मित्रो समय मापी यंत्र का हम कई समय से कई रुपो मे उपयोग कर रहे है। भारत मे वैदिक काल से ही समय मापी यंत्र का उपयोग किया जा रहा है जिसके बारे मे आप इस लेख मे पढेंगे। सूर्य सिध्दांत मे समय मापी यंत्र के बारे मे निम्न उल्लेख है…
सुर्य सिध्दांत स्वंय वहयंत्राणां व्यवहार: के 19 वे श्लोक मे लिखा है -
अर्थात् काल ज्ञान के लिये हैतु इस प्रकार के यंत्रो का निर्माण करना चाहिए।यंत्र को चमत्कारी ढंग से चलायमान करने के लिये उसमे पारे का उपयोग करना चाहिए।
अर्थात शंकु, धनु,चक्र, आदि अनेक प्रकार के छाया यंत्रो द्वारा तंद्रा रहित अर्थात अत्यंत सावधानी से देवज्ञ गये मार्ग से कालज्ञान करना चाहिए ।कपाल आदि जल यंत्रो मे,मयुर,नर,तथा वानर यंत्रो से जिनमे सूत्र के साथ बालु भरी हो,उससे विधिवत काल ज्ञान करना चाहिए।यंत्र को गतिशील करने के लिये पारा,आग,जल,सूत्र,ताम्र,तेल,जल का प्रयोग करना चाहिए।पारा या रेत को यंत्र मे स्थापित करना चाहिए लेकिन ये प्रयोग कठिन है
सुर्य सिधान्त के इसी अध्याय के 23 वे श्लोक को देखे-
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ताम्र पात्र के नीचे छिद्र कर स्वच्छ जल वाले कुंड मे डाल दे।यदि एक अहो रात्रि मे 60 बार डुब जाय तो वही शुध्द कपाल यंत्र होता है।
सुर्य सिध्दांत स्वंय वहयंत्राणां व्यवहार: के 19 वे श्लोक मे लिखा है -
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विभिन्न वस्तुओ के उपयोग से समयमापी यंत्र बनाना- इसी सूर्य सिध्दांत के काल्मापकानि यंत्राणि के 20,21,22 मे देखिए-
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नराख्यं शंकुयंत्रम(एक तरह की धूप घडी)-
इसी अध्याय के 24 वा श्लोक देखे- केवल दिन मे जब आकाश स्वच्छ हो तथा निर्मल रवि हो उस समय शंकु यंत्र से सम्यक छाया साधन करने से उनमे काल का ज्ञान होता है।
एक चित्र भास्कराचार्य की समयमापी यंत्र का देखे-
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