आज मशीन या किसी वाहन को आसानी से चलाने के लिए उसका घर्षण कम करने के लिए चिकनाई का उपयोग करते है ,, जेसे लुब्रिकेंट ग्रीस ओर आयल उसी तरह धन्वन्तरी जी के समय भी करते थे इसका उलेख उनकी सुश्रुत संहिता में मिलता है -
स्नेहाभ्य्कते यथा चक्र साधु प्रवृतते ||
संधये: साधू वर्तन्ते संश्र्लिष्टा: श्र्लेष्मेणा तथा ||सुश्रुत शरीरस्थान ४/२१ ||
जेसे रथ के पहिये के धुरे पर चिकनाई लगी होने से पहिया ठीक से फिरता है उसी तरह कफ से लिपी हुई सन्धिया अच्छी तरह फ़ैल ओर सिकोड़ सकती है ..
स्नेहाभ्य्कते यथा चक्र साधु प्रवृतते ||
संधये: साधू वर्तन्ते संश्र्लिष्टा: श्र्लेष्मेणा तथा ||सुश्रुत शरीरस्थान ४/२१ ||
जेसे रथ के पहिये के धुरे पर चिकनाई लगी होने से पहिया ठीक से फिरता है उसी तरह कफ से लिपी हुई सन्धिया अच्छी तरह फ़ैल ओर सिकोड़ सकती है ..
No comments:
Post a Comment