Friday, July 4, 2014

वेदों मे यशस्वी ओर परोपकारी बनने का उपदेश

यशा इंद्रो यशा अग्निर्यशा: सोमो अजायत|
यशा विश्वस्य भूतस्याहमस्मि यशस्तम:||अर्थववेद ६/३६/३/
  

सूर्य यशस्वी ,आग यशस्वी,चंद्रमा यशस्वी,मै यशस्वी हू,सब संसार के बीच अत्यन्त यशस्वी हू
यशस्वी का अर्थ है यश वाला,यश कोई बूरी वस्तु नही है| अपयश अवश्य बूरा है|प्रत्येक मनुष्य को यश प्राप्त करने की कौशिश करनी चाहिए|परमात्मा के लिए वेद मे कहा है यस्य नाम महद्यश:(यजु ३२:३)अर्थात् परमात्मा का बडा यश है| परन्तु स्मरण रखना चाहिए कि यश "धर्म ओर सत्यकर्मो का फल " है| अधर्म और असत्कर्मो का फल अपयश है,निंदा है| यशस्वी होने के लिए असन्मार्गो का अवलम्बन नही करना चाहिए|
मंत्र मे यश की प्राप्ती मे सूर्य ,चंद्र ओर आग का दृष्टांत दिया है| इन के साथ "अजायत" अर्थात् जन धातु का प्रयोग किया है| जिसका अभिप्राय है सूर्य,आग ओर अग्नि जन्म से ही यशस्वी है| यह क्यु?कारण तीनो प्रकाश स्वरूप है तथा इनका प्रकाश स्वार्थ के लिए नही अपितु परार्थ के लिए है|सूर्य इसलिए प्रकाशित नही कि उसे अपने लिए प्रकाश चाहिए अपितु इसलिए कि ओरो को प्रकाश चाहिए|इसी तरह चंद्र ओर आग का लेना चाहिए..
मनुष्य को चाहिए कि अपने यश को बढाता चले ओर परोपकार मे लगाता रहे|…

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