Saturday, January 16, 2016

पूर्वकाल में ब्रह्मचर्य भंग का प्रायश्चित


पूर्व काल में विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य का बड़ा महत्व हुआ करता था | अपने अध्ययन काल तक विद्यार्थी ब्रह्मचर्य करते थे | जो १२ से ४८ वर्ष तक होता था | जिसके प्रमाण
" षटत्रिशदाब्दिक चर्य्य गुरौ त्रवैदिक व्रतं | 
तदर्धिक पादिक वा ग्रहणान्तिकमेव वा || -मनु 
और छान्दोग्योपनिषद् आदि है |
तथापि इतने कठोर नियम और गुरु की देख रेख के बावजूद भी उस समय कई बालक काम के वशीभूत हो ब्रह्मचर्य भंग कर देते थे ,हालकी उस समय ऐसे बालको की संख्या कम ही थी या नगण्य ही थी लेकिन आज कल विद्यार्थी जीवन में मर्यादा से पालन करने वाले छात्र और छात्रा नगण्य मात्र ही है अधिकाँश छात्र छात्रा पाश्चात्य संस्क्रती से आये गर्ल फ्रेंड र बॉय फ्रेंड के फेशन में ब्रह्मचर्य का काफी पहले ही नाश कर लेते है | इनमे अधिकाँश बाते पता चल जाती है लेकिन उनको रोकने वाला कोई नही होता न ही कोई दंड देने वाला होता है | कई जगह तो परिवार जन भी आपसी साथ देते नजर आते है | लेकिन पूराकल्प में जब किसी विद्यार्थी द्वारा विवाह पूर्व ब्रह्मचर्य नाश कर लिया जाता था तो उसे ऐसा प्रायश्चित करने का विधान था जो वह हमेशा याद रख आगे ब्रह्मचर्य नाश को सोच भी नही सकता था | यह प्रायश्चित उसे उसकी भूल की याद के साथ साथ उसका अपमान भी करवाता था | इस प्रायश्चित विधि को पारस्कर ग्रहसूत्र की १२ कंडिका में अवकीर्णीप्रायश्चित नाम से कहा गया है | यह विधि कुछ प्रक्षेप सहित कात्यायन श्रोत सूत्र १/१/१३-१७ में है |
यहा ब्रह्मचर्य भंग में दंड अथवा प्रायश्चित स्वरूप पारस्कर मुनि द्वारा दी गयी विधि का वर्णन करते है -
" १ अथातोsवकीर्णीप्रायश्चितम || - पारस्कर ३/१२/१ 
अर्थ - अब यहा से ब्रह्मचर्य भंग किये ब्रह्मचारी के प्रायश्चित का उलेख करते है |
२ - अमावस्याया चतुष्पथे गर्दभ पशुमालभते - ३/१२/२ 
अर्थ - अमावस्या के दिन चौराहे पर पतित व्यक्ति गधे नामक पशु का स्पर्श करे |
यहा आलभते का अर्थ स्पर्श लेना वेद और पाणिनि व्याकरण अनुसार सही ही है | कुछ लोग यहा मारना अर्थ लेते है जबकि ग्रहसूत्रों में उपनयन में हृदयमालभते आदि शब्दों से स्पर्श अर्थ ही लिया गया है हिंसा नही | 
गधे को स्पर्श का कारण यही है कि गधे को मुर्खता का प्रतीक माना है .लोक में भी देखा जाता है कि किसी चोर ,व्यभिचारी का अपमान उसका मुह काला कर गधे पर सवारी निकाल करते है | उस समय पतित व्यक्ति गधे का स्पर्श कर दिखाता है कि मैंने अपनी मुर्खता से अपने व्रत को भंग कर लिया |
३ निऋति पाकयज्ञेन यजेत - ३/१२/३ 
पाक यज्ञ से वह निऋति देवता के निमित यज्ञ करे |
पाक यज्ञ इसलिए कि ब्रह्मचर्य भंग व्यक्ति श्रोत यज्ञ नही कर सकता है |
४ अप्स्ववदानहोम : -३/१२/४ 
ब्रह्मचर्य व्रत भंग के प्रायश्चितार्थ पुरोडॉश को जल में छोड़ देवे |
५ भुमो पशुपुरोडाशश्रपणम - ३/१२/५ 
पशु सम्बन्धित पुरोडाश का पकाना भूमि पर करे |
(पुरोडोश - जौ .धान आदि )
६ - ता छवि परिदधीत -३/१२/६ 
उस गधे के समान आचरण को धारण करे ,अर्थात सादा जीवन ,कम खा कर अधिक परिश्रम ,भूमि पर सोना आदि |
कुछ लोग यहा गधे को मार उसकी छाल पहन सोने का अनर्थ करते है जबकि यह अर्थ वेद विरुद्ध है और न ही पूर्व प्रकरण में गधे को मारना लिखा है | व्यास जी के इन वचनों से भी हमारे अर्थ की पुष्टि होती है - 
" आपदा कथित: पन्था इन्द्रियाणामसंयम: |
तज्ज्य: सम्पदा मार्गो येनेष्ट तेन गम्यताम || - महाभारत 
अर्थात इन्द्रियों पर संयम न रखना ,आपदा तथा इन्द्रियजय सम्पति का मार्ग है ,जिससे चाहे चलो ,जो इन्द्रिय संयम न रख पाए वे गधे की भाति जीवन बिताये ,कम खाए ,ज्यादा करे ,दिन में न सोये |
आदि प्रमाणों से गधे के समान जीवन जीना ही अर्थ अभीष्ट प्रतीत होता है |
७ - " उर्ध्वबालामित्येके - ३/१२/७ 
कुछ आचार्यो के अनुसार यह आचरण ऐसा हो कि पतित व्यक्ति का परिधान भी गधे के शरीर के समान धुल भरा हो अर्थात उसे पहनने को नये साफ़ कपड़े न दिए जाए वह पुराने वस्त्रो में ही गुजारा करे |
८ - सम्वत्सर भिक्षाचर्य चरेत्स्वकर्म परीकीर्तयन -३/१२/८ 
अर्थ - एक वर्ष तक अपने ब्रह्मचर्य भंगरूपी कर्म को प्रकट करते हुए भिक्षा मांगकर खाए |
९ - अथापरमाज्याहुती जुहोति | कामावकीर्णीsस्म्यवकी रणोंsस्म कामकामाय स्वाहा | कामाभिद्रुगधोस्स्यमभिदृग्धोsस्मि कामकामाय स्वाहेति ||- ३/१२/९ 
अर्थ - स्वकर्म बताने के अतिरिक्त इन डॉ वाक्यों को बोल आज्याआहुति दे- 
है काम ! मै पतित हु ,पतित हु ,काम की कामना की आहुति देता हु | है ईश्वर मै शास्त्र द्रोही हु .शास्त्र द्रोही हु | मै काम की इच्छा को मन से दूर करने का संकल्प लेता हु | 
१० -" अथोपतिष्ठे - स मा सिंच्न्तु मरुत: समिन्द्र: सबृहस्पति:| स मायग्नि: सिंच्न्तु प्रजया च धनेन चेति - ३/१२/१० 
पुन स मा मन्त्र बोलकर उपस्थान करता हुआ जाप करे |
मंत्रार्थ - विद्वान् गण मुझे ज्ञान से सीचे .ऐश्वर्यवां भी मुझे ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे | मुझे ऐसा उत्तम आचार मार्ग बताये जिससे मै ब्रह्मचर्य पालन कर उत्तम सन्तान प्राप्त करने वाला होऊ |
११ - एतदेव प्रायश्चितम - ३/१२/११ 
यही ब्रह्मचर्य भंग करने वाले का प्रायश्चित है |
................................................ इति पारस्कर ग्रहसूत्र अवकीर्णीप्रायश्चित विधान समाप्त .............................................................................................................................................................................. 
यहा स्पष्ट पता चलता है कि पूर्व काल में ब्रह्मचर्य का बड़ा महत्व था अनजाने में ब्रह्मचर्य पतित होना बड़ा दोष माना जाता था | पजिसका इस तरह का प्रायश्चित था| प्रायशिच्त का अर्थ है तप कर यह संकल्प लेना कि जो हमने गलती पूर्व में करी है वो आगे नही करेंगे | इसमें किये गये कर्मकाण्ड इस निमित है ताकि व्यक्ति को वह हमेशा याद रहे और आगे गलती करने की भूल न करे | 
" प्रायो नाम तप: प्रोक्त चित निश्चय उच्यते | 
तपो निश्चययुग्वृत प्रायश्चितमितीरितं ||
आज भले ही यह सब लुप्त हो गया हो मेकाले शिक्षा प्रभाव और सहशिक्षा पद्धति में छात्रो के बीच ब्रह्मचर्य का महत्व और पालन समाप्त हो गया हो लेकिन तथापि हमे अपनी पुरानी परम्पराओं को नही भूलना चाहिए | उन्हें पुन स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए |

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