Monday, July 14, 2014

साख्य दर्शन के विषय में भ्रान्ति

अक्सर ये माना जाता है कि सांख्य कार कपिल मुनि अनिश्वर वादी और वेद विरुधी थे तथा उनका दर्शन भी ईश्वर को नही मानता है ..ऐसी आम धारणा लोगो ने बना ली है..इन्हें देख यही कहा जा सकता है कि ऐसे लोगो ने शायद सांख्य दर्शन की शकल भी नही देखी होगी ..

सांख्य से ही प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे है कि सांख्य कार कपिल मुनि जी ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे :
"स हि सर्ववित् सर्वकर्ता (सांख्य ३:५६)" अर्थात ईश्वर सर्वत्र और निमित कारण रूप से जगत का कर्ता है .......
"ईदृशेश्वरसिद्ध: सिद्धा (सांख्य ३:५७ )" ऐसे जगत के निमित कारण रूप सर्वत्र ईश्वर की सिद्धी सिद्ध है .....
इन उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि कपिल मुनि ईश्वर को मानते थे ..अब उनके वेद विषय में देखते है :-
" नात्रिभीपौरुषेयत्वाद्वेदस्यतदर्थस्यातिन्द्रियत्वात् (सांख्य ५:४१)" वेद अपौरुष होने और वेदार्थ के अति इन्द्रिय होने से उक्त तीनो कारणों से नही हो सकता है ...                                                                            
"पौरुषेयत्व तत्कर्त्तः पुरुषस्याऽभावत् (सांख्य ३:५६)" वेदों का कर्ता पुरुष न होने से पौरुषेत्व नही बनता है ...
इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि सांख्य कार कपिल ईश्वर ओर वेद दोनों को मानते थे ..
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ :-(१) सांख्य दर्शन 
(२) वेदों का यथार्थ स्वरूप :-प. धर्मदेव जी  

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