Thursday, July 2, 2015

विद्यार्थियों को मह्रिषी नारद की शिक्षा

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ओ३म् || 
विद्यार्थियों को मह्रिषी नारद की शिक्षा –
(१) क्रोध ओर चिडचिड़ा पन छोडो – पञ्च विद्या न गृहन्ति चण्डा: स्तब्धाश च ये नरा: |
अलसाश चाsनरोगाश च येषा च विसृत मन: ||नारदीय शिक्षा २/८/१४ ||
चिडचिडा मनुष्य,ढीठ मनुष्य, आलसी मनुष्य,व्याधिग्रस्त मनुष्य ओर चंचलचित वाला मनुष्य ये पांच प्रकार के मनुष्य कभी विद्या ग्रहण नही कर सकते है |
(२) विद्या को धैर्य पूर्वक बिना जल्दबाजी के धीरे धीरे प्राप्त करे –
“शनैर विद्या शनैरर्थानारोहेत पर्वत शनै: |
शनैरध्वसू वर्तेत योजनाना परम् व्रजेत ||नारदीय शिक्षा २/८/१५ ||
विद्या को आहिस्ता से सिद्ध करे ,धन को आहिस्ता से सिद्ध करे ,पर्वत को आहिस्ता से चढ़े |जो व्यक्ति आहिस्ता से चलेगा वह चार कोष की दुरी वाले कई योजन से दूर रहे स्थान को प्र्राप्त कर लेगा |
(३) नित्य अध्ययन करे –
“ अंजनस्य क्षय दृष्टा वाल्मीकस्य तु संचयम |
अवन्ध्यम् दिवस कुर्याद दानाsध्ययनकर्मसु ||नारदीय शिक्षा २/८/२० ||”
यत कीट: पांसुभि: श्लक्षणेर वाल्मीक: क्रियते महान |
न तत्र बलसामर्थ्यमुद्योगस तत्र कारणम्|| नारदीय शिक्षा २/८/२१ ||
विचारशील मनुष्य बहुत थोडा थोडा ही हास होने पर भी अंजन का पूर्ण क्षय ओर प्रतिदिन बहुत थोड़ी थोड़ी वृद्धि होने पर भी दीमको से बनाए गए मिटटी के टीले के संचय को देखकर दान अध्ययन इत्यादि सत्कर्म से दिन को अशून्य बनाए |
दीमको से चकनी मिटटी के सूक्ष्म कणों से बहुत बडा टीला बनाया जाता है उसमे बल कारण नही बल्कि निरंतर उद्योग कारण है |
(४) विद्या का बार बार दोहराव अर्थात अभ्यास करे –
“ सहस्त्रगुणिता विद्या शतश: परिकीर्तिता |
आगमिष्यति जिह्वाग्रे स्थलान निम्नमिवोदकम || नारदीय शिक्षा २/८/२२ ||”
हजार बार अभ्यास की हुई ओर सेकड़ो बार शिष्यों को पढाई गयी विद्या उच्च स्थान से नीचे स्थान की ओर पानी की भान्ति जिह्वा पर आ जाती है |
(५) कम सोना चाहिय –
“ हयनामिव जात्यानामर्धरात्रार्धशायिनाम|
न हि विध्यार्थिना निंद्रा चिर नेत्रेषु तिष्ठति || नारदीय शिक्षा २/८/२३ ||
रात के आधे भाग समय में ही एक पार्श्व से ही सोने वाले घोड़ो की भान्ति विद्याभिलाषी छात्रो की निंद्रा आँखों में बहुत देर तक नही रहती है |
(६) समय पर भोजन करना ,स्वाद का लालसी न होना ,ओर विद्या प्राप्ति के लिए दूर जाने वाला –
“ न भोजनविलम्बी स्यान च चाsशननिबंधन: |
सुदूरमपि विद्यार्थी व्रजेद गरुणहंसवत || नारदीय शिक्षा २/८/२४ ||”
विद्यार्थी भोजन में विलम्ब करने वाला न हो, विद्यार्थी अधिक ओर स्वादु भोजन के लिए कही ठहरने वाला न हो ,विद्यार्थी हंस ओर गरुण की भान्ति दूर देश में विद्या प्राप्ति हेतु पहुचे |
(७) अधिक भीड़ भाड़,अति भोजन ओर स्त्री से दूर रहे – 
“ योsहेरिव गणाद भीत: सौहित्यान नरकादिव|
राक्षसीभ्य इव स्त्रीभ्य: स विद्यामधिगच्छति ||नारदीय शिक्षा २/८/२५ ||”
जो जनसमूह से सर्प से डरने की भान्ति डरे ,अतिभोजन से नर्क से डरने की भान्ति डरने की भान्ति डरे ,स्त्रियों से राक्षसी की भान्ति डरने की भान्ति डरे ,वह विद्या को प्राप्त करता है |
(८) जुआ खेलने वाला ,अश्लील प्रसंग सुनने वाला ,भांड पृभति के नाटक देखने वाला (जेसे आज की फिल्मे ओर सीरियल ) स्त्री में अनुराग लेने ओर आलस्य लेने वाले को विद्या की अप्राप्ति होना –
“ धुतं पुस्तकवाच्य च नाटकेषु च सक्तिका |
स्त्रियस तन्द्रा च निंद्रा च विद्याविघ्नकराणि षट || नारदीय शिक्षा २/८/३० ||
जुआ .अश्लील कथा,पुस्तक आदि श्रवण ओर अध्ययन , भाण प्रभृति के नाटक देखने सुनना (जेसे आज कल की फिल्मे ओर टीवी सीरियल आदि ) स्त्री में अनुराग रखना ,आलस्य ओर निंद्रा यह छह पदार्थ विद्या प्राप्ति में विघ्नकारी है | अत: इनका त्याग करे |

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