Friday, October 4, 2013

क्यों करते हैं पूजा से पहले आचमन ?

पूजा-पाठ, कर्मकांड में पूजन शुरू करते समय सबसे पहले पानी से आचमन किया जाता है और उसके बाद खुद पर जल छिड़क कर शुद्ध किया जाता है। यह कर्मकांड की सबसे जरूरी विधि मानी जाती है। आचमन का अर्थ क्या है? यह क्यों किया जाता है? क्या यह शुद्धिकरण की कोई प्रक्रिया है या केवल एक विधि का हिस्सा है? 

क्यों खुद पर जल छिड़का जाता है, जबकि हम नहाकर ही पूजन करते हैं?

वास्तव में आचमन केवल कोई प्रक्रिया नहीं है। यह हमारी बाहरी और भीतरी शुद्धता का प्रतीक है। जब हम हाथ में जल लेकर उसका आचमन करते हैं तो वह हमारे मुंह से गले की ओर जाता है, यह पानी इतना थोड़ा होता है कि सीधे आंतों तक नहीं पहुंचता।

हमारे हृदय के पास स्थित ज्ञान चक्र तक ही पहुंच पाता है और फिर इसकी गति धीमी पड़ जाती है। यह इस बात का प्रतीक है कि हम वचन और विचार दोनों से शुद्ध हो गए हैं तथा हमारी मन:स्थिति पूजा के लायक हो गई है। 

फिर खुद के ऊपर जल छिड़का जाता है जो इस बात का प्रतीक है कि हम पूजा के लिए दैहिक और काम दोनों रूपों में भी शुद्ध हो गए हैं।

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