Thursday, June 4, 2015

देशवासियों की अतिथि विषयक भ्रान्ति -


||ओ३म|| 
शास्त्रों में जीवन का रहस्य है उसमे विनम्रता के ओर संस्कार के भी उपदेश है लेकिन जब व्यक्ति शास्त्रों का अधुरा ज्ञान रखता है अथवा एक कड़ी ही देखता है तो कई बार अर्थ का अनर्थ करता है तो कई बार बहुत हानि उठाता है | ऐसे कई शास्त्रीय वचन है जिनका आधा अधुरा ज्ञान या समझ से इस भारत वर्ष ने काफी हानि उठाई है | 
जेसे अंहिसा परमो धर्म : ये अधुरा वाक्य का प्रचार बोद्ध ओर जैनों द्वारा हुआ जिसका परिणाम यह हुआ की नालंदा जल कर भस्म हो गया ओर असम का बोद्ध राजा डर कर भाग गया .. अफगानिस्थान बोद्ध राज्य से मुस्लिम देश बन गया ..
यदि धर्म हिसा तथेव च भी ध्यान रखा जाता तो ये नोबत न आती ...
इसी तरह हमने अतिथि देवो भव:याद रखा लेकिन इसका परिणाम यह हुआ की मुस्लिम अंग्रेजो को हम अतिथि की तरह शरण देते रहे ओर वो हमारी ही पीट में छुरा घोपते रहे आज भी बहुराष्ट्रीय विदेशी कम्पनियों ओर विदेशियों को अतिथि देवो भव: कह कर सम्मान दिया जा रहा है लेकिन हमने कभी ऐतरेयारण्य के १/१/९ की ओर ध्यान देना चाहिए .. " यो वै भवति य: श्रेष्ठतामश्नुते स वा अतिथिर्भवति,इति " अर्थात जो व्यक्ति सन्मार्गी होता है जो सन्मार्ग में प्रशंसा प्राप्त करता है ,वाही अतिथि होता है | 
यहा अतिथि किसे माने किसे देव माने उसका निर्देश किया है इसके विपरीत मुगल ,अंग्रेज ओर बहुराष्ट्रीयकंपनियों को अतिथि मान हमने काफी हानिया उठाई है ....
आगे इसी ऐतरय आरण्य में कहा है - : न वा असन्तमातिथ्यायाssद्रियन्ते ,इति (१/१/१० ) अर्थात सन्मार्ग रहित अतिथि का आदर नही करना चाहिए | 
यहाँ ऋषियों ने स्पष्ट कर दिया कि कौन अतिथि कहलाने योग्य है ओर किस तरह का अतिथि सम्मान पाने योग्य है ..जबकि इस पूरी बात को ध्यान न दे कर हमारा बुरा सोचने वाले ईसाई ,मुस्लिम को हमने अपने देश में सम्मान ओर प्रेम दिया ओर वो आज तक हमे नुक्सान पंहुचा रहे है ... 
इन सबसे यही निष्कर्ष निकलता है कि शास्त्रों के किसी मन्तव्य को जीवन में धारण करने से पूर्व उसके विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए .. ऐतरय का यह श्लोक ऋग्वेद ७.७४ जो अथिति शब्द वाले सूक्त है उनमे आये अतिथि शब्द की व्याख्या को ले कर है .. ओर वेद किस प्रकार के अथिति को सम्मान की बात करता है उसके विषय में प्रकाश करता है क्यूंकि स्वामी दयानंद जी के अनुसार ब्राह्मण आदि शाखाए संहिताओ की व्याख्या है ....

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