Sunday, March 29, 2020

चट्टानों को काटने - तोडने की प्राचीन रासायनिक तकनीक

आज अनेकों यंत्रों द्वारा चट्टानों को काटकर या तोडकर सुरंगों, रास्तों, बोरिंग हो जाती है। किंतु जब हम प्राचीन काल के गुफाओं जैसे अजन्ता, ऐलोरा, मंदिरों और कुओं को देखते हैं तो आश्चर्य होता है कि आखिर कैसे विशाल शिलाओं को खंड - खंड करके इनका निर्माण किया गया होगा? क्योंकि आज अगर जमीन से पानी निकालना होतो विशाल शिला को बोरिंग मशीन द्वारा खंडित कर दिया जाता है। यदि गुफा बनानी हो या सुरंग बनानी हो तो पाषाण को काटने के लिए अनेकों अत्याधुनिक मशीने हैं किंतु प्राचीन काल में लोग कौनसी तकनीक से शिलाओं को तोडकर मंदिर, मुर्ति, कुआं व गुफा बनाते थे? क्या वे ये काम हाथों और कुछ हथोडी, छैनी, कुदाल आदि से करते थे? यदि केवल कुदाल आदि छोटे यंत्रों से ये काम देखें तो विशाल शिलाओं और पर्वतों को काटना या खंडित करना लगभग असम्भव व समय साध्य है।
अत: कोई ऐसी तकनीक अवश्य ही होगी जिनसे शिलाओं को तोड लिया जाता होगा और फिर उससे गुफा और कैलाश जैसे विशाल मंदिरों का निर्माण किया जाता था।
वो तकनीक थी कुछ ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना जो कि रासायनिक गुणों द्वारा किसी भी शिला को चटका या तोड सकती थी। जिससे आसानी से मंदिर, गुफा और कुओं का निर्माण हो जाता था। इन रासायनिक तकनीकों का वर्णन हमें वाराहमिहिर कृत वृहत्संहिता में मिलता है -
शिला तोड़ने का उपाय कथन
भेदं यदा नैति शिला तदानीं पलाशकाष्ठैः सह तिन्दुकानाम् ।
प्रज्वालयित्वानलमग्निवर्णा सुधाम्बुसिक्ता प्रविदारमेति ॥११२॥

- कुँआ खोदते समय शक्तिशाली पत्थर या शिला आवे और परिश्रमपूर्वक भी टूटे नहीं, तो पलाश (ढाक) की लकड़ी तथा तिन्दु (तेन्दुआ ) पेड़ की लकड़ी उस शिला या पत्थर के ऊपर रखकर सुलगाना चाहिये। जब पत्थर या शिला लाल
रंग के जैसी दिखने लगे तो उस पर चूने के पानी का छींटा मारने से तथा हिलाने से शिला टूट जायेगी। बहुत शक्तिशाली शिला हो, तो दो से सात वार उपरोक्त विधि अनुसार लकड़ी जला कर चूने के पानी का छींटा देने से शिला निश्चय ही टूट
जायेगी ॥११२॥
पुनः शिला तोड़ने की विधि कथन -
तोयं श्रितं मोक्षकभस्मना वा यत्सप्तकृत्वः परिषेचनं तत् ।
कार्यं शरक्षारयुतं शिलायाः प्रस्फोटनं वह्निवितापितायाः ॥११३|॥
उपरोक्त पलाश एवं तिन्दु की लकड़ियाँ सुलगा कर शिला के लाल होने के बाद उस पर चिता भस्म घोल कर गर्म शिला पर डालने से या सात बार छींटा मारने से वह पत्थर या शिला टूट जाती है, उक्त श्लोक का इस प्रकार भी
अर्थ हो सकता है-
मोक्षक ( काली पाढ़रि ) वृक्ष की लकड़ी का भस्म मिलाकर पानी को खूब गर्म करना चाहिए, फिर उसमें शर वृक्ष का भस्म मिलाना चाहिए, उसके बाद पूर्ववत् तपायी गईं शिला पर उस घोल का सात बार छिड़काव करने से वह शिला टूट या फूट जाती है ॥११३॥
पुनः शिला तोड़ने के उपाय कथन
तक्रकाञ्जिकसुराः सकुलत्था योजितानि बदराणि च तस्मिन् ।
सप्तरात्रमुषितान्यभितप्तां दारयन्ति हि शिलां परिषेकैः ॥११४|॥
-तक्रकांजिकसुरा एक पात्र में तीन मात्रा लेकर, उसमें कत्था तथा बादराणि की लकड़ी डालकर सात दिन सड़ने दें । तत्पश्चात् कुँए में पूर्वोक्त लकड़ी सुलगाकर पत्थर लाल कर देवें । उस शिला पर उस सड़े सुरा के जल का छीटा
मारने से शिला टूट जायेगी । शिला की शक्ति के अनुसार अधिक से अधिक सात बार ऐसा करना होगा।
‌कृति-तक्रकांजिक सुरा एवं आसव चार-चार मन एक कोठली में भरे एक मन कत्था, एक मन बदरी लकड़ी डाल सात दिन तक ढककर रखें, उसे सड़़ने दें, फिर उसका उपयोग करे इस प्रकार भी उपरोक्त श्लोक का अर्थ सम्भव है-
तक्र = छाछ; कॉजी,सुरा= मद्य और कुलथी, इन सबों को मिलाकर एक बर्तन में सात रात तक रखना चाहिए । बाद में अग्नि से तपाई हुईं शिला पर उसेबार-बार छिड़कने से शिला टूट जाती है॥११४॥
पुनः शिला तोड़ने के उपाय कथन
नैम्बं पत्रं त्वक्च नालं तिलानां
सापामार्गं तिन्दुकं स्याद् गुडूची ।
गोमूत्रेण स्तनावितः क्षार एषां
षट्कृत्वोऽतस्तापितो भिद्यतेऽश्मा ॥११५॥
माया-नींबू का पत्ता, छाल, तलसरा, अपामार्ग, तिन्दुक की लकड़ी, गुडुची आदि को गोमूत्र में रखकर क्षार बनावें तत्पश्चात् कुँआ के पत्थर को सुलगा केर लाल कर दें, एवं उसका (क्षारका) छींटा नौं बार मारें, तो वज्र जैसी शीला भी टूट जायेगी।
कृति-नींबू का पत्ता आदि छ: वस्तुएँ एक-एक मन लेकर मिलावें । उसमें छः मन गोमूत्र मिलाकर क्षार तैयार करें। एवं तपी शिला पर इसका छींटा मारे । श्लोक का अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं-
नींब के पत्ते, उसकी छाल, तिलों का नाल, अपामार्ग, तेन्दुफल , गिलोय आदि
की भस्म को गोमूत्र में मिलाकर, उसे तपाई हुई शिला पर छःबार छिड़काव करने से शिला फूट जाती है ॥११५॥

- वृहत्संहिता, दकार्गलनिरूपणम्-५४
यहां कुछ ऐसे ही प्रयोग दिये हैं जो इस और संकेत करते हैं कि प्राचीन काल में एलोरा जैसे मंदिर बनाने या कुआं खोदने, गुफा बनाने के लिए चट्टानों को खंडित करने के लिए, इसी प्रकार के पदार्थों का प्रयोग किया जाता था जिससे चट्टानें रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा चटक जाती थी।

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