Friday, January 17, 2014

वेदो मे नारी जाति का सम्मान(respect of ladies in vedas)


मित्रो विश्वभर मे कई मत है जैसे इसाई,मुस्लिम,पारसी,यहुदी आदि मे नारियो की स्थिति बहुत खराब है लेकिन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे मात्र वैदिक धर्म ही ऐसा है जिसने नारी जाति को शिक्षित होने ओर सम्मान पाने की बाते कही गई है| लेकिन हमे दुख इस बात का है कि वेदो के ज्ञाता शंकराचार्य ने भी नारियो को वेदाध्ययन से वंचित रखने को कहा जिससे हमारे धर्म को काफी हानि हुई ओर विरोधियो को कीचड उछालने का अच्छा मोका भी मिला लेकिन वेदो मे कई मंत्र हमे नारी जाति के प्रति सम्मान रखना सिखाते है-
१ इमा नारीरविधवा: सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं स्पृशन्ताम्|
अनश्रवो अनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्ने||-अर्थववेद(१२/२/३१)
स्त्रियो उत्तम धर्मपत्निया बने,ये कभी विधवा न बने|वे सौभाग्ययुक्त होकर अपने शरीर को अंजन आदि द्वारा सुशोभित करे|नीरोग बने,शोक रहित होकर अश्रुरहित रहे और उत्तम आभुषणो से सुशोभित रहे|
अपने घर मे ये स्त्रिया सुपूजित होती हुई महत्व का स्थान प्राप्त करे|
२ अघोरचक्षुरपतिघ्नी स्योनी शम्मा सुशेवा सुयमा गृहेभ्यः|
वीरसूर्देवृकामा सं त्वयैधिषीमहि सुमनस्यमाना||-अर्थववेद(१४/२/१७)
यह स्त्री पति के घर मे आकर आन्नद से रहे,आंखे क्रोधयुक्त न करे,पति की हितकारणी बने,धर्मनियमो का पालन करे,सबको सुख देवे,अपनी सन्तानो को वीरता की शिक्षा देवे,देवरादि को सन्तुष्ट रखे,अन्तःकरण मे शुध्द भाव रखे| ऐसी स्त्री से घर सुसम्पन्न होता है|
३ सुमडंगली प्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्थे श्वशुराय शम्भूः|
स्योना श्वश्र्वै प्र गृहान्विशेमान्||-अर्थववेद(१४/२/२६)
उत्तममंगल कामना वाली,गृहवालो को दुख से छुडाने वाली,पति की सेवा करने वाली,श्वसुरो को सुख देने वाली,सास का हित करने वाली स्त्री अपने घर मे प्रविष्ट हो|
४ इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योतेsदिते सरस्वती महि विश्रुति|
एता तेsअघ्न्येनामानि देवेभ्यो मां सुकृतं ब्रूयात्||-यजुर्वेद(८/४३)
जो विद्वानो से शिक्षा पाई हुई स्त्री हो वह अपने अपने पति ओर अन्य सब स्त्रियो को यथायोग्य उत्तम कर्म सिखलावे जिससे किसी तरह वे अधर्म की ओर न डिगे| वे दोनो स्त्री पुरूष विद्या की वृध्दि और बालको तथा कन्याओ को शिक्षा किया करे|
५ प्रेतो मुञ्चामि नामुतः सुबध्दाममुतस्करम्|
यथेयमिन्द्र मीढ्वः सुपुत्रा सुभगासति||-ऋग्वेद(१०\८५\२५)
वधू का सम्बन्घ पितृकुल से छुटे,परन्तु पतिकुल से न छुटे| पतिकुल से सम्बन्ध सुदृढं होवे| परमेश्वर इस वधु की पतिकुल मे उत्तम पुत्रो से युक्त करे,और उत्तम भाग्य से युक्त करे|
६. प्रबुध्यस्य सुबुधा बुध्यमाना दीर्घायुत्वाय शतशारदाय|
गृहान्गच्छ गृहपत्नी यथासो दीर्घ त आयुः सविता कृणोतु||-अर्थववेद(१४/२/७५)
स्त्री विदुषी होवे,प्रातःकाल उठे,सौ वर्ष की दीर्घायु के लिए ज्ञान प्राप्तिपूर्वक प्रत्यन्न करे|अपने पति के घर मे रहे| अपने घर की स्वामिनी बनकर विराजे| परमात्मा इसको दीर्घायु करे|
७इह प्रियं प्रजायै ते समृध्यतामस्मिन्गृहे गार्हपत्याय जागृहि|
एना पत्था तन्वं सं स्पृशस्वाथ जिर्विर्विदथमा वदासि||-अर्थववेद(१४/१/२१)
इस धर्मपत्नी के सन्तान उत्तम सुख मे रहे| यह धर्मपत्नी अपना गृहस्थाश्रम उत्तम रीति से चलावे| यह धर्मपत्नी अपने पति के साथ सुख से रहे| जह इस तरह धर्ममार्ग से ग्रहस्थाश्रम चलाती हुई यह स्त्री वृध्द होगी तब यह योग्य सम्मति देने योग्य होगी|
८ इयं नारी पतिलोकं वृणाना नि पद्यत उपत्वा मर्त्य प्रेतम्|
धर्म पुराणमनुपालयन्ती तस्यै प्रजां द्रविणं चेह धेहि||-अर्थववेद(१८/३/१)
पति के मर जाने के पर सन्तान की कामना करने वाली स्त्री धर्मानुकूल दूसरे पुरूष को पति बनाकर धन व सन्तान प्राप्ति करे|वह पुरूष भी उसे पत्नी बनाकर सन्तान व धन से पालन पोषण करे|
९ अमोsहमस्मि सा त्वं सामाहमस्म्यृक्त्वं द्योरहं पृथिवी त्वम्|
ताविह संभवाव प्रजामा जनयावहै||-अर्थववेग(१४/२/७१)
पुरूष प्राण है और स्त्री रयि है,पुरूष सामगान है तो स्त्री मंत्र है| पुरूष सूर्य है और स्त्री पृथ्वी है| ये दोनो मिलकर इस संसार मे रहे और उत्तम सन्तान उत्पन्न करे|
१० सा विट् सुवीरा मरूद्भिरस्तु सनात् सहन्ती पुष्यन्ती नृम्णम्||-ऋग्वेद (७/५६/५)
वही स्त्री श्रेष्ठ है,जो ब्रह्मचर्य से समस्त विद्याओ को पढकर वीर सन्तानो को जन्म देती है,जो सहनशील है और धनकोश वाली है|
११ सम्राज्ञेधि श्वशुरेषु सम्राज्युत देवृषु|
ननान्दुः सम्राज्ञेधि सम्राज्युत श्वश्रवा||-अर्थववेद(१४/१/४४)
अपन् ससुर आदि के बीच,देवरो के मध्य,ननंदो के साथ भी महारानी होकर रहे|
अतः मित्रो स्त्री का जितना समादार वैदिक धर्म मे है अन्य किसी सम्प्रदाय मे नही है

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