Thursday, February 27, 2020

वराहमिहिर का काल

वराहमिहिर को आजकल वामपंथी इतिहासकारों ने 500 ईस्वी के आसपास रखा है। जबकि वराहमिहिर संवत प्रवर्तक विक्रमादित्य के नवरत्न थे। अतः इनका काल 50 ईस्वी पूर्व के आसपास ही होना चाहिए। इसके लिए इन लोगों ने राजा विक्रमादित्य को ही काल्पनिक बता दिया जबकि इस राजा के संवत का प्रयोग 274,287,314 ईस्वी के क ई सारे यूप स्तम्भों पर है। उज्जैन में विक्रमादित्य नाम से ब्राह्मी लिपि का अभिलेख और मुद्रायें तक मिल चुकी है। ऐसे में राजा विक्रमादित्य को कल्पित कहना इतिहास के साथ छेड़छाड़ है। जब ईसापूर्व राजा विक्रमादित्य थे तो उनके नवरत्नों में वराहमिहिर भी उन्हीं के समकालीन है। किंतु पाश्चात्य विद्वान वराहमिहिर को ईस्वी बाद सिद्ध करने के लिए यह प्रमाण देते हैं कि वराहमिहिर ने अनेकों जगह शक सम्वंत का प्रयोग किया है जो कि ईसा से 78 वर्ष बाद है। इस आधार पर बराहमिहिर को ईसा बाद रख दिया जाता है। जबकि ध्यान देना चाहिए कि शकों का भारत आने का सिलसिला ईसापूर्व से ही हो गया था। युग पुराण में भी अम्लाट नाम के शक का उल्लेख है। राजा विक्रमादित्य ने भी शकों को भगा कर ही शकारि उपाधि ग्रहण की थी। अतः वराहमिहिर द्वारा प्रयोग किये जाने वाला शक सम्वंत ईस्वी बाद 78 वाला ही शक सम्वंत है ऐसा मानना नितांत भ्रम है। 
अपने काल के शक सम्वंत के बारे में वराहमिहिर स्वयं ही स्पष्ट कर देते हैं - 
आसनमंचासु मुनय: शासति पृथ्वी युद्धिष्ठिरे नृपतौ। 
षडद्विकपंचद्वियुत शककाल: तस्य राजश्च।। - बृहत्संहिता 13/3 
अर्थात् युद्धिष्ठिर के राज्य करने के 2526 वर्ष पश्चात् शक काल आरम्भ हुआ। महाभारत युद्ध समाप्ति और युद्धिष्ठिर का राज आरम्भ को विद्वानों ने अभिलेखों, पुराणों के आधार पर लगभग 3100 ईसापूर्व के आसपास माना है। इसमें से 2526 घटाये तो - 3100-2526 = 574 ई. पू. वराहमिहिर द्वारा उल्लेखित शक काल आता है। 
इस शक काल को प्रचलित शक काल मानकर वराहमिहिर को ईस्वी बाद 500 के आसपास रखा है। हमने वराहमिहिर के शक काल को 570 ई. पू. सिद्ध किया है अगर हम इस गणना में से वराहमिहिर की पाश्चात्य और वामपंथियों द्वारा मानी गयी गणना को घटा दें 570 - 500 = 70 ई. पू. वराहमिहिर का काल आ जाता है जो कि संवंत प्रवृत्तक राजा विक्रमादित्य 57 ई. पू. के समकालीन बैठता है। 
हमने मोटी गणना की है जो कि और सटीक प्रयासों द्वारा हो सकती है।

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