Wednesday, July 9, 2014

गायत्री मंत्र और शंका समाधान



- ओउम् -

नमस्ते प्रिय पाठकों, गायत्री मंत्र के विषय में कुछ तथाकथित मुस्लिम विद्वानों का यह विचार है कि गायत्री मंत्र का उच्चारण मुसलमानों के लिये शिर्क अर्थात गुनाह है और मुसलमानों को इसका उच्चारण नहीं करना चाहिये। इनकी बात में कितना सत्य है आइये देखते हैं।

गायत्री मंत्र और उसका अर्थ -

गायत्री मंत्र वेदों का सबसे सर्वोच्च और श्रेष्ठ मंत्र माना जाता है। मंत्र इस प्रकार है:

ओउम् भूर्भुवः॒ स्वः ।
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यं ।
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। ।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥ ।


इस मंत्र का भाष्य करते हुऐ महर्षि दयानन्द लिखते हैं – जो मनुष्य कर्म, उपासना और ज्ञान-सम्बन्धिनी विद्याओं का सम्यक् ग्रहण कर सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा के साथ अपने आत्मा को युक्त करते हैं तथा अधर्म अनैश्वर्य और दुःखरूप मलों को छुड़ा के धर्म ऐश्वर्य और सुखों को प्राप्त होते हैं, उनको अन्तर्यामी जगदीश्वर आप ही धर्म के अनुष्ठान और अधर्म का त्याग कराने को सदैव चाहता है।। (यजुर्वेद 36.3)

न तो इस मंत्र में कहीं भी परमात्मा को छोड़ अन्य किसी की उपासना करने को कहा गया है, और न ही किसी देवता की। फिर मुस्लिमों का विरोध किस बात पर है? मुसलमानों का विरोध मंत्र में आये “सवितुः” के लिये होता है। उनके अनुसार मंत्र में “सवितुः” का प्रयोग ईश्वर द्वारा निर्मित सूर्य के लिये किया गया है और उसकी उपासना करने और मार्गदर्शन करने के लिये कहा गया है। परंतु यह बात पूर्णतः असत्य है। वेदों में ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु, पदार्थ की उपासना करने की आज्ञा कदापि नहीं है।

तमीळत प्रथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुतमृञ्जसानम। ऊर्जः पुत्रं भरतं सृप्रदानुं देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्।। (ऋग्वेद 1.96.3)
हे जिज्ञासु, अर्थात परमेश्वर का विज्ञान चाहनेवाले मनुष्यों ! तुम जिस ईश्वर ने सब जीवों के लिए सब सृष्टियों को उत्पन्न करके प्राप्त कराया है वा जिसने सृष्टि को धारण करनेहारे पवन और सूर्य रचा है, उसको छोड़ के अन्य किसी की कभी ईश्वर भाव से उपासना मत करो।।

अब प्रश्न उठता है कि यह “सवितुः” जो इस मंत्र में आया है वह किसके लिये प्रयोग हुआ है? उत्तर है – “ईश्वर”। महर्षि दयानन्द ने मंत्र के पदार्थ में यह स्पष्ट कर दिया है।




अब पाठक गण स्वंय निर्णय लेवें और सत्य को स्वीकार करें। और मुस्लिम पाठकों से भी यही कहना है कि इस मंत्र का उच्चारण करने में कोई शिर्क नहीं है। आप इसका उच्चारण शुद्ध मन से कर सकते हैं।

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