Thursday, November 14, 2013

हडप्पा संस्कृति से प्राप्त एक मुद्रा(सील)



मित्रो उपर्युक्त जो चित्र है वो हडप्पा संस्कृति से प्राप्त एक मुद्रा(सील) का फोटोस्टेट प्रतिकृति है।ये सील आज सील नं 387 ओर प्लेट नंCXII के नाम से सुरक्षित है,,
इस सील मे एक वृक्ष पर दो पक्षी दिखाई दे रहे है,जिनमे एक फल खा रहा है,जबकि दूसरा केवल देख रहा है।
यदि हम ऋग्वेद देखे तो उसमे एक मंत्र इस प्रकार है-
द्वा सुपर्णा सुयजा सखाया समानं वृक्ष परि षस्वजाते।
तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्तयनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥
-ऋग्वेद 1/164/20
इस मंत्र का भाव यह है कि एक संसाररूपी वृक्ष पर दो लगभग एक जैसे पक्षी बैठे है।उनमे एक उसका भोग कर रहा है,जबकि दूसरा बिना उसे भोगे उसका निरीक्षण कर रहा है।
उस चित्र ओर इस मंत्र मे इस तरह की समानता से आप लोगो को क्या लगता है???
क्युकि हमारे कई पुराने मंदिरो पर या कृष्ण जी के मन्दिरो पर रामायण ओर कृष्ण जी की कुछ लीलाए चित्र रूप मे देखी होगी,जिनका आधार रामायण ओर महाभारत जैसे ग्रंथ है।
तो क्या ये चित्र बनाने वाला व्यक्ति या बन वाने वाले ने ऋग्वेद के इस मंत्र को चित्र रूप दिया हो ताकि लोगो को इस मंत्र को समझा सके ।
क्या हडप्पा वासी वेद पढते थे।ऋग्वेद मे स्वस्तिक शब्द है ओर उसका चित्र रूप जो हम आज शुभ कार्यो मे बनाते है वो हडप्पा सभ्यता से प्राप्त हुआ है।
तो क्या हडप्पा वासी भी वेद पढते थे।वे वेदो को मानते थे।
आप लोग अपनी राय दे- 

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