Wednesday, December 3, 2014

मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां

लेखिका -फरहाना ताज

अकबर प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है। 
एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पड़ी। वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री थी और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के साथ हुआ था। अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि यह तो तुम्हारे ही गुलाम की बीबी है, तो उसने पृथ्वीराज राठौर को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया। अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं।’’ कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा, तो किरणदेवी पीछे को हटी...अकबर आगे बढ़ते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी...लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को...उसकी कमर दीवार से जा ली।
‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपड़ा में नहीं हमारा ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो।’’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पड़ी। उसने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’
उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवश मिटाने की या कुछ ओर?’’
एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया।
एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है:
सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।
‘‘मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिड़गिड़ाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा।’’
‘‘ओह!’’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा।’’
‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा। महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक।’’
‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते।’’
‘‘नमक हमारी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी।’’
‘‘विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो?’’
‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों मेें क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो।’’
‘‘पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोड़ी सी नरम पड़ गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती।’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो? किंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खड़ा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं। यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है।’’
अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि तू मृत्यु के पाश में जकड़ा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को माँ लिया, ‘‘मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्राी जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्राी के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा।’’
वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपित भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया।
और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देने वाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है।
संधर्भित पुस्तके -प्रख्यात ऐतिहासिक शोध ग्रंथ: वीर विनोद, उदयपुर से प्रकाशित
प्रचंड अग्नि, हिन्दी साहित्य सदन, नई दिल्ली
महाराणा प्रताप जीवनी...तेजपाल आर्य

4 comments:

  1. मेला नौरोज का नहीं बल्कि आगरे का मीना बाजार था। किरणमयी को अकबर के इशारे पर एक ऐसे मार्ग से अकेले में लेकर जाया गया था जिसके किनारे कामुकता उत्पन्न करने वाले चित्र लगे थे। उसी मेले से किरणमयी ने खंजर ख़रीदा था। अकबर को धक्का देकर किरणमयी उसकी छाती पर चढ़ बैठी और अकबर द्वारा मांफी मांगने एवं मीना बाजार बंद करने पर हामी भरने पर ही किरणमयी ने उसे जिन्दा छोड़ा था।

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    1. मीना बाजार में ही नेरोज का मेला लगता था ...मीना बाजार delhi और आगरा दोनों जगह लगता था | लेख में एक कविता भी है जिसमे मीना बाजार लिखा है .. मीना के बाजार में मिस,
      छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।

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  2. किरण बाई सा थे
    तो फिर लोग राजल माँ को क्यु पुजते है
    यह गलत है
    वहाँ किरण बाईसा गये ही नही थे
    वहाँ पृथ्वीराज जिनको देवी मानते थे
    वो राजल बाईसा स्वंय गये थे
    ईस सबुत स्वंय पृथ्वीराज के दोह है
    कित दिल्ली कित आगरो कित चिडिया रो खेत
    पृथ्वीराज री पुकार सुण आया मात राजलेश

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  3. राजल माता द्वारा अकबर से नवरोजा छुडवाना💥
    बीकानेर की संस्थापिका देवी करणीजी वि स १५९५ चैत सुदी नवमी को ज्योतिर्लीन हो गये। इनके ज्योतिर्लीन के ठीक दस मास पश्चात् यानि वि स १५९५ को माघ मास के शुक्ल पक्ष में सौराष्ट्र प्रान्त के ध्रांगध्रा तालुका के चराडवा गांव में वाचा शाखा के चारण उदयराज के घर राजबाई माता का जन्म हुआ। ये राजबाई राजल माता के नाम से करणी जी के पूर्णांवतार के रूप में जानी जाती है ।
    १९३८ ईस्वी सन् को प्रख्यात इतिहासकार किशोरसिहजी बाहर्स्पत्य ने श्री करणीचरित्र ग्रंथ लिखकर बीकानेर महाराजा गंगासिह को समर्पित किया। लेखक के उक्त ग्रंथ को लिखने का एक मात्र कारण यह रहा था जो आजकल हमें व्हाटसप पर किरणदेवी नामक कल्पित पात्र द्वारा अकबर से नवरोज छुडवाने का प्रचार प्रसार करके अपने गौरव में श्री वृद्धि करके देवी राजल माता के ऐतिहासिक चरित को कमत्तर करने का प्रयास कर रहे है।
    नवरोजा प्रथा 👉एक ऐसा राजपूताने का दाग था जिसे आई श्री करणी माता के पूर्णांवतार राजल माता ने अपने दैविक शक्ति द्वारा समाप्त किया था और अकबर के इस लम्पट आचारण से राजपूताने को मुक्ति दिलवाई। जिसकी पुष्टि स्वंय पृथ्वीराज के सोरठे, दयालदास की ख्यात २ पृ १३४-३५,वाचा चारणों के रावल की बही,मुंशी देवी प्रसाद के ग्रंथ राज रसनामृत,डा लुइजिपिओ तैसिस्तोरि,रावत सारस्वत, राजवी अमरसिंह आदि के ग्रंथों से व सैकडों डिंगल रचना से इसकी पुष्टि होती है।
    पृथ्वीराज राठौठ बीकानेर के राव कल्याणमल का पुत्र था जो उच्चे दर्जे का भक्त कवि था ।अकबर के दरबार में रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड दोनो को उचित स्थान था।पृथ्वीराज राठौड महाराणा प्रताप का मौसेरा भाई था। रायसिंह को अकबर ने सौराष्ट्र प्रान्त का प्रशासक नियुक्त किया था एक बार पृथ्वीराज सौराष्ट्र जा रहा था तब रास्ते में चराडवा गांव में उसका घोडा मर गया तभी वहा से गुजर रही दस वर्षीय बालिका राजल माता ने चमत्कारी ढंग से मृत घोडे को पुन:जीवित कर दिया।पृथ्वीराज देवी अवतार राजल माता को प्रणाम करके भविष्य में होने वाले संकट में मदद करने का वचन मांगा।राजल माता ने कहा जब भी तुम्हें संकट आये मुझे याद करना मै तुम्हारी मदद करूंगी।
    पृथ्वीराज का विवाह जैसलमेर के हरराज भाटी की पुत्री छोटी पुत्री चम्पा कुंवरि के साथ हुआ था ।हरराज भाटी की बडी पुत्री नाथी बाई का विवाह अकबर के साथ हुआ।अकबर ने अपनी रानी नाथीबाई से चम्पा कुंवरि के रूप सौन्दर्य की बात सुनने पर वह उसे प्राप्त करने के लिए लालाहित हो उठा।उसने षंडयंत्रपूर्वक नवरोज के त्योहार में चम्पाकुंवरि को बुलवाने का आदेश दिया।पृथ्वीराज उसके आचरण से वाकिब था अकबर ने छलबल से उसका डोला अपने महल में बुला दिया।पृथ्वीराज अकबर की मनोइच्छा को भांप गया और उसने इस संकट की घडी में राजल माता को याद किया और अपने ऊपर आये संकट को निवारण करने की प्रार्थना की।
    पृथ्वीराज का कहा सोरठा इस प्रकार है।
    बाई सांभल बोल ,
    कमधां कुल मेटण कलंक।
    करजे साचो कोल,
    ददरैरे दीधो जिको।
    पृथ्वीराज की पुकार सुनके देवी राजल माता आगरा में प्रकट हो गये ।अकबर ने जैसे ही डोले की कनात हटाई तभी राजल माता सिंह रूप में प्रकट होकर अकबर का कंठ पकड लिया।तभी अकबर ने अपने प्राणों की भीख मांग दी और राजल माता को कहा कि मै आपकी गाय हूं मुझे माफ कर दो ।तब राजल माता ने उसे भविष्य में अपने आचरण को सुधारते हुए नवरोज प्रथा को बंद करने के वचन देने पर अकबर के प्राण बख्शे। राजल माता के नवरोज छुडवाने पर ओंकारसिंहजी लखावत द्वारा लिखित पुस्तक को पढकर अपने भ्रम को दूर करे।
    जय राजल माता
    इसे अधिकाधिक शेयर करके सही जानकारी पहुंचाये।

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