Friday, October 4, 2013

पाईथागोरस से 300 वर्ष पूर्व बौधायन ने इस सिध्दान्त को दिया था

चित्र मे दिए गए सूत्र को आज सभी पाईथागोरस के सूत्र के नाम से जानते है,

लेकिन इस सिध्दान्त का प्रयोग पाईथागोरस से कई हजारो वर्षो पूर्व भारतीयो द्वारा किया जाता रहा है।
पाईथागोरस से 300 वर्ष पूर्व बौधायन ने इस सिध्दान्त को दिया था जिसके बारे मे हम अपने पेज मे काफी दिनो पहले बता चुके थे लेकिन बौधायन से भी पहले ये सूत्र मयदानव को ज्ञात था।
मयदानव रावण का ससूर था,ये एक महान वास्तुशास्त्री,अभियंता,ज्योतिषी थे।
मयदानव ने अर्जुन के लिए इन्द्रप्रस्थ नगर बनाया था।मयदानव ने यात्रिकी,ज्योतिषी ओर वास्तुशास्त्र पर कई ग्रंथ लिखे थे।
जिनमे से आज कई लुप्त हो गए है। इनहे उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर बसाने का भी श्रेय दिया जाता है।
इनके बारे मे अधिक जानकारी हैतु इस लिंक को देखे:-
http://bharatdiscovery.org/india/मय_दानव
मय दानव ने वास्तुशास्त्र आदि विद्याओ का ज्ञान सूर्यदेव से लिया था।ऐसा उसने अपने सूर्य सिध्दान्त नामक ग्रंथ मे भी लिखा है। मयकृत सूर्य सिध्दान्त मे आया है-
"शंङ्कुच्छायाकृतियुते­र्मूलं कर्णोsस्य वर्गत:।
प्रोज्झज्ञ शङ्कुकृतिं मूलं छाया शङ्कुर्विपर्ययात्॥सू­र्य सिध्दान्त3:8॥"
शंकु व छाया के वर्ग योग का वर्गमूल कर्ण होता है।
कर्ण वर्ग से शंकु का वर्ग घटाकर शेष का वर्गमूल छाया तथा इससे विपरीत अर्थात कर्ण वर्ग से छाया वर्ग को घटा कर शेष का वर्गमूल शंकु होता है।
स्पष्ट जानकारी के लिए चित्र देखे-
चित्र मे a=शंकु
b=छाया
c=कर्ण है।
तो क्या यह प्रमेय मयदानव से शुरू हुई तो ऐसा भी नही है मय से भी कई युगो पुर्व ऋषियो द्वारा इसका उपयोग किया जाता रहा है जो कि इसी ग्रंथ के एक सूत्र से पता चलता है-
सूर्य अंश मयदानव से कहते है-
"श्रृणुष्वैकमना: पूर्व यदुक्त ज्ञानमुत्तमम्।
युगे युगे महर्षीणां स्वयमेव विवस्वता॥1:8 सूर्य सिध्दान्त॥
प्रत्येक युग मे भगवान सूर्य ने महर्षियो को जो ज्ञान दिया वही मै तुमहे बतलाता हू।
अत: स्पष्ट है कि वैदिक काल से ही ऋषि मुनि इस सिध्दान्त को जानते थे।
इन सब के अलावा इस ग्रंथ मे ज्या,कोज्या ओर कई गणितीय सिध्दान्तो के साथ साथ समय मापन यंत्र(घडी),दिशा सूचक यंत्र(कम्पास) के बारे मे भी है।
जय श्री राम...
वन्दे भारत मातरम्।

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