मित्रो अन्य मतो की किताबो मे उनहे ओर उनके सन्देश देने वाले का अनुसरण न करने पर नष्ट करने का उपदेश है जैसे कि
"यह बदला है अल्लाह के शत्रुओ का जहन्नम की आग| इसी मे उनका सदा घर है,इसके बदले मे कि हमारी आयतो का इन्कार करते थे|(२४:४१:२८)
है ईमान लाने वालो तुम यहुदियो ओर इसाईयो को मित्र न बनाओ.........(६:५:२९)
इसी तरह बाईबिल मे भी है
यीशु ने कहा'परन्तु मेरे उन बेरियो को जो नही चाहते थे कि मै उन पर राज्य करू,उनको यहा लाकर मेरे सामने घात करो|(लूका १९.२७)
इन बातो से स्पष्ट है कि इनमे जो इनकी बातो को न माने उसे शारिरीक हिंसा देने का उपदेश है लेकिन कुछ लोग विशेष कर मुस्लिम ब्लोगरो द्वारा वेदो पर भी ये आरोप लगाया जाता है कि वेदो मे भी वेद को न मानने वाले को नस्तनाबूत करने का उपदेश है इस बात के सन्दर्भ मे ये लोग अर्थववेद का १२/५/६२ मंत्र रखते है लेकिन असल मे ये मंत्र किसी भी तरह की शारिरीक हिंसा का नही है
आइये देखिये कैसे
" तू काट डाल, चीर डाल, फाड़डाल, जला डाल , भष्म कर
दे" ।इस वेदमंत्र मे अगर 'वेदनिंदक' को काटने-मारने-जला ने
की बात
की गयी होती तो इसमे
सम्बोधन'मनुष्यो' के लिए होता --जैसे कि --
"हेमनुष्यो तुमवेदनिंदकों को काट दो मार दो जला दो । किन्तुइसमे
मनुष्यो को संबोधित नहीं किया गया है ,अर्थात यह मंत्र
मनुष्यो को आज्ञा या आदेशदेता हुआ नहीं है ।
बल्कि इस वेदमन्त्र मे"वेदवाणी" से
प्रार्थना की गयी है ,
अर्थातवेदवाणी के गुणो को प्रकट किया गया है ।कुछ इस
तरह ---- " हे वेदवाणी तू , काट डाल,चीर
डाल , फाड़ डाल , जला डाल, भष्म कर दे ।इसवेदमन्त्र से पूर्व व
पश्चात के मंत्र
मेभी वेदवाणी को ही संबोधित
किया गया है ।अब इतनी सी बात
तो सभी समझ सकते हैवेदवाणी ,
किसी को कैसे काट
सकती हैया जला सकती है ???
क्या वाणी केद्वारा किसी को काटा, मारा ,
जलाया औरभष्मकिया जा सकता है ??
सीधी सी बात है
नहीं ।अतः इस वेदमन्त्र मे कहा गया है कि ---
हेवेदवाणी तू --वेदनिंदक के अज्ञानजनितबंधनो को काट
डाल, तू अघ के कारण वेदनिंदक केमस्तिष्क पर पड़े तम के
पर्दो को चीर डाल फाड़डाल । तू दिव्य ज्ञानाग्नि वेदनिंदक
के अज्ञानको जला दे भष्म कर दे ।अब तुम प्रश्न करोगे कि , ये
मारने काटने जैसेशब्दो से ये बात
क्यो कही गयी एवंइसका क्या प्रमाण है
कि वेदवाणी से ऐसा करनेको कहा जा रहा है ,
हो सकता है तुमअपनी मर्जी से ये भावार्थ
निकाल रहे हो ।तो इसका उत्तर पढ़ लो -------तस्या आहनम्
कृत्या मेनिराशासनं वलग उर्बध्यम्।---अर्थात , उस
वेदवाणी का 'वेदनिंदक'को ताड़ना , बाह्य
पीड़ा , हिंसा आदि से रहितहैकिन्तु आंतरिक
बंधनमुक्ति का सोपान है । इसमेस्पष्ट कर दिया गया है
कि वेदवाणी किसप्रकारवेदविरुद्ध दोषो को नष्ट कर
करती है ।अथर्ववेद का ही एक और मंत्र
देखो ---वैश्वदेवी ह्वां च्यसे कृत्या कूल्वजमावृत्ता ।
अर्थात --- हे सब विद्वानो का हित
करनेवाली वेदवाणी तू , वेदनिन्दको के लिए
हिंसारूपहै। इस बात को उदाहरण से समझो -- जैसे
विद्वानको अनैतिक बात सुननी पड़े तो वो अनैतिक बातेविद्वान
की शत्रु समान है, अर्थात उसके लिएहिंसा के समान है
क्यो कि वो उसे चोटपहुचाती है, इसी प्रकार
पवित्रवेदज्ञान क्यो नअधर्मियों के लिए हिंसा के समान होवे ?
अतः इस वेदमन्त्र मे शारीरिक हिंसा का नहोना सिद्ध
होता है ।
इसके अलावा वेद ही ऐसा ग्रंथ है जो ये नही कहता कि तुम इस विशेष व्यक्ति का अनुसरण करो जैसा कुरान मुहमद का कहती है ओर बाईबिल ईसा का जबकि यजुर्वेद कहता है मनुर्भवः अर्थात् मनुष्य बनो अतः वेद ही एकमात्र ग्रंख है जो मानवता का उपदेश करते है|
ॐ
Tuesday, December 31, 2013
वेदों पर आक्षेप का उत्तर
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