Monday, June 8, 2015

क्या वेदों में लौकिक नारी अदिति का वर्णन है ?

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ओ३म्||
क्या वेदों में लौकिक अदिति ओर उसके पुत्रो का वर्णन है |
इससे पहले मै एक प्राचीन किस्सा लिखना चाहता हु जो इस तरह है -"एक कौत्स जो जिज्ञासु थे लेकिन वेद से अनभिज्ञ थे अपने पहले के कर्मकांड,ओर वेद का याज्ञिक क्रिया में प्रयोजन मात्र देख यास्क से कहते है (हालाकि कौत्स का वेदों पर विशवास था ) वैदिक अर्थसम्बन्धित विज्ञान वृथा है ,क्यूंकि वैदिक सूक्त एवम ऋचाऐ अर्थहीन ,गूढ़ ओर एक दुसरे के प्रतिकूल है | यास्क इसका उत्तर देते है कि "यदि अंधे को सूर्य न दिखाई दे तो इसमें भास्कर का कोई दोष नही है |"
यही हाल आज के तथाकथित बुद्धिमान लोगो को है जो वेद को निरर्थक कहते है | अब यहाँ से अपनी बात आगे रखता हु |
अदिति शब्द के अर्थ पर विचार करने से पहले यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए कि वैदिक संस्कृत ओर लौकिक संस्कृत दोनों में अंतर है वैदिक संस्कृत में धातुज शब्द है रूढ़ शब्द नही अर्थात शब्द किसी एक अर्थ में बंधा नही है उसकी पाणिनि व्याकरण या निरुक्ति से भेद खोला जाता है महाभाष्यकार पतंजली लिखते है " लौकिकाना वैदिकाना च " अर्थात शब्दों के दो भेद है लौकिक ओर वैदिक ..|
वैदिक शब्दों की क्या विशेषता है इस पर पतंजली कहते है -" नाम च धातुजमाह निरुकते व्याकरण शकटस्य च तोकम | नैगमरुढि हि सुसाधु (महाभाष्य ३/३/१ ) अर्थात सब नाम धातुज है वेद के शब्द रूढ़ नही होते | इसका अर्थ है कि वेद का एक शब्द अनेक अर्थ देता है ओर अनेक अर्थो के लिए एक शब्द भी होता है .. जेसे अग्नि शब्द को लेते है लौकिक में यह केवल भौतिक अग्नि के लिए है लेकिन वैदिक में यह शब्द "ईश्वर ,सूर्य ,राजा आदि के लिए भी है |" 
इस बात को ध्यान में रखते हुए ही वेद का अध्ययन ,भाष्य आदि करना चाहिए | 
अब अदिति के अर्थ पर विचार करते है - 
मह्रिषी दयानद सरस्वती अपने ऋग्वेद भाष्य में १/१६२/२२ में अदिति का अर्थ अखंडित किया है | जो इस तरह होगा "अदीना अक्षीणा अखंडिता वा परमेश्वर शक्ति (ओदनम ) उन्दें लोपश्च (उ.२/७६ ) यहा अदिति परमेश्वर की शक्ति ओर अखंडिता के अर्थ में है | क्यूंकि प्रक्रति (परमाणु ) अखंडित होते है इसलिए परमाणु को भी अदिति कहते है | इन्ही परमाणु से सूर्य ,चन्द्र ,अग्नि ,वायु आदि पदार्थ का निर्माण होता है इसलिए इस प्रक्रति (अदिति ) को देवो की माता कहते है जेसा निरुक्त में कहा हैं - अदीना देवमाता -निरुक्त ४/२२ ...ऋग्वेद के निम्न मन्त्र में अदिति के कई अर्थ प्रकट किये है - अदिति..........र्जिनित्वम (ऋग्वेद १/८३/१० ) 
मन्त्र कहता है - अदिति ‌‍ द्यौ है | अदिति अन्तरिक्ष है | अदिति माता है |अदिति पिता है | अदिति पुत्र है | सारे देव .दिशाए से सम्बन्धित देव अदिति है | जो वस्तु उत्पन्न होगी वो अदिति है | यह प्रक्रति का ऐश्वर्य है | इतने नामो को देख क्या लगता है कि वेदों में अदिति कोई स्त्री विशेष का नाम है | ये कई पदार्थ के नाम है जो कि रूढ़ शब्द नही अपितु अलौकिक धातुज है | यास्क निरुक्त में लिखते है - " एनान्यदीनानीति वा | (४/२२) दयो आदि सारी वस्तु अदिति है | इसी को अलंकार में देवो की माता कहा है | अलंकार से वाक्य में रोचकता ओर सुन्दरता आती है व्ही अलंकार मूर्खो के लिए सर दर्द होता है | 
अदिति के अन्य अर्थ - अदिति : पृथ्वी (नि . १/१ ) वाक् - (नि.१/११) गौ (नि. २/११ ) ये इतने शब्द अदिति के अर्थ में है इन्ही का प्रयोग कर किया गया भाष्य ही सही होगा जबकि पौराणिक गाथा वाली अदिति नामक स्त्री के अर्थ वाला भाष्य तो सर्वथा त्याज्य है | अब जिस मन्त्र में अदिति के पुत्र आये है उसे देखते है - 
अष्टो पुत्रासो ......मास्यत (ऋग्वेद १०/७२/८ ) अर्थ अदिति (देवो की माता प्रक्रति ) से ८ पुत्र हुए उनमे ७ पूर्व युग में ओर आठवा मह्दंड अगले युग में हुआ | 
क्या कोई स्त्री के बालक होने में युग का अंतर होता है | यह प्रक्रति द्वारा ८ पदार्थो के निर्माण का वर्णन है |
अब हम इसकी ऐतिहासिक अदिति से तुलना करते है - (१) अदिति नाम आने से यह किसी भी तरह निश्चित नही होता कि यह अदिति लौकिक स्त्री है |
(२) पौराणिक कथाओ में कई तरह की बातें है अदिति कश्यप की पत्नी है कश्यप की अन्य अनेक पत्नी है जिनसे क्रमश देव ,दानव ,नाग ओर न जाने क्या क्या पैदा हुए जबकि मन्त्र में न कश्यप है न दिति ,न नाग न ओर कुछ |
(३) लौकिक अदिति के १२ पुत्र आदित्य थे लेकिन यहा ८ पुत्र है इससे स्पष्ट है कि प्रक्रति का अलंकारित वर्णन है |
आगे इस बात को लिख कर यह लेख समाप्त करता हु - रमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेदों के शब्दों से ही सब वस्तुयों और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिक व्यवस्थायों की रचना की हैं. (मनु १.२१)
स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेद रूप नित्य दिव्य वाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं (वेद व्यास,महाभारत शांति पर्व २३२/२४)..
महाभारत ओर मनु से यह बात स्पष्ट है कि वस्तुओ या लोगो को देख वेद में नाम नही दिए गये बल्कि वेदों से वस्तुओ ,मनुष्यों ने अपने नाम रखे इसी तरह ऋषियों ओर उनकी पत्नियों ने वेदों से अपने नाम रखे न कि वेदों में उन्हें देख नाम लिखे गये |
इसकी पुष्टि यह कथन करता है - मीमासा दर्शन में जैमिनी मुनि से कोई यही प्रश्न करता है - " अनित्यदर्शनाच्च ||१/१/२७ ||" अनित्य पुरुषो का नाम आने से वेद पौरुष है | 
उत्तर में जैमिनी कहते है -" परन्तु श्रुतिसामान्यमात्रम (१/१/३१ )" वेद में जो नाम है वो समान्य नाम है किसी मनुष्य आदि के नही | 
इन सभी प्रमाणों से वेदों में इतिहास ओर अदिति आदि के वर्णन की बात का खंडन हो जाता है | इसके बाद भी कोई न माने तो इसे उसका दुराग्रह ओर हठ धर्म समझे |
साहयक पुस्तक - ऋग्वेदभाष्य - स्वामी दयानद 
-ऋग्वेदभाष्य - हरिशरण जी सिद्धांतलंकार 
-निरुक्त -पंडित भगवतदत्त जी 
-निघंटु -स्वामी दयानद जी 
-वैदिक सिद्धांत मीमासा - युधिष्टर मीमासक जी 
-जिज्ञासु रचनामन्झरी -ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी ....

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