Wednesday, May 7, 2014

यज्ञ मे पशु वध नही है (No Slaughter In yagya )

मित्रो आज कल कुछ वैदिक धर्म विरोधी ओर कुछ बलि प्रथा के समर्थक पाखंडी जन वेदों ओर यज्ञो मे पशु वध को बताते है।ऐसे स्वादलोलुप व्यक्ति वेद मंत्रो का अनर्थ तो करते ही है ,साथ ही साथ  भारतीय संस्कृति के विरोधियो को भी ऊँगली उठाने का अवसर प्रदान करते है ,,,,,
ये लोग यज्ञ मे पशु हत्या को सिद्ध करने के लिए मनु महाराज के वचन "वैदिक हिंसा हिंसा न भवति" को बड़े गर्व के साथ दिखाते है लेकिन असल मे इसका आशय यह है की हिंसक जीवो या आत्म रक्षा हेतु दुष्ट मनुष्य या जानवर को दण्डित करना या वध करना ।अहिंसक पशु या मनुष्य को मारना  पाप बताया है
 
उपरोक्त वर्णन से वैदिक हिंसा पर मनु जी का मत स्पष्ट है   .....                                                              
निरुक्त मे महर्षि यास्क यज्ञ का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते है -"अध्वर इति यज्ञानां ।ध्वरतिहिंसामर्क ,तत्प्रतिषेध ।।(निरुक्त अ.१ ख ८  ) "                                                                                       
यज्ञ का नाम अ =निषेध,ध्वर =हिंसा (हिंसा का निषेध) है ,,अर्थात यज्ञ मे हिंसा नहीं होनी चाहिए।
 

वेदों मे यज्ञ के लिए -                                                                                                                         

 उपावसृज त्मन्या समज्ञ्चन् देवाना पाथ ऋतुथा हविषि।वनस्पति: शमिता देवो अग्नि: स्वदन्तु द्रव्य मधुना घृतेन ।।(यजु २९,३५ )    
पाथ ,हविषि,मधुना,घृत ये चारो पद चारो प्रकार के द्रव्यों का ही हवं करना उपादेष्ट करते है,अत: यज्ञ मे इन्ही का ग्रहण करना योग्य है ,,प्राणिवध जन्य मॉस का नही ।
कात्यान्न श्रोतसूत्र मे आया है-
दुष्टस्य हविषोSप्सवहरणम् ।।२५ ,११५ ।।
उक्तो व मस्मनि ।।२५,११६ ।।
शिष्टभक्षप्रतिषिध्द दुष्टम।।२५,११७ ।।
अर्थात होमद्र्व्य यदि दुष्ट हो तो उसे जल मे फेक देना चाहिए उससे हवन नहीं करना चाहिए ,शिष्ट पुरुषो द्वारा निषिध मांस आदि अभक्ष्य वस्तुयें दुष्ट कहलाती है ।
उपरोक्त वर्णन के अनुसार यहाँ मॉस की आहुति का निषेध हो रहा है ।

  मॉस भोजी को यज्ञ का अधिकार नहीं है :-

"न मॉसमश्रीयात् ,यन्मासमश्रीयात्,यन्मिप्रानमुपेथादिति नेत्वेवैषा दीक्षा ।"(श. ६:२ )
अर्थात मनुष्य मॉस भक्षण न करे , यदि मॉस भक्षण करता है अथवा व्यभिचार करता है तो यज्ञ दीक्षा का अधिकारी नही है .... 
यहा स्पष्ट कहा है की मॉस भक्षी को यज्ञ का अधिकार नही है ,अत : यहाँ स्पष्ट हो जाता है की यज्ञ मे मॉस की आहुति नही दी जाती थी ।

मॉस शब्द का ग्रंथो मे वास्तविक अर्थ-

अधिकतर लोग शतपथ आदि ग्रंथो मे मॉस शब्द देख भ्रम मे पड़ जाते है ओर बताते है की मॉस से आहुति दी जाती है लेकिन वास्तव मे  वहा मॉस का अर्थ पशुओ का मॉस नही है -
मासानि वा आ आहुतय:(श ९,२ )
अर्थात यज्ञ आहुति मॉस की होनी चाहिए ।
चुकि यहाँ मॉस के चक्कर मे भ्रम मे न पडे तो आगे मॉस के अर्थ को स्पष्ट किया है -
" मासीयन्ति ह वै जुह्वतो यजमानस्याग्नय:।
एतह ह वै परममान्नघ यन्मासं,स परमस्येवान्नघ स्याता भवति (शत .११ ,७)"।।
हवन करते हुआ यज्मान की अग्निया मॉस की आहुति की इच्छा रखती है ।
परम अन्न ही मॉस है परम अन्न से आहुति दे ,..
यहा मॉस को परम अन्न कहा है ओर यदि ये जीवो का मॉस होता तो यहाँ अन्न का प्रयोग नही होता क्यूँ की मॉस अन्न नहीं होता है ।परम अन्न के बारे मे अमरकोष के अनुसार "परमान्नं तु पायसम् " अर्थात दूध ओर चावल से तैयार (खीर) को परम अन्न कहा है ।अतः शतपत ब्राह्मण के अनुसार मॉस का अर्थ पायसम है ।लोक प्रसिद्ध मॉस नही ।

पंचमेध -

अधिकतर वैदिक धर्म विरोधी लोग कहते है की गौमेध,अश्वमेध,नरमेध आदि यज्ञो मे बलि दी जाती थी लेकिन वास्तव मे प्राचीन काल मे ऐसा नही था ,ये सब बाद मे वाम मर्गियो द्वारा चलाया गया था । गौमेध आदि यज्ञो मे गौ ,अश्व आदि के दान किया जाता था न कि वध ,प्राचीन आचार्य इन यज्ञो का आधात्मिक ओर अहिंसक अर्थ ही ग्रहण करते थे ।जैसाकि महर्षि गार्ग्याय‌‍‍ण की प्रणववाद से स्पष्ट होता है -
" गौमेधश्वाश्वमेधच्ञ नरमेधस्ताथाऽपरः ।
अजस्य महिष्यापि मेधाः पञ्च प्रकीर्त्तियाः ।।"
 गौमेध,अश्वमेध,नरमेध,अजमेध तथा महिषमेध ये पांच मेध है।

गौमेध-

निरुक्त मे यास्क मुनि जी गौ का अर्थ करते हुए लिखते है -अघन्या ।अर्थात वध करने के योग्य नही (निरुक्त २/११ )
    वैदिक सत्यशास्त्रो मे गाय को मारने का निषेध है ऐसे मे गाय की आहुति देने का काम वाम मार्गियो द्वारा चलाया गया था।प्रणववाद मे गौमेध का निम्न अर्थ बताया है -
गौमेधस्ताच्छब्दमेध इत्यवगन्यते । गां वाणी मेधया संयोजनमिति तदर्यात् ।शब्दशास्त्रज्ञानमात्रस्य सर्वेभ्यः प्रधानामेव गौमेधो यज्ञ।तदव्यने च शाब्दिकसन्निधानपदार्थोनामेवेति विक्षेयम् ।।
अर्थात गौमेध का अर्थ है "शब्दमेध"।गौ का अर्थ है "वाणी" ओर मेधा का अर्थ है "बुधि", अत: गौमेध का अर्थ हुआ "वाणी का बुध्दि के साथ संयोजन "।सब को शब्द शास्त्र का ज्ञान देना यही गौमेध है ।
यास्क मुनि ने निघुंट मे गौ का अर्थ वाणी भी बताया है जिसे निम्न चित्र मे देख सकते है -                                                                           
 

अश्वमेध -                                                                                                                                                

अश्वमेध के बारे मे प्रणववाद मे आया है-
अश्वोहि ज्ञानम् ,अश्यते सर्वाणि भूतान्युनेनेति तदर्थात् ।मेधातावत् ज्ञान क्रिया भवति।अश्वस्य मेध इति व्यत्पत्तिमड्रीकृत्य सर्वाभि दमकारात्मक।ज्ञानकरणामिति अश्वमेध क्रिया भवति।अत एवाक्ष्वानां पदार्थाना ध्वनमपि प्रयुज्यते  । अश्वस्तावन्ज्ञानतन्यः पदार्थना तेषाम् हवन चैतह्वाग्नों सम्प्रदानमेव ,इति हि तदर्थः ।
अर्थात अश्व  का अर्थ है "ज्ञान " ओर मेध का अर्थ है ज्ञान क्रिया" अर्थात ज्ञान प्राप्त करने को अश्वमेध जानना चाहिए।इसलिए अश्व अर्थात पदार्थो का हवन करना चाहिए,क्युकी अश्व का अर्थ है -ज्ञेय पदार्थ ,उन्हें ब्रह्म को अर्पित करना अश्व का हवन है । 
वृह॰ उ॰ मे अश्वमेध को प्राणसाधना के रूप मे निम्न उलेख किया है -"यद्श्रत्तेन्मेध्यमभूदिति तदैवक्ष्वमेधवतम् "              
निघुट मे अश्व का अर्थ पृथ्वी दिया है (नि.५ ,३) अर्थात प्रथ्वी पर चक्रवर्ती राजा बन्ने के लिए राजाओ द्वारा किया जाने वाला यज्ञ अश्वमेध था जिसमे घोड़ा दौड़ाया जाता था वध नहीं किया जाता था।                             

नरमेध-

नरमेध के बारे मे प्रणववाद मे आया है-
 नरमेधश्चेचछापरस्तयोः सम्बन्धरूपों बोध्य।नरइतिसर्वाक्षयभूतस्यैव संज्ञा।सर्वाश्रयं सर्वमित्येतदोषमात्र तदेवेति विज्ञ्यम् ।
अर्थात सब संसार का आश्रयरूप परमात्मा है, उसे नर कहते है।यह सब कुछ परमात्मा के आश्रय है ,इस प्रकार का बोध ही नरमेध है ।
नरमेध मे मनुष्य बलि नहीं दी जाती थी ,,किसी व्यक्ति के देह्वास पर उसके मृतक शारीर का दाह संस्कार भी                                                  नरमेध होता है ।                                                                                         

अजमेध-

अजमेध का प्रणववाद मे उलेख -
समाहारक्ष्वाज्मेधः सर्वधर्मानुवर्तेनः।जायते क्रियतेनैव चैति मिथ्याप्रतो भवेर। स एवमजमेधोऽये समाहारस्त्रयात्मक:।
गौमेध ,अश्वमेध,नरमेध,का मेल ही अजमेध है,"वस्तू न उत्पन्न होती न नस्ट ,इस प्रकार का ज्ञान अजमेध है ।

महिषमेध-

ततश्च माहिषो मेधः पञ्चम् सर्वसंस्थि तः ।ब्रह्माण क्रियते नित्यं ।
पांचवा महिष मेध है ,इसे ब्रह्म नित्य करता है ।
गार्ग्यायं ऋषि की प्रणववाद से स्पष्ट है की इन यज्ञो का हिंसक अर्थ प्राचीन काल मे नहीं लिया जाता था ,बल्कि ये अध्यात्मिक ओर अहिंसक अर्थ रखते है ।
इन सब प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है की यज्ञ मे जीव हत्या का कोई प्रावधान नहीं है अपितु जीव हत्या कर यज्ञ करने का निषेध ही बताया है ओर ऐसी हावी को जल मे फेक देने का उलेख है ,,लेकिन कुछ लोग अपनी बात को सिद्ध करने के लिए मंत्रो ओर श्लोको का गलत अर्थ या तोड़ मोड़ कर पेश कर यज्ञ मे बलि प्रथा का जिक्र करते है ।अत ऐसे लोगो से निवेदन है पहले यज्ञ से सम्बंदित ज्ञान को अच्छी तरह प्राप्त करे उसके बाद यज्ञो पर आक्षेप करे।
यज्ञ मे पशु वध निषेध से सम्बंधित अधिक जानकारी ओर यज्ञ आहुति के बारे मे अधिक जानकारी हेतु निम्न लिंक पर क्लिक करे ओर एक पीडीऍफ़ पुस्तक को डाउनलोड कर पढ़े ओर प्रचार करे -
 https://www.dropbox.com/s/fry6k4i5pdgmsxe/Yagya%20%20Men%20%20Pashu%20%20Vadha%20%20Veda%20%20Viruddha.pdf
ॐ जय माँ भारती !                                       
   
     
                               
   
                                                                                                   

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