Tuesday, December 2, 2014

विष्णु और विष्णु प्रतिमा ...

विष्णु कौन थे -
एतिहासिक रूप से विष्णु का उलेख कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में मितला है इंद्र आदि मिला कर ये १२ भाई थे ...
इनका शासन क्षीर सागर के आसपास था ..संभवतय कैस्पियन सागर ही क्षीर सागर था ..इसकी पुष्टि मार्को पोलो नामक एक यात्री के वर्णन में मिलता है जिसे उसने इसे फ़ारसी के शीर सागर से दर्शाया है ये नाम संस्कृत के क्षीर सागर से बहुत समानता रखता है |
इस तरह ऐतिहासिक पात्र विष्णु का वर्णन मेने किया|
विष्णु प्रतिमा -
हमने विष्णु के ऐतिहासिकता का परिचय दिया लेकिन विष्णु की सागर में प्रतिमा ,विष्णु की शेषनाग वाली प्रतिमा ,विष्णु और उनके वाहन गरुण की प्रतिमा का प्रचलन कैसे चला इस बारे में थोडा प्रकाश डालूँगा |
एक इश्वर को छोड़ विभिन्न देवी देवताओ की पूजा का विधान चला ..इसके अनुसार पुराणों ने ऐतिहासिक पात्रो के साथ वैदिक वर्णनों की भी संगीति बिठा दी ,क्यूंकि आर्यावत के लोगो का वेदों पर अति विश्वास था अपने मत की पुष्टि हेतु उन्होंने अपने ईष्ट का वर्णन वेदों से मिलता जुलता किया ....
अब विष्णु की विभिन्न प्रतिमाओं और चिन्हों का वर्णन करूंगा लेकिन उससे पहले ये आवश्यक है की विष्णु शब्द का अर्थ क्या है ?
विष्णु शब्द का अर्थ -
ऋषि यास्क ने निघुंट में विष्णु  का  अर्थ  सूर्य दिया है -
 त्वष्टा|सविता|भग:|सूर्य:|पूषा|विष्णु:|विश्वानर:|वरुण:|
                                                   - निघंटु अध्याय ५ खंड ६
इसी तरह वेदों  में भी अनेको जगह विष्णु सूर्य के लिए आया है जिसका प्रमाण -
इरावती धेनुमती हि भूतं सूयवसिनी मनुषे दशस्या |व्यस्तभ्ना रोदसी विष्णवेते दाधर्थ पृथ्वीमभितो मयूखे:||-ऋग्वेद ७/९९/3  
(विष्णो ) है सूर्य ! (एते रोदसी )इस घुलोक और भूलोक को (व्यस्तभ्ना:)  आपने पकड रखा है और (मयूखे:) अपने आकर्षण शक्ति  से पृथ्वी  आदि लोको को चारो तरफ  से आकर्षण शक्ति  से  धारण किया है |
  अत: हमने देखा विष्णु का अर्थ सूर्य है |
इसी  तरह जो विष्णु की मूर्ति है वो सूर्य को ही बतलाती है जो आगे स्पष्ट करूंगा -
विष्णु और उनका वाहन गरुण -

 विष्णु और उनका वाहन गरुण का उलेख पुराणों में है और इसी के आधार पर इनकी प्रतिमा भी बनती है अधिकतर ऐसी प्रतिमा कई मंदिरों के मुख्य द्वार के ऊपर होती है |
गरुण को सुपर्ण भी कहा जाता है लेकिन सुपर्ण नाम किरण का भी है -
देखिये यास्क के निघंटु से -
खेदय:|किरणा:|गाव:|रश्मय:|अभीशव:|दीधितय:|गभस्तय:|वनम|उस्रा:|वसव:|,मरीचपा:|मयूखा:|सप्तऋषिय:|साध्या:|सुपर्णा:| इति पंचदश रश्मिनामानि|
यहाँ सुपर्णा नाम किरणों का दिया है और यही नाम गरुण का भी है |
इस तरह विष्णु के वाहन गरुण का अर्थ हुआ सूर्य का किरणों पर विराजमान होना ..आकाश में सूर्य इस तरह होता है की किरणों पर विराज मान हो ऐसा ही वर्णन गरुण पुराण में सूर्य के लिए आया है जिसमे उसे साथ पहियों वाले रथ पर विराज मान बताया है अर्थात सूर्य के सात रंगों वाली किरणों का अलंकृत वर्णन है |
जब इस चीज़ को एक प्रतिमा के रूप में ढाला गया तो विष्णु और उसके साथ किरणों का वाचक गरुण जोड़ दिया| इस तरह विष्णु का वाहन गरुण की कल्पना हुई |
चुकी सुपर्ण का अर्थ गरुण भी होता है इसका भी प्रमाण दे देता हु ताकि कोई शंका न करे -
गरुत्मान गरुड़स्तार्क्ष्यो वैन्तेय: खगेश्वर:|
नागान्तको विष्णुरथ: सुपर्ण: पन्नगाशन:||-अमरकोश प्रथम काण्ड स्वर्गवर्ग १.२१  
गरुत्मान,गरुड़,तार्क्ष्य,वैनतेय,नागंत्क,विश्नुरथ,सुपर्ण,पन्नगाशन इतने नाम गरुड़ पक्षी के है |
अत: स्पष्ट है की विष्णु का वाहन गरुड़ कैसे ?
विष्णु और समुन्द्र -
पुराणों में यह प्रसिद्ध है कि विष्णु समुद्र में रहते है उसे क्षीर सागर बताया है |
सागर /समुन्द्र का एक अर्थ आकाश या अन्तरिक्ष भी होता है -
अम्बरम|वियत|व्योम|बर्ही|धन्व|अन्तरिक्षम|आकाशम|आप:|पृथिवी|भू:|स्वयम्भू:|अध्वा:|पुष्करम|सगर:|समुन्द्र:|अध्वरम|इति षोडशान्तरिक्षनामानि||
यहा समुन्द्र का अर्थ आकाश स्पष्ट है |
वेदों में भी समुन्द्र आकाश के लिए अनेको जगह प्रयोग में हुआ है एक उदाहरण देखे -
सहस्त्रश्रृंगो वृषभो  य: समुद्रादुदाचरत|-अर्थववेद ४/५/१
जो सहस्त्र सींगो वाला वर्षा कराने वाला सूर्य है वह आकाश में उदित होता है |                  
     यहा भी समुन्द्र सूर्य को बताया है अत: विष्णु के समन्दर में तात्पर्य है की सूर्य का आकाश में स्थान | जब इसे कल्पित रूप में लिया तो सूर्य विष्णु हो गया और सूर्य का स्थान आकाश की जगह समुन्द्र हो गया | 

     विष्णु और शेषनाग -
 विष्णु जी की शेष नाग के ऊपर सोती हुई प्रतिमा देखि होगी और हमने ये भी सुना है की धरती शेष नाग के फन पर है यहाँ वास्तव में शेष है -
शेष नाम परमात्मा का है क्यूंकि ईश्वर उत्पति और प्रलय में शेष रहता है इसलिए उस को शेष कहते है |
सत्येनोत्तभिता भूमि:|| -ऋग्वेद
अर्थात जिसका कभी नाश नही होता उस सत्य परमेश्वर ने भूमि ,आदित्य सब लोको को धारण किया है |
अत: शेष नाम परमात्मा का है हम देखते है की प्रथ्वी आदि लोको को सूर्य ने अपने आकर्षण सम्भाला है और सूर्यआदि सभी लोको को ईश्वर अर्थत शेष ने अपने आकर्षण से सम्भाला है |अत:विष्णु और उनका बिछोना शेष से तात्पर्य यही है ईश्वर द्वारा सुर्यादी लोको को आश्रय देना |
इसका अन्य और अर्थ निकलता है अमरकोश १.८.४ में शेष का एक नाम अनन्त दिया है |
अन्नत को सर्प ,आकाश दोनों कहते है चुकी सूर्य का बिझोना आकाश है | इस कारण जब इसे प्रतिमा रूपित किया तो आकाश की जगह शेषनाग (सर्प) को सूर्य की जगह (विष्णु) को कल्पित कर शेषनाग पर विष्णु की प्रतिमा बनाई ..इस प्रतिमा में दो अर्थ प्रकट हो रहे है सूर्य को आश्रय देते परमात्मा और आकाश में शयन करता सूर्य |v 

विष्णु और चतुर्भुज -
विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा आपने अनेक मंदिरों में देखि होगी |जेसा मेने बताया विष्णु का अर्थ सूर्य है उसी के अनुसार उनके चारो हाथ की कल्पना भी हुई व्याकरण के समास से इसकी संगीति बैठती है -चतसृषु दिक्षु भुजा: किरणा यस्य स चतुर्भुज: सूर्य अर्थत चारो दिशाओं में जिसकी किरण है वह चतुर्भुज सूर्य है | यहाँ स्पष्ट है सूर्य की किरने चारो दिशाओं में है |इसलिए जब सूर्य को मानव प्रतिमा में कल्पित किया तो उसकी चार भुजाय इसी आधार पर बनाई |
कई जगह विष्णु की आठ ,और दश भुजाओं का भी वर्णन है और उसी के अनुसार वेसी प्रतिमा भी बनती है -
जेसे की श्रीमद भागवत ६/४/३६ और १०/८९/५६ में विष्णु की ८ और १० भुजाओं का उल्लेख है |
यहाँ ८ भुजाओं से तात्पर्य है कि सूर्य की किरणों का आठो दिशाओं में होना | और १० का अर्थ है किरणों का दशो दिशाओं में होना | क्यूंकि दिशाओं को ४ .८.१० के रूप में गिना गया है |
सूर्य की किरणों को कही सींग से कही भुजाओं से अलंकृत किया है | यही कारण है की जब सूर्य विष्णु को प्रतिमा रूपित किया तो ४ ,८.१० हाथो की भी कल्पना की |
विष्णु और लक्ष्मी -
लक्ष्मी को श्री का प्रतीक माना गया है लेकिन हम देखते है की विष्णु की प्रतिमा के साथ स्त्री रूप में लक्ष्मी की भी प्रतिमा होती है | वही पुराणों में विष्णु की पत्नी लक्ष्मी बताई है | इसका कारण यह है की प्रथ्वी पर श्री सूर्य के कारण ही आता है | जेसे अन्न,फल आदि की उत्त्पति सूर्य के कारण ही होती है ,सूर्य के कारण ही वर्षा होती है जिससे अनाज और फसलो को जल मिलता है और धन (लक्ष्मी ) की प्राप्ति होती है ,सुख ,वैभव की प्राप्ति होती है इसलिए विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के रूप में मूर्तिमान की |
यजुर्वेद के ३२/२२ मन्त्र में विष्णु और लक्ष्मी दोनों शब्द है जिनका भाष्य करते हुए महीधर ने विष्णु को सूर्य और लक्ष्मी को श्री से दर्शाया है | 
इस तरह स्पष्ट है की वैदिक आख्यानो को मूर्ति रूप करने के कारन विभिन्न तरह तरह की काल्पनिक मूर्तियों का निर्माण हुआ ....इतना ही नही विष्णु के वामन ,बराह ,आदि अवतार वेदों के मंत्रो को मानव और प्रतिमा आदि में ढालने के कारन हुआ | पुराणों की विभिन्न कथाए भी इसी का परिणाम है पुराणों ने इन सब वैदिक आख्यानो को एतिहासिक व्यक्तियों के साथ अपने अनुसार ऐसा मिला दिया की तरह तरह की कल्पनाय दृष्टिगोचर हो गयी | अगर इन सबका हमे संकेत समझना है इन पहेलियो को सुलझाना है तो वेदों और वैदिक साहित्य की शरण में जाना होगा |
ये बात विष्णु पर नही ब्रह्मा ,महेश पर भी घटित होती है |

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