Tuesday, July 14, 2015

यज्ञोपवीत अन्य मतो में

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यज्ञोपवीत का महत्व आप सभी जानते है ओर ये अन्य मतो में भी किसी न किसी रूप में प्रचलन में है चुकी सभी मत वैदिक धर्म से ही निकले है इसलिए संस्कार रूप में यह उनमे विद्यमान है | इन्ही में से एक यज्ञोपवीत नामक संस्कार है जो अन्य मतो में किस रूप में है वो आप नीचे पढिये –
(१) पारसी मत 
पारसी मत जो वैदिक धर्म का अत्यधिक निकटवर्ती समझा जाता है यज्ञोपवीत को ‘कुस्ती ‘ कहते है | पंडित गंगाप्रसाद जी (चीफ जज ) ने अपनी पुस्तक ‘ fountainhead of religion ‘ में लिखा है – “it is intresting to note in this conmection that like the twice-born (the first three classes ) among the follower of vedic religion, the parsees are also enjoined to wear the sacred thread which they call ‘kusti’ we quote from the vendiad,the sacred book of the parasees-
“ Zarathushtra asked Ahura mazda : O Ahura mazada ! what is one a criminal worthy of death?” Then said Ahura Mazada : By teaching an evil religion . spitama Zarathushtra ! Whosoever during spring seasons does not put on the sacred thread (kusti) does not recite the gathas,does not reverence the good waters,etc.”
अर्थात पारसियों के पैगम्बर जरथुश्त्र्थ को पारिसियो के भगवान् अहुरमज्दा ने कहा कि जो कुस्ती को धारण नही करता उसे म्रत्यु दंड दिया जाना चाहिए | पारसियों के यहा कुस्ती सात साल में दी जाती है ओर उसे बालक के चारो तरफ लपेटा जाता है | यह एक महत्वपूर्ण संस्कार है |
वैदिक धर्म में यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र ओर पारसियों में कुस्ती धारण करने का मन्त्र समान अर्थ का घोतक है – 
हमारे यहा निम्न मन्त्र है 
– “यज्ञोपवीत परम पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहज पुरस्तात् |
आयुष्यमगन्य प्रतिमुञ्च शुभ्र यज्ञोपवीत बलमस्तु तेज: ||-पा. ग्र. २/२/११ 
अर्थात यज्ञोपवीत परम पवित्र है ,आदिकाल से यह प्रजापति के साथ रहा ,यह आयु ओर तेज आदि को देने वाला है |
“फ्राते मज्दाओ वरत पौरवनीम एयाओ धनिम्स्ते हर –पाये सन्घेम मैन्युतस्तेम बन्धुहिम दयेनीम मज्बवास्नाम “
इसका अर्थ है –है डोरे ! तु बहुत बड़ा उज्व्व्ल है ,आयुबल का देने वाला है | तुझे मज्दा ने आरोपित किया मै तुझे पहनता हु |
यहा बिलकुल ऐसा लगता है की यज्ञोपवीत वाले मन्त्र का पारसी में अनुवाद कर दिया हो |
मुस्लिम मत –
मुसलमानों में बिस्मिल्ला पढ़ा जाना कहते है | उनके यहा ४ साल ४ महीने ४ दिन ४ घड़ी ४ पल हो जाने पर बालक को बिस्मिलाह सुनाकर पढने बैठाया जाता है | बिस्मिल्लाह पढ़ते हुए उसे “ बिसिमिलाह हिर्रहमान हुर्रहीम “ पढने को कहा जाता है जेसे की गृह्सुत्रो से अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार के बाद सावित्री मन्त्र की दीक्षा दी जाती है वेसे ही |
इसाई मत –
ईसाइयों में बच्चो को बपिस्मा देते है जो उपनयन का ही एक रूप है | बपिस्मा इन साय्क्लोपीडीया ऑफ़ रिलिजन के अनुसार यूनानी भाषा का एक शब्द माना है जिसका अर्थ है पुनरुत्पत्ति (regeneration ) है | यही पुनरुत्पत्ति द्विज शब्द की अभिव्यक्ति है | द्विज उसी को कहते है जिसका उपनयन संस्कार हो चूका हो |
बोद्ध मत – 
बोद्ध मत वेसे नास्तिक्वादी मत है लेकिन इसमें भी एक पब्ज्जा नाम का एक सन्सकार होता है जो कि भिक्षु बनने से पूर्व शिक्षा ग्रहण करने में होता है | ये प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में भी होता था आज कल कई बोद्ध देशो में भी होता है | इसमें कुष्ट रोगी ,चर्म का व्यापार करने वाला , चांडाल का निषेध था जो सम्भवत यज्ञोपवीत की पवित्रता का भाव ग्रहण करते हुए किया होगा क्यूंकि उक्त व्यक्ति पवित्रता की निरन्तरता नही रख सकते है |
नोट – यहा सिख मत का उलेख नही किया है उस पर अलग से एक पोस्ट बनाई जायेगी |

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