नैनो विज्ञान ने जीवन के हर क्षेत्र मे अपनी एक गहरी पैठ बनाई है|
सूक्ष्मता के मापन और अनुप्रयोग पर आधारित विज्ञान की यह विद्या कोई नई नही है|
भारत के वैदिक साहित्यो मे इसका बहुत ही रहस्यमयी तरीके से उपयोग ओर उल्लेख है|
वैदिक साहित्य के श्वेताश्वतरोपनिषद के ५:९ मे एक श्लोक मे इस सूक्ष्म मापन को दर्शाया है-
भारत के वैदिक साहित्यो मे इसका बहुत ही रहस्यमयी तरीके से उपयोग ओर उल्लेख है|
वैदिक साहित्य के श्वेताश्वतरोपनिषद के ५:९ मे एक श्लोक मे इस सूक्ष्म मापन को दर्शाया है-
संस्कृत श्लोक चित्र मे देखे-
इसके अनुसार जीवात्मा का स्वरूप बताया है कि एक केश(बाल) के अग्र भाग के सौ भाग मे से प्रत्येक भाग को और सौ भागो मे विभाजित किया जाए,तब शेष बचे भाग को जीवात्मा का स्वरूप कहा है|
यहा उल्लेखित सूक्ष्म मापन नैनो के समतुल्य होता है|
भारत मे नैनो तकनीक का उपयोग-
भारतीय महिलाओ द्वारा प्राचीन काल से ही सौन्दर्य ओर स्वास्थ्य कारणो से बहुत पहले से ही काजल का उपयोग किया जाता है|सामान्तयः काजल बनाने के लिए सरसो का तेल या घी का दीपक के ऊपर किसी धातु के पात्र (कजरौटा) को रख कर बनाते है| तेल के अपूर्ण दहन से उत्पन्न होने वाली कार्बन मे नैनो ट्यूब्स की प्रचुर मात्रा होती है| इस प्रकार कुल उत्पन्न कार्बन का लगभग १ •\• भाग कार्बन नैनो कणो द्वारा मिलकर बना होता है|
(चित्र मे खुजराहो की मुर्ति जिसमे एक नारी को काजल लगाते दर्शाया है)
एक उदाहरण हम बनारसी साडियो मे प्रयोग होने वाले सोने के पतले रेशो का ले सकते है| ये रेशे १० माइक्राँन(नैनो मीटर स्तर) तक मोटाई के लगभग होते है| सोने के इन रेशो की वजह से बनारसी साडी की गुणवकता ओर मूल्य कई अधिक होता है|
इसी तरह प्राचीन भारतीय किलो ,अंजता की गुफाओ ओर मंदिरो मे चित्रकला ओर मुर्तिकला मे नैनो तकनीक का उपयोग भारतीय मिस्त्रियो ,वास्तु विशेषज्ञो द्वारा किया गया है|
सुनारो द्वारा सोने,चादी ओर अन्य धातुओ के आभूषण बनाने मे भी नैनो तकनीक का उपयोग किया है|
इसी तरह लौहारो द्वारा विभिन्न तरह तरह की तलवारो को बनाने मे नैनो तकनीक का उपयोग किया गया है|
समय के सूक्ष्म मापन पध्दतिया जैसे नेनो सैकंड के रूप मे निमिष का उपयोग भारत मे कई वर्षो से हो रहा है|
अतः वैदिक शास्त्रो ओर भारतीयो को नैनो विज्ञान का जनक कहना कोई गलत न होगा|
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