Wednesday, January 22, 2014

कृष्ण और बौद्ध काल के बीच के खोए हुए पन्ने


मध्‍यकाल में भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया। तक्षशिला और पाटलीपुत्र के ध्वंस के बाद महाभारत युद्ध और बौद्ध काल के बीच के हिंदू इतिहास के अब बस खंडहर ही बचे हैं। विदेशी इतिहासकारों ने जानबूझकर इस काल के इतिहास को विरोधाभासी बनाया। क्योंकि उन्हें भारत में नए धर्म को स्थापित करना था। दरअसल बुद्ध के पूर्व के संपूर्ण इतिहास को नष्ट किए जाने का संपूर्ण प्रयास किया गया। इस धूमिल से इतिहास को इतिहासकारों ने खुदाईयों और ग्रंथों की खाक छानते हुए क्रमबद्ध करने का प्रयास किया है।

हड़प्पा, सिंधु और मोहनजोदड़ों सभ्यता का प्रथम चरण 3300 से 2800 ईसा पूर्व, दूसरा चरण 2600 से 1900 ईसा पूर्व और तीसरा चरण 1900 से 1300 ईसा पूर्व तक रहा। इतिहासकार मानते हैं कि यह सभ्यता काल 800 ईस्वी पूर्व तक चलता रहा।

प्रथम चरण के काल में महाभारत हुई, दूसरे चरण के काल में मिस्र के फराओं और भारत के कुरु और पौरवो के राजवंश थे। तीसरे चरण में यहूदी धर्म के संस्थापक इब्राहिम, मूसा, सुलेमान ने यहूदी वंशों का निर्माण किया तो भारत में सभी वंशों के 16 महाजनपदों का उदय हुआ। हड़प्पा से पहले सिंधु नदी के आसपास मेहरगढ़ की सभ्यता का अस्तित्व था। उससे पूर्व मध्यप्रदेश में भीमबेटका में भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता को खोजा गया जिसका काल 9000-7000 ईसा पूर्व था। यहां गुफाओं में कुछ शैलचित्र ऐसे भी मिले हैं जिनकी उम्र कार्बनडेटिंग अनुसार 35 हजार ईसा पूर्व की मानी गई है।

सिंधु या मोहनजोदड़ो के काल में इराक में सुमेरी और मिस्र में सबाइन सभ्यता सबसे विकसित सभ्यता थी। मोहदजोदड़ों हड़प्पा से मिलने वली मुहरें, बर्तन, भित्तिचित्र आदि ईरान, मिस्र और इराकी सभ्यताओं में पाई गई मुहरों आदि से मिलती जुलती है। सिंधु घाटी की कई मोहरें सुमेरिया से मिली है जिससे यह भी सिद्ध होता है कि इस देश के उस काल में भारत से संबंध थे।
2800 से 1900 ईसापूर्व के बीच भारत में किन राजवंशों का राज था इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस काल में धर्म का केंद्र हस्तीनापुर, मधुरा आदि से हटकर तक्षशिला हो गया था। अर्थात पेशावर से लेकर हिंदुकुश के इलाके में बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहे थे।

1300 ईसा पूर्व भारत 16 महाजनपदों में बंटा गया- 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था, परंतु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था।

महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तक्षशिला और पाटलीपुत्र के संहार किए जाने के कारण महाभारत से बुद्धकाल तक के इतिहास का अस्पष्ट उल्लेख मिलता है।

यह काल बुद्ध के पूर्व का काल है, जब भारत 16 जनपदों में बंटा हुआ था। हर काल में उक्त जनपदों की राजधानी भी अलग-अलग रही, जैसे कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी तो बाद में साकेत और उसके बाद बौद्ध काल में श्रावस्ती बन गई।

महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा। पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता है।

महाभारत काल के बाद अर्थात कृष्ण के बाद हजरत इब्राहीम का काल ईस्वी पूर्व 1800 है अर्थात आज से 3813 वर्ष पूर्व का अर्थात कृष्ण के 1400 वर्ष बाद ह. इब्राहीम का जन्म हुआ था। यह उपनिषदों का काल था। ईसा से 1000 वर्ष पूर्व लिपिबद्ध किए गए छांदोग्य उपनिषद में महाभारत युद्ध के होने का जिक्र है।

हजरत इब्राहीम के काल में वेद व्यास के कुल के महान संत 'सुतजी' थे। इस काल में वेद, उपनिषद, महाभारत और पुराणों को फिर से लिखा जा रहा था। सुतजी और इब्राहीम का काल थोड़ा-बहुत ही आगे-पीछे रहा।

इस काल में उत्तर वैदिक काल की सभ्यता का पतन होना शुरू हो गया था। इस काल में एक और जहां जैन धर्म के अनुयायियों और शासकों की संख्‍या बढ़ गई थी वहीं धरती पर यहूदियों के वंश विस्तार की कहानी लिखी जा रही थी। हजरत इब्राहीम इस इराक का क्षेत्र छोड़कर सीरिया के रास्ते इसराइल चले गए थे और फिर वहीं पर उन्होंने अपने वंश और यहूदी धर्म का विस्तार किया।

इस काल में भरत, कुरु, द्रुहु, त्रित्सु और तुर्वस जैसे राजवंश राजनीति के पटल से गायब हो रहे थे और काशी, कोशल, वज्जि, विदेह, मगध और अंग जैसे राज्यों का उदय हो रहा था। इस काल में आर्यों का मुख्य केंद्र 'मध्यप्रदेश' था जिसका प्रसार सरस्वती से लेकर गंगा दोआब तक था। यही पर कुरु एवं पांचाल जैसे विशाल राज्य भी थे। पुरु और भरत कबीला मिलकर 'कुरु' तथा 'तुर्वश' और 'क्रिवि' कबीला मिलकर 'पंचाल' (पांचाल) कहलाए।

अंतिम राजा निचक्षु : महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।

जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए।

मगध वंश में क्रमश: क्षेमधर्म (639-603 ईपू), क्षेमजित (603-579 ईपू), बि‍म्बिसार (579-551), अजातशत्रु (551-524), दर्शक (524-500), उदायि (500-467), शिशुनाग (467-444) और काकवर्ण (444-424 ईपू) ये राजा हुए।

नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384-372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।

अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।

3 comments:

  1. "कृष्ण और बौद्ध काल के बीच के खोए हुए पन्ने" का ब्लॉग पढ़ा पढ़ कर हर्ष हुआ की हिंदुस्तान के महान इतिहास को कर्मवद तरीके से लिखने का प्रयास किया जा रहा है . आप का प्रयास अवश्य ही हिन्दू देश के गौरव के लिए सम्मानीय श्र्द्धांजलि है। हम आप के इस प्रयास के लिए सदा ऋणी रहेंगे।
    मित्रो: विश्व के प्राचीन इतिहास में मिस्र, मेसोपोटामिया (इराक), सुमेरिया, चीन, ग्रीस, और भारत आदि देशो का नाम आता है . मैं खास कर चीन के इतिहास के क्रमवदता से खासा प्रभावित हूँ चीन के इतिहासकारों ने चीन के इतिहास को काफी बारीकी से तराशा है और प्रत्येक चीनी को गौरभांवित होने का सौभाग्य प्रदान किया है। वहीं दूसरी तरफ हिंदुस्तान है जिस के इतिहास में क्रमबद्धता की खासी कमी है। सिंधुघाटी और पूर्व मध्यप्रदेश के भीमबेटका की सभ्यताओ वाला देश के इतिहास में हजारो वर्षों का खालिस्तान कैसे हो सकता है।
    मित्रों: हमारे देश के इतिहासकारों ने हमारे इतिहास के प्रमाणों से छेड़छाड़ ही नही अपितु प्रमाणिकताओं को जानीभुज्जी अनदेखी किया गया है। ऐसे प्रमाण प्राचीनकाल से ले कर आज तक हमें मिलते है। यह सत्य है की हिंदुस्तान के इतिहास को राजनैतिक आवश्यकता के अनुरूप ही लिखा गया है और लिखवाया गया है। इस इतिहासिक दोष को हमे समझना होगा तभी हम हिन्दू देश के खट्टे मीठे इतिहास का सही चित्रण कर सकते है। ऐसा मेरा मानना है। मुझे लगता है की पाठ्य कर्मो में जो प्राचीन इतिहास आज कल पढ़ाया जा रहा है उसी में ऐतिहासिक खाइयां गहरी है । उस इतिहास में क्रमवद्धता की कमी है। सिंधुघाटी की सभ्यता, वैदिक काल, उत्तरवैदिक काल, जैनी -महात्मबुद्ध कालों के मध्य सैंकड़ो हज़ारों वर्षों के इतिहास घूम है . सिंधुघाटी की सभ्यता और वैदिक काल के मध्य का इतिहास क्रमवद्ध नही है है। इस में होचपोच नजर आता है. अब तक स्पष्ट नही हुआ है की सिंधुघाटी की सभ्यता के मूल निवासी कौन थे और इस महान सभ्यता के प्रलय के बाद मूल निवासियों का क्या हुआ? वे कहाँ चले गए आदि आदि. वैदिक समाज के इतिहास को खूव पढ़ाया जाता है उन के कहानियों को महान बनाने वालो अर्थात असुरों का इतिहासिक प्रमाणिकता व् उन इतिहास को क्यों नही पढ़ाया जाता है। असुरों को इतिहासिक पन्नों में स्थान न दिया जाना ही हमारी इतिहासिक भूल है। असुरो के इतिहास को बिना जाने हिन्दू देश के इतिहास में क्रमवद्धता कैसे आ सकता है।
    मैं असुरों के बारे में कुछ खास तथ्य आप से शेयर करना चाहूंगा। वेदों में असुरों को नग्गर निवासी कहा गया है और वैदिक काल में भी उन के सेकड़ो नगर थे और वे वैदिक लोगो से निसंदेह महान थे। वे त्रिलोकी अर्थात स्वर्ग (पहाड़ों) पृथ्वी ( मैदानों) और पाताल (पठारिय ) भू- भाग के शासक थे। जब की वैदिक शासक मैदानी क्षेत्रों के छोटे छोटे भू भागो के शासक थे।
    यही हमारे देश का दुर्भाग्य है हम अपने इतिहास के महान इतिहासिक पुरुषों को इतिहासिक नहीं मान रहे है। यह सत्य है असुर शासक की हमारे देश के मूल शासक थे जिन का जिन का शासन हिन्दू देश (भारत उपमहाद्वीप) में ही नही अपितु तिब्बत, मध्य एशिया तक फैला था। गहन शौधो से प्रमाणित हुआ है की भारत की संस्कृति में आसुरी संस्कृति और राजनीती में असुरीराजनीति का प्रभाव आज के युग में भी मौजूद है। हमे अब तक यह ज्ञान नही है की जनपत, गण प्रणाली,देवशासन, पंच तंत्र और पंचयति राज जो लोकतांत्रिक संस्थाए है और थी वे सभी असुरों के मन्वन्तर शासन प्रणाली के तानेबाने है। यही नही प्रह्लाद, विरोचन, महा बलि, बाणासुर, देवो के देव महादेव, गणपति आदि आस्थाओं के प्रतीक नही अपितु इतिहासिक महान पुरष व् महान शासक थे। राजा बलि जो बाणासुर के पिता थे और आठवें मन्वन्तर के इंद्र थे ओर त्रिलोकी व् तीनो लोको के शासक थे। फिर भी इन महान शासको का इतिहास में कोई स्थान नही है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यही इन महान हिन्दू शासको को इतिहासिक मान्यता मिलती है तो अवश्य ही भारतीय (हिंदू देश) के इतिहास को क्रमबद्धता मिलती है। "कृष्ण और काल के बीच के खोए हुए पन्ने हमे तब तक नही मिलेंगे जब तक की हम इन महान शासकों इतिहासिक नही मानते है।
    मेरे शौधों के निष्कर्ष यही कहते है और "कृष्ण और बौद्ध काल के बीच के समय में असुरों का मन्वन्तर शासन पुन: चमका था और बाणासुर पुत्र (नाम अब तक मालूम नही) इंद्र अर्थात महादेव अर्थात देवो के देव महादेव के नाम से प्रख्यात हुए यही नही महादेव पुत्र बाद में गणपति के नाम से प्रख्यात हुए। यही इतिहासिक घटनायें है जो कृष्ण काल और बौद्ध काल मध्य घटित हुए थे। यह मेरे अप्रकाशित शौध पत्रों का निष्कर्ष है अन्ता जवाव तो मान्यता प्राप्त इतिहासकारों को ही देने है।
    "जय हिन्द "

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  2. बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी मिली ... इससे भारत अपने पूर्व कल को जान सकता है ...

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  3. bahut achhi jankari hai shree man ji

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