Thursday, February 6, 2014

हिंदू सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (Hindu Emperor Chandragupta Maurya)

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसापूर्व को पाटलिपुत्र में हुआ
था ,वह पहला मौर्य सम्राट था और अखंड भारत पर
भी राज करने वाला करने वाला पहला सम्राट था ।
जन्म से ही वह गरीब था ,उसके
पिता की मृत्यु उसके जन्म से पहले
ही हो गई थी,कुछ लेखो के अनुसार
वह अंतिम नंद सम्राट धनानंद का पुत्र था और
उसकी माँ का नाम मुरा था ।
हर ग्रंथ में मतभेद है चंद्रगुप्त
की उत्पत्ति को लेकर ।
बोद्ध ग्रंथ अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य मोरिया नाम के काबिले से ताल्लुक
रखता था जो शाक्यो के रिश्तेदार थे ।
मुरा या तो काबिले के सरदार
की लड़की थी या धनानंद
की दासी थी ।
10 वर्ष की उम्र में
उसकी माँ मुरा की मृत्यु हो गई
थी और तब चाणक्य नाम के ब्राह्मण ने अनाथ
चंद्रगुप्त को पाला ।
चाणक्य को धनानंद से बदला लेना था और नंद के भ्रष्ट राज
को ख़त्म करना था ।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त सम्राट जैसी बात देखि और
इसीलिए वे उसे तक्षिला ले गए ।
तक्षिला में ज्ञान प्राप्ति के बाद चाणक्य और चंद्रगुप्त ने पहले
तो तक्षिला पर विजय पाई और आस पास के कई
कबीलों और छोटे राज्यों को एक कर पाटलिपुत्र पर
हमला किया ।
सिक्किम के कुछ काबिले मानते है की उनके पुरखे
चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में थे ।
320 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य मगध का सम्राट बन चूका था ।
इसके बाद उसने कई युद्ध लड़े और सम्पूर्ण भारतीय
उपमहाद्वीप पर एकछत्र राज किया ।
298 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हो गई ।
हिंदू और बोद्ध ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य के अंतिम दिनों के बारे में कुछ
नहीं लिखते पर कुछ जैन लेखो के अनुसार चंद्रगुप्त
मौर्य जैन भिक्षु बन गया था और कई दिनों तक उपवास रखने के
कारण उसकी मृत्यु हो गई ।
पर केवल जैन ग्रंथ के आधार पर कैसे कहे
की चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया था ??
जैन ग्रंथो में राम को जैन कहा गया है,सम्राट भारत
को भी ,सम्राट अजातशत्रु को भी और
प्राचीन काल में कुछ जैन तो गौतम बुध
को भी जैन मानते थे पर यह सब जैन
नहीं थे ।
हो सकता हो की जैन ग्रंथो की बात
सही हो या गलत
भी हो सकती है ।
जैन कथाओ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने 16 सपने देखे थे और
उन सपनो का अर्थ जानने चंद्रगुप्त दिगंबर पंथ के जैन गुरु
भद्रबाहु के पास गए ।
भद्रबाहु ने चंद्रगुप्त को उन सपनो का अर्थ बताया फिर चंद्रगुप्त
मौर्य जैन बन गया ।
इसके बाद अपने पुत्र बिंदुसार को राजा बना कर चंद्रगुप्त मौर्य
भद्रबाहु के साथ चले गए ।
पर जैन कवी हेमचन्द्र के अनुसार भद्रबाहु
की मृत्यु चंद्रगुप्त मौर्य के राज के 12वे वर्ष में
ही हो गई थी ,तो चंद्रगुप्त किसके साथ
गए थे ??
बचपन से ही चंद्रगुप्त चाणक्य के साथ
रहा था और हिंदू धर्म का उसपर काफी असर था ।
चाणक्य के अर्थशास्त्र में विष्णु की आराधना करने
की बात कही गई है ।
चंद्रगुप्त के काल के सिक्को पर हमें जैन प्रभाव
कही नज़र नहीं आता जबकि हमें
उसके सिक्को पर राम,लक्ष्मन और सीता के चित्र
मिलते है ।
चित्र नंबर 1,2 और 3 देखे
इनमे आपको 3
मानवों की आकृति दिखेगी जो राम,लक्ष्मन
और सीता के है ।(नंबर 1 चित्र का नाम है GH
591)
अब सम्राट अशोक ने बोद्ध धर्म अपनाया था और उसके सिक्को पर
आप बोद्ध प्रभाव देख सकते है ।
चित्र नंबर 4 देखे ,आपको बोद्ध धर्म चक्र नज़र आयेगा ।
यदि चंद्रगुप्त जैन था तो उसके सिक्को में जैन चिन्ह
क्यों नहीं है ??
केवल एक मत के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य को जैन
कहना ठीक नहीं ।
जय माँ भारती

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