संस्कृत की धाव् धातु युनानी में θευ (थऎव - थाव्) होता है।
इसी तरह ग्रीक में प्राचीन मंदिरों में हवन भी होता था उसकी धातु भी संस्कृत व पालि की "हु" (जुहोति) धातु है जिसका ग्रीक रुप - θυ (थ उ - थु) धातु है।
इसी तरह संस्कृत की जन् धातु का ग्रीक रुप ΓΕΝ (गऍन) है। तथा दा धातु (देने अर्थ में) का ग्रीक रुप Δο (दऒ - दो) है।
धाव् - थाव्
हु - थु
जन् - गेन्
दा - दो
काल व देशांतर से उच्चारण में परिवर्तन हुआ किंतु अर्थ व प्रयोग में परिवर्तन नहीं हुआ।
संस्कृत व ग्रीक की समानता देखकर कुछ नवभौंदू संस्कृत को विदेशी या ग्रीक से उपजी बता सकते हैं किंतु ग्रीक भाषा प्राकृत या पालि से भी मिलती है जैसे -
हृस्व ए, ओ दोनो संस्कृत में नही है किंतु पालि में है जिनके लिए ग्रीक में ο ऒ तथा ε ऍ का संकेत या ध्वनि प्रयुक्त होती है। इस आधार पर पालि या प्राकृत के अक्षरों का मूल ग्रीक मानना चाहिए, जबकि आधुनिक भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी देखे तो भी संस्कृत, ग्रीक, प्राकृत एक ही परिवार की भाषायें है। हमारे मत में ये समानता इनकी वैदिक भाषा से निष्पत्ति दर्शाती है।
इसी तरह ग्रीक में प्राचीन मंदिरों में हवन भी होता था उसकी धातु भी संस्कृत व पालि की "हु" (जुहोति) धातु है जिसका ग्रीक रुप - θυ (थ उ - थु) धातु है।
इसी तरह संस्कृत की जन् धातु का ग्रीक रुप ΓΕΝ (गऍन) है। तथा दा धातु (देने अर्थ में) का ग्रीक रुप Δο (दऒ - दो) है।
धाव् - थाव्
हु - थु
जन् - गेन्
दा - दो
काल व देशांतर से उच्चारण में परिवर्तन हुआ किंतु अर्थ व प्रयोग में परिवर्तन नहीं हुआ।
संस्कृत व ग्रीक की समानता देखकर कुछ नवभौंदू संस्कृत को विदेशी या ग्रीक से उपजी बता सकते हैं किंतु ग्रीक भाषा प्राकृत या पालि से भी मिलती है जैसे -
हृस्व ए, ओ दोनो संस्कृत में नही है किंतु पालि में है जिनके लिए ग्रीक में ο ऒ तथा ε ऍ का संकेत या ध्वनि प्रयुक्त होती है। इस आधार पर पालि या प्राकृत के अक्षरों का मूल ग्रीक मानना चाहिए, जबकि आधुनिक भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी देखे तो भी संस्कृत, ग्रीक, प्राकृत एक ही परिवार की भाषायें है। हमारे मत में ये समानता इनकी वैदिक भाषा से निष्पत्ति दर्शाती है।
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