Thursday, November 14, 2013

वेद विज्ञान


एक मुस्लिम ने सात आसमान के प्रश्न के उत्तर मे प्रतिप्रश्न करते हुए अथर्ववेद के काण्ड 4 के 20वे सूक्त के मन्त्र 2 पर आक्षेप किया है । उसका उत्तर

अथर्ववेद काण्ड 4 सूक्त 2 का अर्थ –
ये सूक्त औषधि के विषय मे है – मन्त्र 1 - (देवि) विशेष गुण वाली [औषधि ] को [वैद्य] (पश्यति) देखता है अर्थात सामान्य रूप से देखता है , (आ पश्यति) [मुख्य गुणो के आधार पर] विशेष रूप से देखता है, (प्रति पश्यति) वि...परीत गुणो को देखता है (परा पश्यति) दूरगामी प्रभाव को देखता है। भूमि, अंतरिक्ष, सूर्य को देखता है। विशेष- भूमि को देखना आयुर्वेद मे जिस भूमि मे औषधि उत्पन्न होती है उसका का भी विचार क्या गया है जैसे पर्वत पर उत्पन्न औषधि अधिक गुणकारी है तथा मरुस्थल मे उत्पन्न कम गुण वाली । अन्तरिक्ष = वायुमंडल प्रभाव जैसे हवा मे नमी धूल आदि का होना। दिव = सूर्य का प्रभाव जैसे गर्मी सर्दी। (सुश्रुत संहिता मे लिखा है की सभी औषधियों मे अग्नि और सोम का संतुलन होता है जैसे आक, चित्रक आदि अग्नि गुण प्रधान औषध हैं और कमल, गिलोय आदि सोम गुण प्रधान औषध हैं )। सूर्य के प्रकाश का प्रभाव – आधुनिक उद्भिद विज्ञान (BOTANY) के अनुसार पौधों को सूर्य के प्रकाश की दृष्टि से 2 विभागों मे बांटा गया है । Long Day Light तथा Short Day Light। अनेक पौधों पर सूर्य के प्रकाश के कम या अधिक होने पर प्रभाव होता है। अधिक समय तक अंधेरे मे रहने पर गन्ने की पोरिया (INTER NODE) आदि लम्बी होती हैं तथा अधिक समय तक प्रकाश मे रहने से गन्ने की पोरिया inter nodes छोटी होती हैं ।
मन्त्र 2 - (तिस्र दिवः) तीन प्रकार का सूर्य का प्रभाव = गर्मी, सर्दी और वर्षा, (तिस्र पृथिवी) तीन प्रकार भूमि = अनूप, जांगल और साधारण (षट च इमाः प्रदिश पृथक ) औषधि से संबन्धित छह दिशाएँ - जैसे नीचे की दिशा मे समुद्र के निकट नीचे स्थान पर उत्पन्न औषधि , उच्च स्थान पर अर्थात पर्वतों पर उत्पन्न औषधि तथा पूर्व आदि 4 दिशाओं मे उत्पन्न औषधि। (देवि ओषधे)- हे प्रभावशाली औषध (त्वया) तुझे (सर्वा भूतानि) सभी जीवधारियों मे (जीवधारियों के रोगों मे ) (पश्यानि ) [उपयोगी] देखूँ - विशेष - आयुर्वेद मे मनुष्य के रहने वाली भूमि को 3 भागों मे बांटा गया है - अनूप अर्थात जहां जल की अधिकता ही जैसे केरल प बंगाल आदि ऐसे स्थानों मे कफ के रोग अधिक होते हैं । जांगल जहां पर जल कम हो जैसे हरियाणा, राजस्थान आदि वहाँ पर वात के रोग अधिक होते है । साधारण अनूप और जांगल दोनों के गुण जैसे हिमाचल पंजाब आदि । तीनों स्थानो पर रहने वालों को अलग अलग किस्म के रोग होने की सम्भावना है। औषधि को तू कहने का अर्थ ये नहीं है कि औषधि चेतन है अपितु यहाँ मानवीकरण किया गया है। आयुर्वेद केवल मनुष्य के लिए नहीं है। गो। अश्व, हस्ती और वृक्षायुर्वेद भी होता है

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