)

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