Thursday, January 29, 2015

क्या वेदों की शाखाय भी अपौरुष है ?

कई लोग इस शंका को उत्त्पन्न करते है कि चार वेदों के समान वेदों कि शाखाय भी अपौरुष है लेकिन प्राचीन आचार्य और ऋषि दयानद जी वेदों कि शाखाओ को व्याख्यान और मनुष्य कृत मानते है | 
" शाखाय वेद के व्याख्यान रूप ग्रन्थ है "(ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका २९१) अर्थात ४ वेद मूल है और ११२७ उनकी शाकाए है | 
हम जानते है वेद ईश्वरीय ज्ञान है और ईश्वरीय ज्ञान नित्य होता है अत: वेद नित्य है और उसकी शाखाये अनित्य ऐसा महाभाष्य कार पतंजली भी मानते है - " या त्वसौ वर्णा त्वसौ वर्णानुपूर्वी साsनित्या " ( अ. ४/३/१०१ महाभाष्य ) शाकाओ की आनुपूर्वी अनित्य है यह पतंजली का मत है | इसी तरह पतंजली मूल वेद को नित्य मानते है - " स्वरों नियत आम्नायेsस्यवामशब्दस्य, वर्णानुपूर्वी खल्वप्याम्नाये नियता अस्यवामशब्दस्य" (५/२/५६ )
अत: पतंजली के अनुसार शाखा और वेद का भेद स्पष्ट है | 
शाकाये वेदों के व्याख्यान ग्रन्थ है न की वेद ऐसा पाणिनि का भी मत है " तेन प्रोक्तम" ( ४/३/१०१ ) " पाणिनि के इस सूत्र का न्यासकार का अर्थ दर्शाते है- " तेन व्याख्यात तदध्यापित वा प्रोक्तमित्युच्यते "(न्यास पृष्ठ. १००५ ) जिसका स्पष्ट अर्थ है कि ये कठ, कलाप , पेप्लाद आदि शाखाये वेदों के व्याख्यान रूप ग्रन्थ है | प्रोक्त उन ग्रंथो को कहा है जो व्याख्यान है | 
शाकाए मनुष्य कृत है ये उपरी विवरणों से स्पष्ट है लेकिन शतपत के कर्ता ने शाकाओ को मनुष्य कृत स्पष्ट कहा है जो उसने यज्ञ निर्देश में मन्त्र पाठ के सन्धर्भ में किसी शाखा के मन्त्र की जगह मूल वेद मन्त्र बोलने का निर्देश दिया है - " तदु हैकेsन्वाहु: | होता यो विश्ववेदस इति | नेदरमित्यात्मान ब्रवाणीति तदु तथा न ब्रू यान्मानुष ह ते यज्ञे कुर्वन्ति |"
(शत. १/४/१/३५ ) 
इसका भाव यह है कि किसी शाखा वाले होता यो विश्ववेदस ऐसा पाठ पढ़ते है | सो ऐसा पढना ठीक नही | यह मनुष्यकृत पाठ है | 
अत: ऋषियों कि मान्यताओं के अनुसार ४ वेद ही अपौरुष है और अन्य शाकाये आदि व्याख्यान रूप मनुष्यकृत ग्रन्थ है |

No comments:

Post a Comment